26/10/2023
(दीपावली स्पेशल !)
बाजरा बदल सकता है, राजस्थान की किस्मत.
तिल और मोठ के साथ इसकी त्रिवेणी राजस्थान में आर्थिक समृद्धि के साथ साथ स्वास्थय और पर्यावरण संरक्षण की गारंटी दे सकती है.
कैसे ?
1. अगर राजस्थान के अधिकतर लोग बाजरा खाने लग जाएँ तो इसकी खपत बढ़ेगी और किसानों को इसका अच्छा दाम मिलने लगेगा. अगर तीन-चार हजार का भाव मिलेगा तो अधिक पानी वाली रिस्की फसलों से क्यों माथा मारेंगे ?
2. कम पानी की इस फसल में कृत्रिम खाद की जरूरत नहीं होती है. जैविक खेती का आधार यही फसल बन सकती है. इससे पर्यावरण बचेगा. संतुलन बना रहेगा. (गेहूं को दस बार पानी देना होता है ! उस पर वह स्वास्थ्य के लिए बाजरे से कई गुना कमतर आहार है.)
3. राजस्थान का बड़ा भूभाग रेतीली मिट्टी वाला है. उसमें यह फसल प्राकृतिक रूप से होती है. बहुत कम खर्च में पैदा होने से किसान की लागत कम हो जाएगी.
4. बाजरे को खाने से मोटापा, एसिडिटी, केंसर, अपाचन और खून की कमी से बचाव होता है. गूगल कर लीजिये, बाजरे की पौष्टिकता पर.
5. जानवरों को चारे की भरपाई इससे हो जाती है. पशुपालन को मदद होगी, बोनस के रूप में.
मैं गारंटी से कहता हूँ कि राजस्थान की आर्थिक स्थिति में क्रान्ति हो जाएगी. पैसे का सर्कुलेशन अन्दर ही अन्दर होगा तो बाजार में रौनक आ जाएगी.
तो इसके लिए क्या करना होगा ?
यह काम किसी उपदेश से या सरकारी आदेश से सम्भव नहीं है. न ही यह किसी NGO या अन्य संगठनों के बस का सौदा है. इसके लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री को एक बड़ा जन-आन्दोलन चलाना होगा, ताकि लोग बाजरे के महत्व को समझें. बाजरा खाना फेशन और गर्व का विषय हो जाए. खाने, पहनने की आदतें बदलना आसान नहीं होता. लेकिन समाज का, शासन का, बाजार का नेता और मीडिया चाहे तो सब हो सकता है.
जब लोग फेशन के नाम पर 'पिज्जा' खा सकते हैं तो 'सोगरा' या बाजरे की रोटी भी खा सकते हैं ! मार्केटिंग की बात है.
खीचड़ा किसी भी चाइनीज या इटालियन खाने से बेहतर है, यह बात आसानी से स्थापित की जा सकती है.
पूरी दुनिया में बाजरे की मांग पैदा की जा सकती है. साथ में सांगरी, काचरा, बैर, कैर और कूमठा भी बेचे जा सकते हैं.
किसी देश या समाज की आर्थिक समृद्धि के आधार में 'विचार' ही होते हैं. योरोप और अमेरिकी क्षेत्रों में विचार आते गए, वहां की सरकार्रों, कॉलेजों और कम्पनियों के माध्यम से धरातल पर उतरते गए और पैसा उनकी जेब में जाता रहा. आज भी यह जारी है.
जब हम किसी विदेशी कम्पनी का पिज्जा खाते हैं, तो किसी दूसरे देश के लोगों का जीवन बेहतर बनाते हैं और अपने बच्चों का पेट खराब करते हैं, पैसा बर्बाद होता है, वह अलग बात है !
लेकिन भारत के प्रधानमन्त्री और राजस्थान के मुख्यमंत्री के पास प्रगतिशील विचारों की कमी है...न ही राजनैतिक संगठनों की कोई स्पष्ट सोच है. वे केवल 'राजनीति' कर रहे हैं. वे और अफसर, दलालों की कठपुतलियां मात्र हैं. बातें, वोट और पैसा इधर से उधर करके टाइम पास कर रहे हैं. समाज को बांटने में व्यस्त हैं. तभी तो भूख के सूचकांक में भारत जैसा कृषि प्रधान देश, सौ देशों से पीछे पहुँच गया है !
मेरे पास ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो राजस्थान को एक साल में बदल सकती हैं. ये बातें खरी हैं, अनुभव और शोध पर आधारित हैं, तथ्यों के अध्ययन से उपजी हैं. मगर ये 'बातें' ही रहेंगी, जब तक मुझे वोट नहीं मिलेंगे ! लेकिन मैं अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं कर सकता, थूककर चाट नहीं सकता !
पर मैं ये बातें कहता रहूँगा -- अभिव्यक्ति के अधिकार से.
राजस्थान के लोगों,
इन्हीं पत्थरों पर चलकर अगर आ सको तो आओ,
मेरे घर के रास्ते में कोई कहकशां नहीं है !
(कहकशां- सुनहरा मंजर )
अभिनव अशोक,
अभिनव राजस्थान पार्टी
(झूठ, झांसे, छद्म अवतारवाद से दूर,
असली लोकतंत्र और असली विकास को समर्पित)
आपसे प्रश्न - ये नकारात्मक विचार हैं या सकारात्मक ?