14/09/2024
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रामायण में वर्णन है कि वेद है समुद्र और एक बारऋषिमुनियों व देवताओं ने मिलकर वेद-समुद्र का मंथन किया। जब वेदों का मंथन किया गया तो उसमें से मंत्र निकले और ऋषि, मुनि तथा देवताओं ने मंत्रों का बंटवारा कर लिया। जो कर्मकांडीमुनि थे, उन्होंने कर्मकांड के यज्ञ के मंत्र ले लिए। जो ज्ञानी और वेदांती थे, उन्होंने वेदांत के मंत्र ले लिएइस प्रकार सबने अलग-अलग मंत्र बांट लिए। पर अंत में उस मंथन में 'राम-नाम' भीनिकलाथाऋषिमुनियों ने सोचा कि बड़े-बड़े मंत्र तो ठीक हैं, भला इन दो अक्षरों का क्या महत्व है ? वस्तुतः वे बेचारे पहचान नहीं पाए कि अमृत तो यही है, सार यही है। परंतु शंकरजी ने कहा, भाई ! सारा वेद आप लोग ले जाइए। बस ये दो अक्षर हमें दे जाइए ! इतना कहकर शंकरजी ने दोनों अक्षरोंरामनाम'कोउठाकर
मुख में धारण कर लिया अगर एक ओर सैकड़ों मंत्र होंऔर दूसरी ओर 'राम-नाम हो, तो व्यक्ति का तराजू तो यही कहेगा कि मंत्रों वाला पलड़ा भारी है। लेकिन शंकरजी के गणित में और हम लोग के गणित में बहुत बड़ा अंतर है। शंकरजी का गणित बड़ा विचित्र है। वर्णन आता है कि पार्वतीजी नित्य सहस्रनाम का जप करती हैं, और एक दिन भगवान शंकर के भोजन का समय हो गया; लेकिन पार्वतीजी का पाठ पूरा नहीं हुआ था। इसलिए उन्होंने कहा कि पाठ पूरा हुए बिना मैं भोजन कैसे करूं ! शंकरजी ने एक श्लोक पढ़कर कहा पार्वती !
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्त्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने।।
वस्तुतः तुम जिस सहस्रनाम का पाठ करती हो, केवल एक 'राम-नाम' से ही उसके फल की प्राप्ति होती है। इसकासीधासा अभिप्राय है कि संसार में विस्तार का महत्व है और भगवत्तत्त्व में संक्षेप का महत्व हैएक व्यक्ति जब वृक्ष को देखता है, तो उसकी दृष्टि उसके बड़प्पन, उसकी ऊंचाई पर जाती है और दूसरा व्यक्ति देखता है कि उसके मूल में बीज कितना छोटा-सा है ! यद्यपि बीज तो छोटा होगा ही, लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि बीज में ही वृक्ष समाया हुआ है। पार्वती भगवान शंकर की बात मानकर 'राम-नाम' लेकर भगवान शंकर के साथ भोजन कर लेती हैं
सहसनामसमसुनिशिवबानी।जपिजेईपियसंग भवानी॥
पार्वतीजी के इस कार्य से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने कितना सुंदर कार्य किया ? शंकरजी का एक रूप आपने देखा होगा 'अर्धनारीश्वर' जिसमें आधा शरीर शंकरजी का और आधा पार्वतीजी का। गोस्वामीजी कहते हैं कि जिस दिन पार्वतीजी ने 'राम-नाम' लेकर भगवान शंकर के साथ भोजन किया, उसी दिन शंकरजी ने अपना अर्धनारीश्वर रूप बनाया।
हरषे हेतु हेरि हर ही को।कियभूषनतियभूषनतको॥
जिस दिन पार्वतीजी ने 'राम-नाम' लेकर भगवान शंकर के साथ भोजन किया, उसी दिन शंकरजी ने अपना अर्धनारीश्वर'रूप बनाया पार्वतीजी ने पूछा, महाराज आप तो मुझसे बड़ा स्नेह करते हैं, लेकिन आज ही आपने मुझे अपने आधे शरीर में सम्मिलित क्यों किया ? उन्होंने कहा, पार्वती ! अभी तक तुम विचारों से मेरे निकट तो थीं, पर अभिन्न नहीं थीं। परंतु आज तुमने मेरे 'रामनाम'की आस्था पर विश्वास किया, इसलिए आज हम-तुम मिल करके एक हो गए। अब हमारे-तुम्हारे बीच में कोई दूरी नहीं रही। वस्तुतः व्यक्ति को विस्तार में आस्था है। नन्हे से दो अक्षर के नाम पर जल्दी आस्था नहीं होती।