01/08/2020
*पूज्य ब्रह्मर्षि योगी जी के निर्वाण दिवस पर विशेष*
शाब्दिक रूप से जब भी निर्वाण शब्द की बात होती है तो इसका अर्थ होता है बुझा हुआ दीपक!
प्राय: हम महापुरुषों के धरा धाम को छोड़कर जाने की स्थिति को 'निर्वाण 'शब्द से संबोधित करते हैं और यह शब्द सही भी है, क्योंकि जिस प्रकार दीपक अपना सम्पूर्ण जीवन लोगों को प्रकाश देने में, उन्हें रास्ता दिखाने में लगा देता है ,वैसे ही सन्त अपना संपूर्ण जीवन पर सेवा पर उपकार में ही लगा देते हैं ।
सन्त हमारे सच्चे मार्गदर्शक बनकर सही रूप में जीवन का पथ प्रदर्शित करते हैं , तभी तो कहा गया है- महाजनो येन गतः स पन्थ: अर्थात महान लोग जिस मार्ग पर चले हों वही मार्ग है !
अगर संत ना होते तो मनुष्य विषय भोगों में फंसकर कभी भी भगवान की और न लग पाता ।
मनुष्य भौतिकता की अंधी दौड़ में संलिप्त होकर हताश निराश जीवन को शांतिमय बनाने के लिए पुनः विषयों की ओर ही भागता है लेकिन *"वस्तु कहीं ढूंढे कहीं ,कहो कहा विधि पाय"* के कथनानुसार बारम्बार दुःखी होता रहता है । " *मर्ज बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा करते गये "* की स्थिति होती चली जाती है ।
कालान्तर में कभी पूर्व जन्मों के सञ्चित पुण्यों के उदय होने से जीवन में सन्त -सद्गुरूदेव का आगमन होता है ,जो उसके जीवन की दिशा को बदल देते हैं ।
" *स्वाति की एक बूंद सीपी का मर्म वेध जाती है फिर बरसों में मोती पकता है "* सत्संग का कोई भी एक आध्यात्मिक सूत्र जीवन में उतर गया तो उसका कल्याण हो जाता है ।
जिसने थोड़ी सी भी अपनी मस्ती की झलक पा ली फिर उसकी भौतिक विषयों मे लिप्सा नहीं रह जाती ,वह वास्तविक शान्ति का अनुभव करता है । ऐसा मनुष्य ही अपनी अनुभूतियों में कह उठता है-
*"लगी आग आकाश में झर झर गिरे अंगार !*
*संत ना होते जगत में तो जल मरता संसार !!*
पुनश्च दीपक की भांति संतों का शरीर भी एक निश्चित अवधि के लिए ही मिलता है लेकिन वह अपने छोटे से जीवन को भी अपने महत्तम कार्यों से सदा -सदा के लिये आलोकित प्रकाशित कर जाते है- किसी कवि ने पूज्य योगी जी सदृश सन्त के लिये ही दीपक को निमित्त बनाकर लिखा है-
" *दीपक बुझने को जलता है मरण सदा से ही जीवन के आंचल में पलता है !
दीप दान देता सुदृष्टि को जब तक होता नहीं उजाला, अंधकार को कर प्रकाश में मिट जाता है जलने वाला!
बनकर मिटना विधि विधान है कभी नहीं यह टलता है, दीपक बुझने को जलता है ।।
सोचा समीर ने इसे बुझा दूँ बुझा नहीं पर जलने वाला, विघ्न आए पर रुका नहीं कर्तव्य मार्ग पर चलने वाला !बुझा पूर्ण कर्तव्य निभा कर रुक जाना ही तो निर्बलता है!
दीपक बुझने को जलता है!!
राजेश पूर्ण निष्काम भाव युत सेवा ही सच्चा साधन है ,
परहित ही प्रभु की पूजा है यही दीप का जीवन धन है !
प्रकृति नियम अनुसार दीप क्या सूरज भी तो ढ़लता है दीपक बुझने को जलता है !!
मेरे विचार से पूज्य योगी जी अपने दिव्य शरीर से
स्व प्रदत्त दिव्य साधना के रूप में, तप -सेवा- सुमिरन के रूप में व पूज्य गुरुदेव के रूप में मार्गदर्शक बनकर हम सभी के सदैव साथ हैं तथा हम सब की साधना पर पल-पल नजर रखते हैं।
" *जाता नहीं है कोई दुनिया से दूर चलकर।*
*मिलते हैं सब यहीं पर कपड़े बदल बदल कर !!*
आज निर्वाण दिवस के अवसर पर परमपूज्य गुरूदेव ब्रह्मर्षि श्री हृदय योगी जी के चरणों में कोटिश: प्रणाम व भावात्मक श्रद्धासुमन !
" *अपनी दशा बनाने भटका जहाँ में दर दर !*
*तूने दशा बना दी पल में दिशा दिखाकर !!*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
*आचार्य गोपाल कृष्ण*