17/05/2021
आधुनिक युग के बदले हुए परिवेश में लोगों को जटिल बीमारियों से बचाना एवं उन्हें स्वस्थ रखना स्वयं में एक बहुत बड़ी चुनौती है।
प्रत्येक प्राणी स्वयं को इस बदले हुए पर्यावरण के अनुसार ढालने की कोशिश कर रहा है।
काल का हीन, मिथ्या तथा अतियोग हो रहा है।
उदाहरणार्थ - वर्षा के समय बारिश न हो कर अगले ऋतु में बारिश होती है या तो बारिश नहीं होती है या फिर अधिक मूसलाधार बारिश होती है।
ऐसी परिस्थिति में मनुष्य जाति को ऋतुओं के अनुसार किस तरह का खान पान व रहन सहन करना चाहिए, इसके बारे में आयुर्वेद (अथर्ववेद का उपवेद) में महत्वपूर्ण बातें बतायी गई हैं।
यदि इन बातो का नियमित वा पूर्णत: पालन किया जाए तो स्वयं को स्वस्थ रख सकते है।
ऋतु वा काल-
-ऋतुएं छः होती हैं - शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत
-आयन या काल दो होते हैं - दक्षिणायन, उत्तरायन इन्हें क्रमशः विसर्गकाल व आदानकाल भी कहते हैं।
ग्रीष्म(गर्मी) ऋतु में खान - पान व रहन - सहन
सेव्य आहार
-मधुर, शीतल द्रव तथा स्निग्ध खान - पान हितकारी है।
-शीतल जल के साथ चीनी और घी मिला सत्तू का सेवन अच्छा पथ्य है।
- रात्रि में चीनी मिलाकर दूध (हो सके तो भैंस) पियें।
चावल से बनी (घृत वा शर्करा युक्त) खीर खाएं।
सेव्य विहार
प्रतिदिन स्वच्छ वा शीतल जल से स्नान करे।
- चंदन का लेप लगाएं।
- हल्के वा महीन वस्त्र धारण करें।-
- दिन में 1 मुहूर्त (45 मिनट) शीतल कमरे में सोये और रात को चन्द्रमा की चांदनी से व्याप्त मकान की छत पर सोना चाहिए।
त्याज्यआहार
नमकीन, खट्टे, चटपटे रस वाले पदार्थों का सेवन छोड़ दें अथवा कम करें।
त्याज्य विहार
धूप से बचें
-व्यायाम बहुत कम करें या न करें।
( Ref-सुश्रुत संहिता ,चरकसंहिता, अष्टांगह्रदयम )
श्री आयुविश्व आयुर्वेदिक चिकित्सालय वा पंचकर्म केंद्र
(पता- इन्दिरा नगर, लखनऊ )
डॉ. राजन वर्मा
आयुर्वेदाचार्य (पुणे)
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