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कर्मों का सिद्धांत बृहदारण्यक उपनिषद भारतीय दर्शन के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है, और यह कर्म सिद्धांत को गहराई से सम...
28/05/2025

कर्मों का सिद्धांत

बृहदारण्यक उपनिषद भारतीय दर्शन के महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है, और यह कर्म सिद्धांत को गहराई से समझाता है। इसका सार कुछ इस प्रकार है:
बृहदारण्यक उपनिषद में कर्म सिद्धांत का सारांश:
बृहदारण्यक उपनिषद, जो शुक्ल यजुर्वेद से जुड़ा है, कर्म सिद्धांत को पुनर्जन्म और आत्मा के साथ जोड़कर प्रस्तुत करता है। यह उपनिषद इस बात पर जोर देता है कि मनुष्य के कर्म उसके भविष्य और अगले जन्म की दिशा निर्धारित करते हैं।
यहां कुछ मुख्य बिंदु दिए गए हैं:
* कर्म और पुनर्जन्म का संबंध: उपनिषद स्पष्ट रूप से बताता है कि वर्तमान जीवन में किए गए कर्म (अच्छे या बुरे) भविष्य के जन्म और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।
* "मनुष्य जो कर्म करता है, वैसा ही बनता है।" (बृहदारण्यक उपनिषद 4.4.5) यह सूत्र कर्म सिद्धांत का केंद्रीय विचार है, जिसका अर्थ है कि आपके कार्य आपके चरित्र और नियति को आकार देते हैं।
* शुभ कर्म शुभ फल देते हैं और अशुभ कर्म अशुभ फल देते हैं। यह एक अटल नियम है।
* कर्म की निरंतरता: जीवन में कर्मों का चक्र निरंतर चलता रहता है। व्यक्ति कर्म किए बिना एक क्षण भी नहीं रह सकता। यह संसार चक्र कर्मों की गति से ही चलता है।
* स्वतंत्रता और विवेक: बृहदारण्यक उपनिषद यह भी बताता है कि मनुष्य अपने कर्मों को चुनने के लिए स्वतंत्र है। विवेक और सही ज्ञान का उपयोग करके व्यक्ति सत्कर्मों का चुनाव कर सकता है। जब विवेक लोभ, मोह और अहंकार के वश में आ जाता है, तो अशुभ कर्म होते हैं।
* फल की निश्चितता और समय: प्रत्येक कर्म का परिणाम निश्चित होता है। कर्मों का फल तुरंत मिले या भविष्य में, यह तय होता है।
* आत्म-ज्ञान और कर्म: उपनिषद में यह भी बताया गया है कि आत्मा कर्म और पाप-पुण्य से परे है। जीवात्मा कर्मों का अर्जन करती है और उनके फल भोगती है, लेकिन आत्मा स्वयं अकर्ता और साक्षी है। आत्म-ज्ञान की प्राप्ति से व्यक्ति कर्मों के बंधन से मुक्त हो सकता है। यह कर्मों का त्याग नहीं, बल्कि कर्मों के प्रति अनासक्ति का भाव है।
* मोक्ष का मार्ग: कर्मों के बंधन से मुक्ति और परम आनंद की प्राप्ति का मार्ग निष्काम कर्म और आत्म-ज्ञान में निहित है। जब व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन निष्काम भाव से करता है, बिना फल की इच्छा के, तो वह कर्म के बंधन से मुक्त हो जाता है।
संक्षेप में, बृहदारण्यक उपनिषद कर्म सिद्धांत को एक ऐसी सार्वभौमिक व्यवस्था के रूप में प्रस्तुत करता है जहाँ प्रत्येक क्रिया का एक प्रतिक्रिया होती है, और यह प्रतिक्रिया न केवल वर्तमान जीवन को प्रभावित करती है, बल्कि भविष

अतिचारी गुरु: ऐतिहासिक प्रभाव और उसके उपायपरिचय:ज्योतिष शास्त्र में गुरु (बृहस्पति) को ज्ञान, धर्म, नीति, संतान, धन और श...
16/05/2025

अतिचारी गुरु: ऐतिहासिक प्रभाव और उसके उपाय

परिचय:

ज्योतिष शास्त्र में गुरु (बृहस्पति) को ज्ञान, धर्म, नीति, संतान, धन और शुभता का प्रतिनिधि माना जाता है। जब गुरु अपनी गति से हटकर अत्यंत तीव्र गति से एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तो इसे अतिचारी गुरु कहा जाता है। इस स्थिति में गुरु कुछ ही दिनों के लिए किसी राशि में रहता है और फिर अगले चिन्ह में प्रवेश कर जाता है। यह खगोलीय स्थिति अनेक बार दुर्लभ घटनाओं से जुड़ी होती है, और इसका प्रभाव संपूर्ण मानव समाज, प्रकृति, और व्यक्तिगत जीवन पर भी गहरा होता है।

अतिचारी गुरु क्या है?

गुरु सामान्यतः एक राशि में लगभग 13 महीने तक रहता है, लेकिन जब वह वक्री (retrograde) या मार्गी (direct) होते समय तेजी से राशि परिवर्तन करता है, तब वह अतिचारी कहलाता है। यह स्थिति आम तौर पर तब होती है जब गुरु वक्री होकर पिछले चिन्ह में लौटता है या तेज़ी से मार्गी होकर अगली राशि में प्रवेश कर जाता है।

ऐतिहासिक प्रभाव:

राजनीतिक घटनाएं:

जब-जब गुरु ने अतिचारी गति की, तब-तब विश्व राजनीति में अस्थिरता देखी गई है।

उदाहरणस्वरूप:
महाभारत का युद्ध
द्वितीय विश्व युद्ध
कॉविड-19

प्राकृतिक आपदाएं:

अतिचारी गुरु के समय जलवायु असंतुलन, भूकंप, तूफान जैसी आपदाओं में वृद्धि देखी गई है।

आर्थिक प्रभाव:

शेयर बाजार में अस्थिरता, मुद्रा की गिरावट या वृद्धि, तथा वैश्विक आर्थिक संकटों के समय गुरु की अतिचारी स्थिति देखी गई है।

व्यक्तिगत जीवन में प्रभाव:

संतान संबंधी समस्याएं, विवाह में देरी, शिक्षा में बाधा और धर्म से विचलन – ये सभी अतिचारी गुरु के कारण हो सकते हैं।

कई बार यह असमंजस, निर्णय में भ्रम और आध्यात्मिक असंतुलन भी लाता है।

उपाय (Remedies):

गुरुवार का व्रत रखें: यह व्रत बृहस्पति की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ उपाय है।

पीली वस्तुओं का दान करें: जैसे – चना दाल, हल्दी, पीला वस्त्र, पुस्तकें।

गुरु मंत्र का जाप करें:

"ॐ बृं बृहस्पतये नमः" – इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।

ब्रह्मणों या आचार्यों को भोजन कराएं: यह गुरु के कुप्रभाव को कम करता है।

पीपल वृक्ष की पूजा करें: विशेष रूप से बृहस्पतिवार को।

विद्या और धर्म कार्यों में योगदान दें: गुरु ज्ञान और धर्म का कारक है, अतः इन क्षेत्रों में सेवा करना शुभ होता है।

निष्कर्ष:

अतिचारी गुरु एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना है, जिसका प्रभाव केवल व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह समाज, राष्ट्र और विश्व पर भी प्रभाव डालता है। इससे उत्पन्न चुनौतियों से बचने के लिए ज्योतिषीय उपायों के साथ-साथ आत्मचिंतन और सकारात्मक कर्म करना भी आवश्यक है। यदि व्यक्ति धर्म, ज्ञान और विवेक के मार्ग पर चलता है, तो गुरु की कोई भी स्थिति उसे उन्नति से नहीं रोक सकती।

यदि आप जानना चाहते हैं कि आपके कुंडली में अतिचारी गुरु का क्या प्रभाव है, तो आप अपनी जन्म कुंडली की जांच किसी योग्य ज्योतिषाचार्य से अवश्य कराएं।

राशि अनुसार भविष्य जानने के लिए नीचे कमेंट करें

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13/02/2025

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