Everything is present

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Dr. Baleshwar Sharma

Be sensible.... Dhanyavaad
29/03/2022

Be sensible.... Dhanyavaad

02/03/2022

वह इंसान जो अकेले रहकर भी खुश है असल में वही इंसान कहलाने योग्य है। अगर आपकी खुशी दूसरों पर निर्भर करती है तो आप एक गुलाम हो। अभी आप पूरी तरह से मुक्त नहीं हुए हो अभी आप गुलामी में बंधे हो।

07/10/2020
25/08/2020

अनलहंक, अहं ब्रह्मास्मि!

अलहिल्लज मंसूर एक प्रसिद्ध सूफी हुआ, जिसका अंग-अंग काट दिया मुसलमानों ने, क्योंकि वह ऐसी बातें कह रहा था जो कुरान के खिलाफ पड़ती थीं। धर्म के खिलाफ नहीं। मगर किताबें बड़ी छोटी हैं, उनमें धर्म समाता नहीं। अलहिल्लज मंसूर की एक ही आवाज थी--- अनलहंक, अहं ब्रह्मास्मि! और यह मुसलमानों के लिए बरदाश्त के बाहर था कि कोई अपने को ईश्वर कहे। उन्होंने उसे जिस तरह सताकर मारा है, उस तरह दुनिया में कोई आदमी कभी नहीं मारा गया। उस दिन दो धटनाएं घटी। मंसूर का गुरू जुन्नैद, सिर्फ गुरू ही रहा होगा। गुरू जो कि दर्जनों में खरीदे जा सकते हैं, हर जगह मौजूद हैं, गांव-गांव में मौजूद हैं। कुछ भी कान में फूंक देते हैं और गुरू बन जाते हैं।

जुन्नैद उसको कह रहा था कि देख, भला तेरा अनुभव सच हो कि तू ईश्वर है, मगर कह मत। अलहिल्लज कहता कि यह मेरे बस के बाहर है। क्योंकि जब मैं मस्ती मे छाता हूं और जब मौज की घटनाएँ मुझे घेर लेती है, तब न तुम मुझे याद रहते हो न मुसलमान याद रहते हैं, न दुनिया याद रहती हैं, न जीवन न मौत। तब मैं अनलहक का उदघोष करता हूं ऐसा नहीं है। उदघोष हो जाता है। मेरी सांस-सांस में वह अनुभव व्याप्त है।

अंततः वह पकड़ा गया। जिस दिन वह पकड़ा गया, वह अपनी ही परिक्रमा कर रहा था। लोगों ने पूछा, यह तुम क्या कर रहे हो? ये दिन तो काबा जाने के दिन हैं। और जाकर काबा के पवित्र पत्थर के चक्कर लगाने के दिन हैं। तुम खड़े होकर खुद ही अपने चक्कर दे रहे हो? मंसूर ने कहा, कोई पत्थर अहं ब्रह्मास्मि का अनुभव नहीं कर सकता, जो मैं अनुभव करता हूं। अपना चक्कर दे लिया, हज हो गईं। बिना कहीं गए, घर बैठे अपने ही आंगन में ईश्वर को बुला लिया। ऐसी सच्ची बातें कहने वाले आदमी को हमेशा मुसीबत में पड़ जाना है। उसे सुली पर लटकाया गया, पत्थर फेंके गए, वह हंसता रहा। जुन्नैद भी भीड़ में खड़ा था। जुन्नैद डर रहा था कि अगर उसने कुछ भी न फेंका तो भीड़ समझेगी कि वह मंसूर के खिलाफ नहीं है। तो वह एक फूल छिपा लाया था। पत्थर तो वह मार नहीं सकता था। वह जानता था कि मंसूर जो भी कह रहा है, उसकी अंतर-अनुभूति है। हम नहीं समझ पा रहे हैं; यह हमारी भूल है। उसने फूल फेंककर मारा।

उस भीड़ मे जहां पत्थर पड़ रहे थे...जब तक पत्थर पड़ते रहे, मंसूर हंसता रहा। और जैसे ही फूल उसे लगा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे! किसी ने पूछा कि क्यों पत्थर तुम्हें हंसते हैं, फूल तुम्हें रूलाते हैं? मंसूर ने कहा, पत्थर जिन्होंने मारे थे वे अनजान थे। फूल जिसने मारा है, उसे वहम है कि वह जानता है। उस पर मुझे दया आती है। मेरे पास उसके लिए देने को आंसूओं के सिवाय और कुछ भी नहीं है। और जब उसके पैर काटे गए और हाथ काटे गए, तब उसने आकाश की ओर देखा और जोर से खिलखिलाकर हंसा। लहूलुहान शरीर, लाखों की भीड़। लोगों ने पूछा, तुम क्यों हंस रहे हो? तो उसने कहा, मै ईश्वर को कह रहा हूं कि क्या खेल दिखा रहे हो! जो नहीं मर सकता उसे मारना का इतना आयोजन...। नाहक इतने लोगों का समय खराब कर रहे हो। और इसलिए हंस रहा हूं कि तुम जिसे मार रहे हो, वह मैं नहीं हूं। और जो मैं हूं, उसे तुम छू भी नहीं सकते। तुम्हारी तलवारें उसे नहीं काट सकती। और तुम्हारी आगे उसे नहीं जला सकती। एक बार अपने जीवन की धारा से थोड़ा सा परिचय हो जाए, मौत का भय मिट जाता है।

05/08/2020

ये मिट्टी किसी को नही छोडेगी:-

एक राजा बहुत ही महत्त्वाकांक्षी था और उसे महल बनाने की बड़ी महत्त्वाकांक्षा रहती थी उसने अनेक महलों का निर्माण करवाया!

रानी उनकी इस इच्छा से बड़ी व्यथित रहती थी की पता नही क्या करेंगे इतने महल बनवाकर!

एक दिन राजा नदी के उस पार एक महात्मा जी के आश्रम के वहाँ से गुजर रहे थे तो वहाँ एक संत की समाधी थी और सैनिकों से राजा को सूचना मिली की संत के पास कोई अनमोल खजाना था और उसकी सूचना उन्होंने किसी को न दी पर अंतिम समय मे उसकी जानकारी एक पत्थर पर खुदवाकर अपने साथ ज़मीन मे गढ़वा दिया और कहा की जिसे भी वो खजाना चाहिये उसे अपने स्वयं के हाथों से अकेले ही इस समाधी से चोरासी हाथ नीचे सूचना पड़ी है निकाल ले और अनमोल सूचना प्राप्त कर लेंवे और ध्यान रखे उसे बिना कुछ खाये पिये खोदना है और बिना किसी की सहायता के खोदना है अन्यथा सारी मेहनत व्यर्थ चली जायेगी !

राजा अगले दिन अकेले ही आया और अपने हाथों से खोदने लगा और बड़ी मेहनत के बाद उसे वो शिलालेख मिला और उन शब्दों को जब राजा ने पढ़ा तो उसके होश उड़ गये और सारी अकल ठिकाने आ गई!

उस पर लिखा था हॆ राहगीर संसार के सबसे भूखे प्राणी शायद तुम ही हो और आज मुझे तुम्हारी इस दशा पर बड़ी हँसी आ रही है तुम कितने भी महल बना लो पर तुम्हारा अंतिम महल यही है एक दिन तुम्हे इसी मिट्टी मे मिलना है!

सावधान राहगीर, जब तक तुम मिट्टी के ऊपर हो तब तक आगे की यात्रा के लिये तुम कुछ जतन कर लेना क्योंकि जब मिट्टी तुम्हारे ऊपर आयेगी तो फिर तुम कुछ भी न कर पाओगे यदि तुमने आगे की यात्रा के लिये कुछ जतन न किया तो अच्छी तरह से ध्यान रखना की जैसै ये चोरासी हाथ का कुआं तुमने अकेले खोदा है बस वैसे ही आगे की चोरासी लाख योनियों मे तुम्हे अकेले ही भटकना है और हॆ राहगीर ये कभी न भूलना की "मुझे भी एक दिन इसी मिट्टी मे मिलना है बस तरीका अलग अलग है"

फिर राजा जैसै तैसे कर के उस कुएँ से बाहर आया और अपने राजमहल गया पर उस शिलालेख के उन शब्दों ने उसे झकझोर के रख दिया और सारे महल जनता को दे दिये और "अंतिम घर" की तैयारियों मे जुट गया!

हमें एक बात हमेशा याद रखना की इस मिट्टी ने जब रावण जैसै सत्ताधारियों को नही बक्सा तो फिर साधारण मानव क्या चीज है इसलिये ये हमेशा याद रखना की मुझे भी एक दिन इसी मिट्टी मे मिलना है क्योंकि ये मिट्टी किसी को नही छोड़ने वाली है!

23/07/2020

stay away from ego
na kuch ruka hai , na kuch rukega .
anjaan hai sab magar shaib,
kahte to sab yahi hai ki vo
sab jaante hai, ab to ye malik ko
he pta hai kon kitna jaankaar hai.

19/05/2020

12/03/2019

यह तन विष की वेलरी, गुरू अमृत की खान,
शीश दिये तो गुरू मिले, तो भी ससृता जान
धनयवाद

30/05/2018

जो आज नही है .
ं वो कल नहीं हो सकता ..

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