01/01/2014
कुमार विश्वास जी,आप नामी आदमी हैं, मशहूर हैं, आपके गीत सबके मोबाइल में रहते हैं, दुनिया आपको जानती हैं, लेकिन आप शायद मुझे से अंजान हैं। होंगे भी क्यों नहीं, मैं एक आम आदमी, या फिर कहूं कि आम औरत हूं। एक साधारण, मिडिल क्लास फैमिली से वास्ता रखने वाली आम इंसान। शायद यही वजह है कि ट्विटर पर मैंने आपसे जो सवाल कई बार पूछा, आपने उसका जवाब देने की परवाह तक नहीं की। मुझे लगा कि हमारा परिचय होना जरूरी है, शायद उसके बाद आप मेरे साधारण से सवाल का जवाब देने की तकलीफ उठा पाएं।
मेरा नाम असना है, असना रिज़वी। आपकी दिल्ली से बस 85 किलोमीटर दूर मेरा गांव है, सरधना के पास, जो कि मेरठ की तहसील है। यहां और दिल्ली में पली, बड़ी हुई। मुजफ्फरनगर का इलाका भी यहां से दूर नहीं है। पिछले 26 साल में मैंने बहुत कुछ देखा, सुना और सीखा। आपके जितना नहीं, एक आम इंसान जैसा। पुरानी क्या कहूं, सबसे ताजे सबक से शुरुआत करती हूं। मुजफ्फरनगर में जब मासूमों का खून बह रहा था, तब मैं उसी इलाके में थी। वो दहशत की चीख अब भी मेरे कानों में हैं, वो मजबूरी भरी सिसकारियां अब भी मुझे सुनाई देती हैं, उनके बेघर होने की वो बेबसी अब भी मुझे घर के अंदर डराती हैं। इसके बावजूद हमने सीखा कि गुस्से का जवाब गुस्सा नहीं होता। गुस्से का जवाब इंसाफ के लिए लड़ना होता है।
मैंने दिल्ली में रहते हुए आप-की क्रांति भी देखी। देखा कि कैसे अरविंद केजरीवाल जी की अगुवाई में एक नई राजनीतिक शुरुआत हई। कैसे मजहब, जात, गरीब और अमीर की राजनीति के बंधन टूटे, कैसे लोगों में एक नई आस दिखी, कैसे नए साल की शुरुआत में लोगों को नए सपने मिले। लेकिन मैंने यह भी देखा कि कैसे इस उम्मीद की आड़ में कुछ लोग नकाब लगाए बैठे हैं, कैसे कुछ लोग बदलाव की इस आग में अपनी रोटियां सेंक रहे हैं। कैसे एक शख्स जो कभी इमाम साहब का मजाक बनाकर तालियां की कमाई करता था, कैसे एक शख्स भगवान शिव का मजाक बनाकर स्टेज शो के बैंक बैलेंस बनाता था, कैसे वह दंभ की आवाज भरकर चेहरा बदल रहा है। कैसे एक शख्स जो गुजरात के नरसंहार के सबसे बड़े दोषी के दरबार का राग दरबारी बनता था, कैसे वह चुनाव की आग में बड़े नामों का हल्ला मचा के अपना कद बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
हो सकता है कि मेरा नजरिया गलत हो, हो सकता है मेरी जानकारी में कुछ कमी रह गई हो, लेकिन कुछ मतभेद तो है। मुझे उस शख्स की टोन में दंभ, दोमुंहेपन, सांप्रदायिकता की बू आती है जिसके – कोई दीवाना कहता है- के गीत को सुनकर हम कभी झूमा करते थे। लेकिन मतभेद है तो है। जैसा आपका कांग्रेस और बीजेपी के साथ अब तथाकथित तौर पर है। इसी मतभेद के आधार पर आप दुनिया को चैलेंज कर रहे हैं। दुनिया आप की बात सुनती है क्योंकि आप आम आदमी नहीं बल्कि एक बेहद खास आदमी बन गए हैं। आप राहुल गांधी को अमेठी जाकर चैलेंज करते हैं तो पहले पन्ने की खबर बनती है, आप मोदी को अमेठी से आकर लड़ने का न्यौता देते हैं तो टीवी चैनलों पर बहस होती है।
लेकिन जब मुझ जैसा एक आम इंसान आपको चैलेंज करता है, जब मैं आपको चैलेंज करती हूं कि आप लोकसभा चुनाव में मेरठ से मेरे खिलाफ लड़ने का दम दिखाएं, तो अफसोस, आप इसका जवाब देने की भी जरूरत महसूस नहीं करते। अफसोस आपके आम आदमी की नेम प्लेट पर आपके अंदर का खास आदमी हावी हो जाता है।
लोग मुझसे सवाल करते हैं कि मेरठ से क्यों, तुम अमेठी से क्यों नहीं लड़़ लेती, लोग मुझ पर उंगली उठाते हैं कि तुम कांग्रेस की एजेंट हो और अपने शहजादे के बचाव का ड्रामा कर रही है, मैं इनका जवाब देती हूं। मैं कहती हूं कि मेरी जड़े मेरठ में हैं और मैं अपनी जमीन से आपको चुनौती दे रही हूं। मैं कहती हूं कि मैं आपकी पार्टी को किसी और पार्टी के एजेंट के तौर पर नहीं बल्कि एक आम औरत के नाते एक आम आदमी के नुमाइंदे को चैलेंज कर रही हूं, लेकिन ये बातें आप तक नहीं पहुंचती।
आप बहुत दूर हैं, बहुत बिजी हैं… लेकिन आपके पास खास लोगों को चैलेंज करने का टाइम है, खास बनने की रेस बहुत खास होती है। आपके बारे में मेरी जो धारणा है वह गलत हो सकती थी, लेकिन जिस दंभ के साथ आपने मेरे सवालों का जवाब देने की भी नहीं सोची, उससे मुझे लगता है कि आम आदमी आपके लिए बस मुखौटा है, जो आज नहीं तो कल जरूर उतरेगा।
अगर मैं गलत हूं तो आप मुझे गलत साबित कीजिए, मेरे सवालों का जवाब देकर। साबित कीजिए कि आम आदमी की जिस ताकत को दुनिया ने देखा उसमें कोई फरेब नहीं है। नए साल की शुभकामनाओं के साथ
Asna Says -
असना रिज़वी