21/08/2025
आयुर्वेद के अनुसार, GERD (गैस्ट्रोएसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज) और अम्लपित्त एक-दूसरे से बहुत मिलते-जुलते हैं।
आधुनिक चिकित्सा में जिसे GERD कहा जाता है, उसे आयुर्वेद में आमतौर पर अम्लपित्त के रूप में जाना जाता है।
इन दोनों के बीच का संबंध समझने के लिए, हमें आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों को समझना होगा।
अम्लपित्त क्या है?
आयुर्वेद में, शरीर के तीन प्रमुख दोष होते हैं - वात, पित्त और कफ। इन तीनों का संतुलन ही स्वस्थ जीवन का आधार है।
* पित्त दोष: पित्त दोष अग्नि और जल तत्वों से बना होता है और यह पाचन, चयापचय और शरीर में गर्मी को नियंत्रित करता है।
* अम्ल (एसिड): जब पित्त दोष असंतुलित होकर बढ़ जाता है, तो यह शरीर में अम्ल (एसिड) की मात्रा को बढ़ा देता है। इसी स्थिति को अम्लपित्त कहा जाता है।
अम्लपित्त के मुख्य कारण:
* गलत खान-पान: बहुत अधिक मसालेदार, तला हुआ, खट्टा या तीखा भोजन करना।
* जीवनशैली: अनियमित भोजन का समय, देर रात तक जागना, धूम्रपान और शराब का सेवन।
* मानसिक तनाव: क्रोध, चिंता और तनाव भी पित्त को बढ़ाते हैं।
* पाचन अग्नि (अग्निमांद्य) की कमजोरी: कमजोर पाचन अग्नि भोजन को ठीक से पचा नहीं पाती, जिससे विषाक्त पदार्थ (आम) बनते हैं। ये विषाक्त पदार्थ पित्त को और भी बढ़ा देते हैं।
अम्लपित्त के लक्षण:
* छाती और पेट में जलन (Heartburn)
* खट्टी डकारें
* जी मिचलाना या उल्टी
* पेट में दर्द और भारीपन
* भोजन करने की इच्छा न होना
GERD और अम्लपित्त का संबंध
GERD एक ऐसी स्थिति है जिसमें पेट का एसिड भोजन नली (Esophagus) में वापस आ जाता है, जिससे छाती में जलन होती है। आयुर्वेद में इसे पित्त दोष के असंतुलन से जोड़ा जाता है।
* अम्ल का अतिउत्पादन: गलत खान-पान और जीवनशैली के कारण पित्त दोष बढ़ता है, जिससे पेट में एसिड का उत्पादन अधिक हो जाता है।
* ऊर्ध्वगामी गति: पित्त की गर्मी और गतिशीलता के कारण, यह बढ़ा हुआ एसिड ऊपर की ओर, यानी भोजन नली में चला जाता है। इसी स्थिति को आयुर्वेद में "ऊर्ध्वगामी पित्त" या "ऊर्ध्वग अम्लपित्त" भी कहा जाता है।
इस प्रकार, आयुर्वेद के अनुसार, GERD कोई अलग बीमारी नहीं है, बल्कि यह अम्लपित्त का एक उन्नत या विशिष्ट रूप है, जिसमें पित्त दोष की अधिकता और ऊर्ध्वगामी गति के कारण लक्षण प्रकट होते हैं।