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ब्राह्मणों के 8 प्रकार जानिए कौन सेप्राचीन काल में हर जाति, समाज आदि का व्यक्ति ब्राह्मण बनने के लिए उत्सुक रहता था। ब्र...
23/11/2025

ब्राह्मणों के 8 प्रकार जानिए कौन से

प्राचीन काल में हर जाति, समाज आदि का व्यक्ति ब्राह्मण बनने के लिए उत्सुक रहता था। ब्राह्मण होने का अधिकार सभी को आज भी है। चाहे वह किसी भी जाति, प्रांत या संप्रदाय से हो वह गायत्री दीक्षा लेकर ब्राह्मण बन सकता है, लेकिन ब्राह्मण होने के लिए कुछ नियमों का पालन करना होता है। हम उस ब्राह्मण समाज की बात नहीं कर रहे हैं जिनमें से अधिकतर ने अपने ब्राह्मण कर्म छोड़कर अन्य कर्मों को अपना लिया है। हालांकि अब वे ब्राह्मण नहीं रहे लेकिन कहलाते अभी भी ब्राह्मण ही है।

👉स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है:- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। आठ प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण ‘त्रिशुक्ल’ कहलाते हैं। ब्राह्मण को "धर्मज्ञ " "विप्र" और "द्विज" भी कहा जाता है।*

उपनाम में छुपा है पूरा इतिहास

1👉मात्र : ऐसे ब्राह्मण जो जाति से ब्राह्मण हैं लेकिन वे कर्म से ब्राह्मण नहीं हैं उन्हें मात्र कहा गया है। ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई ब्राह्मण नहीं कहलाता। बहुत से ब्राह्मण ब्राह्मणोचित उपनयन संस्कार और वैदिक कर्मों से दूर हैं, तो वैसे मात्र हैं। उनमें से कुछ तो यह भी नहीं हैं। वे बस शूद्र हैं। वे तरह तरह के देवी-देवताओं की पूजा करते हैं और रा‍त्रि के क्रियाकांड में लिप्त रहते हैं। वे सभी राक्षस धर्मी भी हो सकते हैं।

2👉 ब्राह्मण : ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।

3👉 श्रोत्रिय : स्मृति अनुसार जो कोई भी मनुष्य वेद की किसी एक शाखा को कल्प और छहों अंगों सहित पढ़कर ब्राह्मणोचित 6 कर्मों में सलंग्न रहता है, वह ‘श्रोत्रिय’ कहलाता है।

4👉 अनुचान : कोई भी व्यक्ति वेदों और वेदांगों का तत्वज्ञ, पापरहित, शुद्ध चित्त, श्रेष्ठ, श्रोत्रिय विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला और विद्वान है, वह ‘अनुचान’ माना गया है।

5👉 भ्रूण : अनुचान के समस्त गुणों से युक्त होकर केवल यज्ञ और स्वाध्याय में ही संलग्न रहता है, ऐसे इंद्रिय संयम व्यक्ति को भ्रूण कहा गया है।

6👉 ऋषिकल्प :जो कोई भी व्यक्ति सभी वेदों, स्मृतियों और लौकिक विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मन और इंद्रियों को वश में करके आश्रम में सदा ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए निवास करता है उसे ऋषिकल्प कहा जाता है।

7 👉 ऋषि :ऐसे व्यक्ति तो सम्यक आहार, विहार आदि करते हुए ब्रह्मचारी रहकर संशय और संदेह से परे हैं और जिसके श्राप और अनुग्रह फलित होने लगे हैं उस सत्यप्रतिज्ञ और समर्थ व्यक्ति को ऋषि कहा गया है।

8👉 मुनि : जो व्यक्ति निवृत्ति मार्ग में स्थित, संपूर्ण तत्वों का ज्ञाता, ध्याननिष्ठ, जितेन्द्रिय तथा सिद्ध है ऐसे ब्राह्मण को ‘मुनि’ कहते हैं।

उपरोक्त में से अधिकतर 'मात्र'नामक ब्राह्मणों की संख्‍या ही अधिक है।

सबसे पहले ब्राह्मण शब्द का प्रयोग अथर्वेद के उच्चारण कर्ता ऋषियों के लिए किया गया था। फिर प्रत्येक वेद को समझने के लिए ग्रन्थ लिखे गए उन्हें भी ब्रह्मण साहित्य कहा गया। ब्राह्मण का तब किसी जाति या समाज से नहीं था।

समाज बनने के बाद अब देखा जाए तो भारत में सबसे ज्यादा विभाजन या वर्गीकरण ब्राह्मणों में ही है जैसे:- सरयूपारीण, कान्यकुब्ज , जिझौतिया, मैथिल, मराठी, बंगाली, भार्गव, कश्मीरी, सनाढ्य, गौड़, महा-बामन और भी बहुत कुछ। इसी प्रकार ब्राह्मणों में सबसे ज्यादा उपनाम (सरनेम या टाईटल ) भी प्रचलित है। कैसे हुई इन उपनामों की उत्पत्ति जानते हैं उनमें से कुछ के बारे में।

*एक वेद को पढ़ने वाले ब्रह्मण को पाठक कहा गया।*
*दो वेद पढ़ने वाले को द्विवेदी कहा गया, जो कालांतर में दुबे हो गया।*
*तीन वेद को पढ़ने वाले को त्रिवेदी कहा गया जिसे त्रिपाठी भी कहने लगे,जो कालांतर में तिवारी हो गया।*
*चार वेदों को पढ़ने वाले चतुर्वेदी कहलाए, जो कालांतर में चौबे हो गए।*
*शुक्ल यजुर्वेद को पढ़ने वाले शुक्ल या शुक्ला कहलाए।*
*चारो वेदों, पुराणों और उपनिषदों के ज्ञाता को पंडित कहा गया, जो आगे चलकर पाण्डेय, पांडे, पंडिया, पाध्याय हो गए। ये पाध्याय कालांतर में उपाध्याय हुआ।*
*शास्त्र धारण करने वाले या शास्त्रार्थ करने वाले शास्त्री की उपाधि से विभूषित हुए।*

*इनके अलावा प्रसिद्द ऋषियों के वंशजो ने अपने ऋषिकुल या गोत्र के नाम को ही उपनाम की तरह अपना लिया, जैसे :- भगवन परसुराम भी भृगु कुल के थे। भृगु कुल के वंशज भार्गव कहलाए, इसी तरह गौतम, अग्निहोत्री, गर्ग, भरद्वाज आदि।*

*बहुत से ब्राह्मणों को अनेक शासकों ने भी कई तरह की उपाधियां दी, जिसे बाद में उनके वंशजों ने उपनाम की तरह उपयोग किया। इस तरह से ब्राह्मणों के उपनाम प्रचलन में आए। जैसे, राव, रावल, महारावल, कानूनगो, मांडलिक, जमींदार, चौधरी, पटवारी, देशमुख, चीटनीस, प्रधान,*

*नर्जी, मुखर्जी, जोशीजी, शर्माजी, भट्टजी, विश्वकर्माजी, मैथलीजी, झा, धर, श्रीनिवास, मिश्रा, मेंदोला, आपटे आदि हजारों सरनेम है जिनका अपना अलग इतिहास है।
-ग्रीष्मा।

📜 संकल्प रामराज्य चैनल द्वारा प्रस्तुत — कर्णभेदन संस्कार का अद्भुत अध्यात्म-विज्ञानसनातन परम्परा में सोलह संस्कारों का ...
22/11/2025

📜 संकल्प रामराज्य चैनल द्वारा प्रस्तुत
— कर्णभेदन संस्कार का अद्भुत अध्यात्म-विज्ञान

सनातन परम्परा में सोलह संस्कारों का विधान है, किन्तु उनमें कर्णभेदन संस्कार का रहस्य अत्यन्त गूढ़ है। यह वह विज्ञान है जिसे भारत के ऋषियों ने सहस्रों वर्ष पूर्व जानकर सिद्ध कर लिया था।

नाथसम्प्रदाय में गोरखनाथजी के आदेश से “कनफटा योगी” अत्यन्त विख्यात हुए। “कनफटा” शब्द आपने अवश्य सुना होगा—कर्ण में छेद कराने के पीछे जो रहस्य है, वह केवल धार्मिक या लौकिक परम्परा नहीं, वरन्‌ गहन अध्यात्म-विज्ञान का सूक्ष्मतम स्वरूप है।

यह तथ्य आज भी चकित करता है कि सायटिका से अत्यन्त पीड़ित अनेक रोगियों को चिकित्सक हेलिक्स के समीप एक सूक्ष्म छिद्र कराने की सलाह देते हैं, और आश्चर्य—अगले ही दिवस कष्ट लगभग लुप्त हो जाता है। यह ज्ञान किसी आधुनिक पुस्तक का नहीं, अपितु वही प्राचीन सूक्ष्म-नाड़ी-विज्ञान है जिसे हमारे वैद्य हजारों वर्षों से जानते आए हैं।

सन 1950 में फ्रांस के चिकित्सक डॉ. पॉल नोजियर ने यह अद्भुत बात कही कि मानव-कर्ण का आकार उल्टे भ्रूण के समान प्रतीत होता है। इसी आधार पर उन्होंने “ऑरिकुलर एक्यूपंक्चर” अथवा “इयर रिफ्लेक्सोलॉजी” नामक विज्ञान का विकास किया—जहाँ कर्ण को सम्पूर्ण देह का लघु-विश्व (microcosm) माना गया।

इस सिद्धान्त के अनुसार—
कर्ण के विविध बिन्दु शरीर के विविध अंगों, नाड़ियों और ऊर्जा-पथों से प्रत्यक्ष रूप से सम्बद्ध हैं।
अतः कान पर हल्की उत्तेजना केवल कान तक सीमित नहीं रहती, वह समस्त नर्वस तन्त्र और प्राण-ऊर्जा को संतुलित करती है।

परन्तु, यह ज्ञान नोजियर से सहस्रों वर्ष पूर्व आयुर्वेद और नाथसम्प्रदाय में पूर्णतः विद्यमान था।

आयुर्वेद कर्ण का सम्बन्ध वायु तथा आकाश महाभूतों से मानता है। अतः कर्ण केवल श्रवण-अवयव नहीं, बल्कि सात्त्विकता, मानसिक जागरूकता और चेतना का एक सूक्ष्म द्वार है।
वातदोष बढ़े तो कान में नाद, पित्त अधिक हो तो जलन, और कफ अधिक हो तो भारीपन—यह सब आज भी सत्य है।

सुश्रुत संहिता में कर्ण को केवल श्रवणेंद्रिय न मानकर मस्तिष्क और मन की स्थिरता का केंद्र माना गया है। वहाँ कर्ण-शल्यचिकित्सा तक का विस्तार मिलता है—यह दर्शाता है कि कर्ण-तंत्रिका का ज्ञान कितना परिपक्व था।

एक समान दृष्टिकोण चीन की चिकित्सा में भी है, जहाँ कर्ण को “माइक्रो-सिस्टम” कहा गया है और किडनी मेरिडियन का सीधा सम्बन्ध उससे जोड़ा गया है—जो मूलतः वायु-आकाश तत्व का ही प्रतिबिम्ब है।

इसीलिए नाथ योगियों द्वारा धारण किए जाने वाले मुद्गर-कुंडल केवल पहचान नहीं थे, वरन्‌ वायु-आकाश ऊर्जा को जागृत कर सहस्रार तक पहुँचाने का एक दिव्य माध्यम थे।

इसी प्रकार ताओ मत में कर्ण को ऊर्जा-प्रवाह का मुख्य केंद्र माना गया। उनके “स्पिरिट चैनल” और “ची-ऊर्जा” की अवधारणा मूलतः हमारे “प्राण-ऊर्जा” की ही समकक्ष है।

अब यदि नज़र मिस्र की प्राचीन भूमि पर डालें तो वहाँ भी कर्ण को “दाैवीय प्रकाश” ग्रहण करने का द्वार माना गया। पुजारी बड़े कुंडल पहनते थे—यह केवल अलंकार नहीं, आध्यात्मिक ग्रहणशीलता का प्रतीक था। उनकी ममियों में भी कर्ण-छेदन के प्रमाण स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं।

माया और एज़टेक सभ्यताओं में कान छिदवाना दैवीय ऊर्जा, पुनर्जन्म और चेतना-प्रवाह का चिह्न माना गया। उनके देव इत्ज़ामना के कानों में सर्पाकृति के अलंकार—कुंडलिनी ऊर्जा का सूक्ष्म संकेत हैं।

दुनिया की सभी महान सभ्यताओं की एक ही ध्वनि है—
कर्ण केवल श्रवण का साधन नहीं, दैवीय चेतना का प्रवेश-द्वार है।

इसी सत्य के कारण नाथयोगी कनफटे कहे गए—कर्ण-द्वार को अनाहत नाद के लिए खोल देने वाले।

कर्णभेदन संस्कार इसी आध्यात्मिक विज्ञान का स्थायी रूप है। बच्चे के कान में छेद केवल आभूषण हेतु नहीं, बल्कि ज्ञान-प्राप्ति, मानसिक विकास, और प्राण-ऊर्जा के मुक्त प्रवाह का पवित्र संस्कार है।

अब सबसे रहस्यमयी रहस्य—पीनियल ग्लैंड (आज्ञा चक्र)।
कर्ण-लोब का क्षेत्र सूक्ष्म शरीर में आज्ञा केंद्र से जुड़ा माना गया है। आधुनिक चिकित्सा ने भी पाया है कि कान के लोब के कुछ बिंदुओं को उत्तेजित करने पर मेलाटोनिन और सेरोटोनिन पर प्रभाव पड़ता है—जो पीनियल ग्रंथि ही नियंत्रित करती है।

वैगस नर्व स्टिमुलेशन के अनुसंधानों में यह सिद्ध हो चुका है कि कान पर हल्की उत्तेजना से—

• हृदयगति धीमी होती है
• तनाव घटता है
• गहरी शांति अनुभव होती है
• नींद सुधरती है
• रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है

नाथयोगी इसी विज्ञान को समझकर भारी मुद्गर पहनते थे—ताकि नाद-द्वार सदैव सक्रिय रहे और चेतना सहस्रार की ओर अग्रसर हो।

कर्ण को “शिरोमर्म” क्षेत्र का भाग माना गया है—अर्थात्‌ वह बिंदु जहाँ ऊर्जा अत्यधिक सघन होती है।

अब आते हैं उस सर्वाधिक रहस्यपूर्ण बिंदु पर—
कर्ण के ऊपरी भाग में त्रिकोणाकार गह्वर में स्थित “शेन मेन”—
अर्थ: “आत्मा का द्वार”।

WHO ने भी इसे विश्व के सबसे प्रभावी ऑरिकुलर मास्टर पॉइंट के रूप में मान्यता दी है।

शेन मेन की हल्की उत्तेजना से—

• तनाव, चिंता, अनिद्रा का विनाश
• पैरासिम्पेथेटिक तंत्र की सक्रियता
• ध्यान में अल्फा-थीटा वेव उत्पन्न
• मानसिक शांति और ऊर्जा-संतुलन

यह सब तत्काल घटित होता है।

नाथयोगियों का अनुभव है कि शेन मेन सक्रिय रहे तो अनाहत नाद का श्रवण स्वाभाविक होने लगता है—वह दिव्य ध्वनि जो सृष्टि के मूल में अनवरत निनादित है।

इसलिए वे भारी कुंडल धारण करते हैं—ताकि यह द्वार क्षणभर को भी बंद न हो।

अन्त में, जब आप अपने कान को स्पर्श करते हैं—
समझिए कि आप केवल मांस-लोम को नहीं छू रहे,
आप उस जीवंत द्वार को स्पर्श कर रहे हैं—
जहाँ से भीतरी दिव्यता का प्रकाश प्रकट होता है।

सूर्य की उपासना और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए समर्पित छठ पूजा का पर्व हमारे जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह लेकर आता है। छ...
25/10/2025

सूर्य की उपासना और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए समर्पित छठ पूजा का पर्व हमारे जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह लेकर आता है। छठी मैया का आशीर्वाद हम सभी पर बना रहे। 🙏🌅✨
#छठपूजा #सूर्योपासना #परिवारकीखुशियाँ #धर्मऔरसंस्कृति #छठमैयाकाआशीर्वाद #धन्यवादसूर्य #आस्था

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भाई-बहन का अटूट रिश्ता और स्नेह का पर्व, भाई दूज की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएँ! 👫❤️  #भाईदूज  #भाई_बहन_का_प्यार  #पारिवा...
23/10/2025

भाई-बहन का अटूट रिश्ता और स्नेह का पर्व, भाई दूज की आप सभी को ढेरों शुभकामनाएँ! 👫❤️ #भाईदूज #भाई_बहन_का_प्यार #पारिवारिक_बंधन

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गोवर्धन पूजा के पावन अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करें। शुभ गोवर्धन पूजा! 🌄🙏 #गो...
22/10/2025

गोवर्धन पूजा के पावन अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण आपके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का संचार करें। शुभ गोवर्धन पूजा! 🌄🙏
#गोवर्धनपूजा #कृष्ण_कृपा #आस्था_का_त्योहार

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सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा जी के आशीर्वाद से आपके जीवन में रचनात्मकता, कौशल और समृद्धि का संचार हो। शुभ विश्वकर्मा द...
22/10/2025

सृजन के देवता भगवान विश्वकर्मा जी के आशीर्वाद से आपके जीवन में रचनात्मकता, कौशल और समृद्धि का संचार हो। शुभ विश्वकर्मा दिवस! 🙏🔧
#विश्वकर्मा_दिवस #सृजन

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दीपों का ये त्योहार आपके जीवन में खुशियों की रोशनी और सफलता की नई ऊंचाइयाँ लेकर आए। शुभ दीपावली! 🪔✨ #दीपावली  #खुशियों_क...
20/10/2025

दीपों का ये त्योहार आपके जीवन में खुशियों की रोशनी और सफलता की नई ऊंचाइयाँ लेकर आए। शुभ दीपावली! 🪔✨
#दीपावली #खुशियों_की_रोशनी #शुभदीपावली

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धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं! माँ लक्ष्मी और भगवान धनवंतरि की कृपा से आपके घर में सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का वास...
18/10/2025

धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं! माँ लक्ष्मी और भगवान धनवंतरि की कृपा से आपके घर में सुख, समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का वास हो। 🪔💰
#धनतेरस #सुख_समृद्धि # #माँलक्ष्मी

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15/10/2025
प्यार और विश्वास का त्योहार, करवा चौथ पर अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना। 🌙❤करवा चौथ की शुभकामनाएं! 🙏✨ ...
10/10/2025

प्यार और विश्वास का त्योहार, करवा चौथ पर अपने जीवनसाथी की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना। 🌙❤
करवा चौथ की शुभकामनाएं! 🙏✨
#करवाचौथ #प्यार_का_बंधन #सदा_साथ

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काशी में मणिकर्णिका घाट पर चिता जब शांत हो जाती है तब मुखाग्नि देने वाला व्यक्ति चिता भस्म पर 94 लिखता है। यह सभी को नही...
26/09/2025

काशी में मणिकर्णिका घाट पर चिता जब शांत हो जाती है तब मुखाग्नि देने वाला व्यक्ति चिता भस्म पर 94 लिखता है।

यह सभी को नहीं मालूम है। खांटी बनारसी लोग या अगल बगल के लोग ही इस परम्परा को जानते हैं। बाहर से आये शवदाहक जन इस बात को नहीं जानते।

जीवन के शतपथ होते हैं। 100 शुभ कर्मों को करने वाला व्यक्ति मरने के बाद उसी के आधार पर अगला जीवन शुभ या अशुभ प्राप्त करता है। 94 कर्म मनुष्य के अधीन हैं। वह इन्हें करने में समर्थ है पर 6 कर्म का परिणाम ब्रह्मा जी के अधीन होता है।हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश- अपयश ये 6 कर्म विधि के नियंत्रण में होते हैं।

अतः आज चिता के साथ ही तुम्हारे 94 कर्म भस्म हो गये। आगे के 6 कर्म अब तुम्हारे लिए नया जीवन सृजित करेंगे।
अतः 100 - 6 = 94 लिखा जाता है।

गीता में भी प्रतिपादित है कि मृत्यु के बाद मन अपने साथ 5 ज्ञानेन्द्रियों को लेकर जाता है। यह संख्या 6 होती है। मन और पांच ज्ञान इन्द्रियाँ।
अगला जन्म किस देश में कहाँ और किन लोगों के बीच होगा यह प्रकृति के अतिरिक्त किसी को ज्ञात नहीं होता है। अतः 94 कर्म भस्म हुए 6 साथ जा रहे हैं।
विदा यात्री। तुम्हारे 6 कर्म तुम्हारे साथ हैं।

आपके लिए इन 100 शुभ कर्मों का विस्तृत विवरण दिया जा रहा है जो जीवन को धर्म और सत्कर्म की ओर ले जाते हैं एवं यह सूची आपके जीवन को सत्कर्म करने की प्रेरणा देगी......

100 शुभ कर्मों की गणना धर्म और नैतिकता के कर्म-
1.सत्य बोलना
2.अहिंसा का पालन
3.चोरी न करना
4.लोभ से बचना
5.क्रोध पर नियंत्रण
6.क्षमा करना
7.दया भाव रखना
8.दूसरों की सहायता करना
9.दान देना (अन्न, वस्त्र, धन)
10.गुरु की सेवा
11.माता-पिता का सम्मान
12.अतिथि सत्कार
13.धर्मग्रंथों का अध्ययन
14.वेदों और शास्त्रों का पाठ
15.तीर्थ यात्रा करना
16.यज्ञ और हवन करना
17.मंदिर में पूजा-अर्चना
18.पवित्र नदियों में स्नान
19.संयम और ब्रह्मचर्य का पालन
20.नियमित ध्यान और योग सामाजिक और पारिवारिक कर्म
21.परिवार का पालन-पोषण
22.बच्चों को अच्छी शिक्षा देना
23.गरीबों को भोजन देना
24.रोगियों की सेवा
25.अनाथों की सहायता
26.वृद्धों का सम्मान
27.समाज में शांति स्थापना
28.झूठे वाद-विवाद से बचना
29.दूसरों की निंदा न करना
30.सत्य और न्याय का समर्थन
31.परोपकार करना
32.सामाजिक कार्यों में भाग लेना
33.पर्यावरण की रक्षा
34.वृक्षारोपण करना
35.जल संरक्षण
36.पशु-पक्षियों की रक्षा
37.सामाजिक एकता को बढ़ावा देना
38.दूसरों को प्रेरित करना
39.समाज में कमजोर वर्गों का उत्थान
40.धर्म के प्रचार में सहयोग आध्यात्मिक और व्यक्तिगत कर्म
41.नियमित जप करना
42.भगवान का स्मरण
43.प्राणायाम करना
44.आत्मचिंतन
45.मन की शुद्धि
46.इंद्रियों पर नियंत्रण
47.लालच से मुक्ति
48.मोह-माया से दूरी
49.सादा जीवन जीना
50.स्वाध्याय (आत्म-अध्ययन)
51.संतों का सान्निध्य
52.सत्संग में भाग लेना
53.भक्ति में लीन होना
54.कर्मफल भगवान को समर्पित करना
55.तृष्णा का त्याग
56.ईर्ष्या से बचना
57.शांति का प्रसार
58.आत्मविश्वास बनाए रखना
59.दूसरों के प्रति उदारता
60.सकारात्मक सोच रखना सेवा और दान के कर्म
61.भूखों को भोजन देना
62.नग्न को वस्त्र देना
63.बेघर को आश्रय देना
64.शिक्षा के लिए दान
65.चिकित्सा के लिए सहायता
66.धार्मिक स्थानों का निर्माण
67.गौ सेवा
68.पशुओं को चारा देना
69.जलाशयों की सफाई
70.रास्तों का निर्माण
71.यात्री निवास बनवाना
72.स्कूलों को सहायता
73.पुस्तकालय स्थापना
74.धार्मिक उत्सवों में सहयोग
75.गरीबों के लिए निःशुल्क भोजन
76.वस्त्र दान
77.औषधि दान
78.विद्या दान
79.कन्या दान
80.भूमि दान, नैतिक और मानवीय कर्म
81.विश्वासघात न करना
82.वचन का पालन
83.कर्तव्यनिष्ठा
84.समय की प्रतिबद्धता
85.धैर्य रखना
86.दूसरों की भावनाओं का सम्मान
87.सत्य के लिए संघर्ष
88.अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना
89.दुखियों के आँसू पोंछना
90.बच्चों को नैतिक शिक्षा
91.प्रकृति के प्रति कृतज्ञता
92.दूसरों को प्रोत्साहन
93.मन, वचन, कर्म से शुद्धता
94.जीवन में संतुलन बनाए रखना

विधि के अधीन 6 कर्म
95.हानि
96.लाभ
97.जीवन
98.मरण
99.यश
100.अपयश

🌹 May the colors of Navratri brighten your life with peace, prosperity, and happiness. 🌟          𝐏𝐭. 𝐃𝐡𝐚𝐧𝐚𝐧𝐣𝐚𝐲 𝐁𝐚𝐥𝐢Astr...
22/09/2025

🌹 May the colors of Navratri brighten your life with peace, prosperity, and happiness. 🌟


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