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24/10/2023

चुनावी माहौल के बीच में ताऊ के 50 साल का अनुभव सुनिए।

भारत में सेवा करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों को इंग्लैंड लौटने पर सार्वजनिक पद/जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी। तर्क यह था कि उ...
03/06/2023

भारत में सेवा करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों को इंग्लैंड लौटने पर सार्वजनिक पद/जिम्मेदारी नहीं दी जाती थी। तर्क यह था कि उन्होंने एक गुलाम राष्ट्र पर शासन किया है जिसकी वजह से उनके दृष्टिकोण और व्यवहार में फर्क आ गया होगा। अगर उनको यहां ऐसी जिम्मेदारी दी जाए, तो वह आजाद ब्रिटिश नागरिकों के साथ भी उसी तरह से ही व्यवहार करेंगे। इस बात को समझने के लिए नीचे दिया गया वाकया जरूर पढ़ें...

एक ब्रिटिश महिला जिसका पति ब्रिटिश शासन के दौरान पाकिस्तान और भारत में एक सिविल सेवा अधिकारी था। महिला ने अपने जीवन के कई साल भारत के विभिन्न हिस्सों में बिताए, अपनी वापसी पर उन्होंने अपने संस्मरणों पर आधारित एक सुंदर पुस्तक लिखी।

महिला ने लिखा कि जब मेरे पति एक जिले के डिप्टी कमिश्नर थे तो मेरा बेटा करीब चार साल का था और मेरी बेटी एक साल की थी। डिप्टी कलेक्टर को मिलने वाली कई एकड़ में बनी एक हवेली में रहते थे। सैकड़ों लोग डीसी के घर और परिवार की सेवा में लगे रहते थे। हर दिन पार्टियां होती थीं, जिले के बड़े जमींदार हमें अपने शिकार कार्यक्रमों में आमंत्रित करने में गर्व महसूस करते थे और हम जिसके पास जाते थे, वह इसे सम्मान मानता था। हमारी शान और शौकत ऐसी थी कि ब्रिटेन में महारानी और शाही परिवार भी मुश्किल से मिलती होगी।

ट्रेन यात्रा के दौरान डिप्टी कमिश्नर के परिवार के लिए नवाबी ठाट से लैस एक आलीशान कंपार्टमेंट आरक्षित किया जाता था। जब हम ट्रेन में चढ़ते तो सफेद कपड़े वाला ड्राइवर दोनों हाथ बांधकर हमारे सामने खड़ा हो जाता और यात्रा शुरू करने की अनुमति मांगता। अनुमति मिलने के बाद ही ट्रेन चलने लगती।

एक बार जब हम यात्रा के लिए ट्रेन में सवार हुए, तो परंपरा के अनुसार, ड्राइवर आया और अनुमति मांगी। इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाती, मेरे बेटे का किसी कारण से मूड खराब था। उसने ड्राइवर को गाड़ी न चलाने को कहा। ड्राइवर ने हुक्म बजा लाते हुए कहा, जो हुक्म छोटे सरकार। कुछ देर बाद स्टेशन मास्टर समेत पूरा स्टाफ इकट्ठा हो गया और मेरे चार साल के बेटे से भीख मांगने लगा, लेकिन उसने ट्रेन को चलाने से मना कर दिया। आखिरकार, बड़ी मुश्किल से, मैंने अपने बेटे को कई चॉकलेट के वादे पर ट्रेन चलाने के लिए राजी किया और यात्रा शुरू हुई।

कुछ महीने बाद, वह महिला अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलने यूके लौट आई। वह जहाज से लंदन पहुंचे, उनकी रिहाइश वेल्स में एक काउंटी में थी जिसके लिए उन्हें ट्रेन से यात्रा करनी थी। वह महिला स्टेशन पर एक बेंच पर अपनी बेटी और बेटे को बैठाकर टिकट लेने चली गई। लंबी कतार के कारण बहुत देर हो चुकी थी, जिससे उस महिला का बेटा बहुत परेशान हो गया था। जब वह ट्रेन में चढ़े तो आलीशान कंपाउंड की जगह फर्स्ट क्लास की सीटें देखकर उस बच्चे को फिर गुस्सा आ गया।

ट्रेन ने समय पर यात्रा शुरू की तो वह बच्चा लगातार चीखने-चिल्लाने लगा। वह ज़ोर से कह रहा था, "यह कैसा उल्लू का पट्ठा ड्राइवर है। उसने हमारी अनुमति के बिना ट्रेन चलाना शुरू कर दी है। मैं पापा को बोल कर इसे जूते लगवा लूंगा।" महिला को बच्चे को यह समझाना मुश्किल हो रहा था कि यह उसके पिता का जिला नहीं है, यह एक स्वतंत्र देश है। यहां डिप्टी कमिश्नर जैसा तीसरे दर्जे का सरकारी अफसर तो क्या प्रधानमंत्री और राजा को भी यह अख्तियार नहीं है कि वह लोगों को अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए अपमानित कर सके।

आज भले ही हमने अंग्रेजों को खदेड़ दिया है लेकिन हमने गुलामी को अभी तक देश बदर नहीं किया। आज भी कई अधिकारी, एसपी, मंत्री, सलाहकार और राजनेता अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए आम लोगों को घंटों सड़कों पर परेशान करते हैं।

प्रोटोकॉल आम जनता की सुविधा के लिए होना चाहिए, ना कि उनके लिए परेशानी का कारण।

These symptoms or causes may be signs of constipation:• Difficulty in bowel movements?• Disturbances in the gut or your ...
09/10/2021

These symptoms or causes may be signs of constipation:
• Difficulty in bowel movements?
• Disturbances in the gut or your body's metabolism (lipid level) are getting serious!
• Consumption of antibiotics or chemical drugs can cause constipation!
• Consuming too much probiotics can cause serious problems of constipation!
• Constipation is possible by drinking small amounts of water!

• Do you know that due to prolonged constipation, serious internal problems like Piles, Fistula can also happen !!
So don't ignore it, there is a permanent solution in Ayurveda.

08/10/2021
धनतेरस का अर्थ, मात्र धन से नहीं, वैद्य धनवंतरी और स्वास्थ्य लाभ से हैं...!!     आप सब को मंगल कामनाएं   #धनतेरस
12/11/2020

धनतेरस का अर्थ, मात्र धन से नहीं, वैद्य धनवंतरी और स्वास्थ्य लाभ से हैं...!!

आप सब को मंगल कामनाएं #धनतेरस

11/07/2020

★आयुर्वेद का भविष्य मानवता की रक्षा की दृष्टि से★
बेस्टसेलर किताब 'बीमार होना भूल जाइए' का एक अध्याय
आयुर्वेद ने अपना अत्यंत स्वर्णिम इतिहास देखा है। एक ऐसा इतिहास जहाँ यह एक प्रमुख चिकित्सा पद्धति के रूप में अपनाई गई। एक ऐसा इतिहास जहाँ इसे सिकंदर महान, सम्राट अशोक, अकबर जैसे शासकों ने अपनी मुख्य चिकित्सा पद्धति बनाया था। एक ऐसा इतिहास जहाँ यह युद्ध जैसी आपातकालीन स्थिति में भी सैनिकों के जीवन की रक्षा करती थी और घायल सैनिकों के घावों को अपने पीयूष से एक ही रात में ठीक कर सुबह फिर लड़ने के लिये तैयार कर देती थी।
यह वही आयुर्वेद है जिसका प्रयोग महामारी फैलने पर जलवायु, पानी और व्यापक स्तर पर पर्यावरण को शुद्ध करने में किया जाता था। यह वही सुश्रुत का काल था जब सर्जरी के लिये विश्व में आयुर्वेद की धाक थी। जिसके आर्थोपेडिक सिद्धान्तों को आज भी रिसर्च पूर्णतः स्वीकार करती है। यह वही आयुर्वेद है जिसकी संहिताएँ (ग्रंथ) आज भी अपने आप में पूर्ण हैं, जिनके सिद्धान्त आधुनिक चिकित्सा की तरह दिन-प्रतिदिन बदलते नहीं और आज भी शाश्वत हैं। इन आयुर्वेद ग्रंथों में आज की तरह नहीं है कि प्रथम संस्करण, द्वितीय संस्करण को रद्द करता हो। जो बात 2 या 3 हजार साल पहले लिख दी गई, वह आज भी वैसी की वैसी है।
आज सवाल लोगों के मन में जो उठता है वह यह है कि क्या आयुर्वेद बस अपना आदिकाल याद करके ही संतुष्ट होता रहेगा? और यह अपनी वर्तमान दुर्दशा पर यूँ ही अबलाओं की तरह रोता रहेगा? आखिर ऐसा कौन-सा च्यवनप्राश इसे चाहिये जो कि इसे फिर से च्यवन ऋषि की तरह युवा बना दे? क्या मानवता इसे फिर उसी तरह सिर आँखों पर बैठाएगी? क्या इस महान पद्धति को उसी तरह सम्मान मिल पायेगा, जिसकी यह हकदार है? क्या मानवता इस कड़वे अमृत को पियेगी? क्या लोग फिर घर-घर में छोटी से लेकर बड़ी बीमारियों तक जड़ी-बूटियों के काढ़े पकायेंगे? क्या फिर से ये अश्विनी कुमारों, जीवक, दिवोदास धनवंतरी की तरह के महान चिकित्सकों को देख पाएगी?
इन सब प्रश्नों का उत्तर मैं इस अध्याय में देने का प्रयत्न कर रहा हूँ कि आखिर क्यों अपनाएंगे लोग आयुर्वेद को? लोग इसे स्वेच्छा से अपनायेंगे या मजबूरी होगी? आइये, पड़ताल करते हैं इनकीः
1. महापुरुषों के वचन
लगभग सभी पैगम्बरों, अवतारों एवं महापुरुषों ने एक कथन कहा है कि ‘‘समय का चक्र फिर लौट कर आता है’’ अर्थात् इंसान आगे दौड़ लगाता है जबकि समय उसे फिर पलटना चाहता है। इस आप्त वचन (महान लोगों के कथन) से साफ है कि लोग फिर उसी प्राकृतिक या कुदरती इलाज की तरफ लौट आयेंगे।
2. शिक्षा के स्तर का बढ़ना
जैसे-जैसे लोगों में शिक्षा का स्तर बढ़ेगा, उन्हें अपने अंग-प्रत्यंगों के बारे में ज्ञान मिलता जायेगा और वे उनके प्रति अधिक सजग होने लगेंगे। ऐसे में वे अपने मामूली रोगों को ठीक करने में अपने अमूल्य अंगों को खराब नहीं करेंगे। जैसे- एक साफ्टवेयर इंजीनियर को माइग्रेन था, जब उसने इंटरनेट पर इसके उपचार के बारे में पढ़ा तो उसे एलोपैथी की कुछ दवाएँ मिलीं। फिर उसने उनके दुष्प्रभाव के बारे में पढ़ा तो उसने उनका उपयोग करने का इरादा बदल दिया क्योंकि एक तो उस पद्धति में इसका कारण ही नहीं बताया गया था तथा उपचार भी लाक्षणिक था। फिर जब उसने आयुर्वेदिक उपचार के बारे में पढ़ा तो उसमें इस रोग का कारण भी था, स्पष्ट उपचार था तथा एक शानदार डाइट प्लान भी था और सबसे बड़ी बात कोई दुष्प्रभाव नहीं। इस आधार पर उसने आयुर्वेद से उपचार करवाने का निर्णय लिया और आज वह माइग्रेन से मुक्त है वह भी अपनी सही-सलामत किडनी के साथ।
3. रेज़िस्टेंट मुक्त
आयुर्वेदिक दवाओं की एक प्रमुख बात है कि ये प्रतिरोधक (रेज़िस्टेंट) नहीं होतीं अर्थात नीम 10000 वर्ष पहले जिस तरह से कीटाणुओं का सफाया करती थी, वह आज भी उसी तरह असरकारक है। चन्द्रप्रभा वटी न्ज्प् (मूत्र संक्रमण) में 1000 वर्ष पहले जितनी कारगर थी, उतनी ही आज भी है।
मेरी एक बार बहुराष्ट्रीय दवा निर्माता कंपनी के अधिकारी से एक यात्रा के दौरान भेंट हुई। मैंने उनकी कंपनी के कुछ उत्पादों की तारीफ करते हुए बात शुरू की। मैंने कहा, ‘‘आपकी कंपनी के उत्पाद काफी असरकारक हैं। मेरे कई एलोपैथिक डॉक्टर दोस्त आपके उत्पादों की तारीफ करते नहीं थकते।’’ वह खुश हुए और उन्होंने कहा, ‘‘जी हाँ सर, हमारे उत्पाद अत्यंत असरकारक हैं, अब एंटीबायोटिक्स में ही लीजिए हमारी एंटीबायोटिक्स की रेंज अत्यंत असरकारक हैं और सभी सर्जन की पहली पसंद हैं।’’ मैंने कहा, ‘‘वाकई मैंने कई डॉक्टरों से आपके एंटीबायोटिक्स की तारीफ खुद भी सुनी है।’’ फिर उनसे अगला प्रश्न किया, ‘‘क्या आपकी यह एंटीबायोटिक्स की श्रृंखला पाँच सालों के बाद भी इतनी ही असरकारक होगी?’’ उसने जवाब दिया, ‘‘आप तो जानते ही हैं कि बैक्टीरिया बहुत जल्दी प्रतिरोधी हो जाते हैं इसलिये पाँच साल बाद हमारी नई एंटीबायोटिक्स की श्रृंखला आ जायेगी।’’ मैंने फिर पूछा, ‘‘अगर आप पाँच साल बाद नई एंटीबायोटिक्स नहीं खोज पाये तो?’’ उन्होंने कहा, ‘‘सर, हमारी कंपनी हमेशा अनुसंधान करती रहती है और हम इसका विकल्प ढूँढ लेंगे।’’ मैंने फिर वही सवाल किया, ‘‘अगर नहीं ढूँढ पाये तो?’’ तो उन्होंने कहा कि, ‘‘यह बैक्टीरिया हम सबको खत्म कर देंगे।’’ मैंने कहा, ‘‘आप मानवता को किस खाई में धकेलने जा रहे हैं? क्या यह तृतीय विश्वयुद्ध के भयावह माहौल से भी अधिक भयानक नहीं हो जायेगा? क्या आज एंटीबायोटिक्स से जान बचाने का हमारा शस्त्र कल हम पर ही पलटवार नहीं करेगा? क्या हमारी पीढ़ियाँ विरासत में मिली इस समस्या का सामना कर पाएंगी?’’ मेरे यह प्रश्न सुनकर वह निरूत्तर थे और एक गहरी सोच में डूब गए जैसे कि अभी आप डूब गये होंगे।
अभी हाल ही में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की जाँच रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि ज्क्त्.ज्ण्ठण् के 12 में से 6 मरीजों पर टीबी रोक-थाम की सभी दवाएँ बेअसर है। यह एक शंखनाद है महायुद्ध का कि अब हम सब कमर कस लें इन अदृश्य जीवाणुओं से लड़ाई के लिये क्योंकि हमारे एंटीबायोटिक्स से लड़ने के लिये इन्होंने ढाल बना ली है और इनके विष का हमारे पास कोई प्रतिविष उपलब्ध नहीं है अर्थात् शत्रु पर जितने वार हम कर रहे हैं, वह उतना ही शक्तिशाली होता जा रहा है, लेकिन एक आशा की किरण हमारे पास है जिसका नाम जड़ी-बूटी है। यह सामान्य-सी दिखने वाली वनस्पतियाँ इन जीवाणुओं के नाश के लिये अचूक अस्त्र हैं। इनके विरुद्ध ये जीवाणु कोई ढाल नहीं बना पाते। जैसे- टायफॉयड के जीवाणु पर एंटीबायोटिक्स की एक लंबी श्रृंखला बेअसर हो चुकी है परंतु आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी उसे एक- दो दिन में ही नष्ट कर देती है।
4. कई बीमारियों में केवल जड़ी-बूटियाँ ही असरकारक हैं
पथरी, पीलिया, जोड़ों का दर्द, पेट के रोग, माइग्रेन, एलर्जी, चर्मरोग, सौंदर्य समस्याएँ, महिलाओं के रोग, लिवर की समस्या, पाइल्स, यौन समस्या, हार्मोनल समस्याएँ ऐसे अनगिनत रोग हैं, जिनका स्थाई और दुष्प्रभावों से रहित उपचार केवल जड़ी-बूटियों में ही उपलब्ध हैं।
भोपाल में आयुर्वेद के छात्र शासन के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। उनका एक समूह मेरे पास आया और उन्होंने कहा कि, ‘‘आप भी धरना स्थल पर आयें और हमारा साथ दें।’’ मैं अगले दिन धरना स्थल पर गया। मैंने उनकी 6 माँगों से लैस पर्चा पढ़ा जिसमें सबसे पहली माँग थी कि आयुर्वेद डॉक्टरों को एलोपैथिक चिकित्सा की पात्रता दी जाए। मैंने कहा, ‘‘आपकी माँगों में मैं एक परिवर्तन करना चाहूँगा।’’ उन्होंने कहा ‘‘बताइये।’’ मैंने कहा, ‘‘आपकी पहले नं. की माँग को बदलकर यह कर दीजिए कि आयुर्वेद दवाएँ केवल आयुर्वेद चिकित्सक ही दे पाएँ, एलोपैथिक चिकित्सक नहीं।’’ बस मेरा इतना कहना था कि सबके सब मुझसे नाराज़ हो गए और कहने लगे कि, ‘‘आप आयुर्वेद डॉक्टरों का भला नहीं सोच सकते, उन्हें खाते-कमाते नहीं देख सकते। यदि हम ऐसी माँग करेंगे तो बदले में एलोपैथिक चिकित्सक भी यही माँग करेंगे कि आयुर्वेद चिकित्सकों को भी हमारी दवाएँ न लिखने दी जाएँ और इससे हमें नुकसान होगा।’’ मैं वहाँ से उठकर चला आया। वे विद्यार्थी शायद वह नहीं देख पा रहे थे जिसे मेरी आँखंे स्पष्ट देख रहीं थी। वे केवल आज देख रहे थे और मैं आने वाला कल। यदि वे यूरोलॉजिस्ट, गायनेकोलॉजिस्ट, गेस्ट्रोलॉजिस्ट आदि विशेषज्ञों के पर्चे देखेंगे तो पता चलेगा कि ये बिना आयुर्वेद के ज्ञान के आयुर्वेदिक दवाएँ कितने धड़ल्ले से लिख रहे हैं और नाम भी कमा रहे हैं।
यदि आज ही हम देखें तो पायेंगे की पथरी, लिवर की समस्या, महिलाओं की समस्याओं के लिए आयुर्वेद चिकित्सक के पास एलोपैथिक चिकित्सकों से ज्यादा भीड़ है। यह भीड़ कई गुना बढ़ सकती है, जब कानून का पालन करके एलोपैथिक चिकित्सक आयुर्वेद की दवाएँ लिखना बंद कर दें।
उपरोक्त बीमारियाँ जो मैंने लिखी हैं, उनके अलावा भी कई रोगों में एलोपैथीक कोई प्रभाव नहीं रखती। ऐसे में आयुर्वेद को एक मुख्य चिकित्सा पद्धति तथा एलोपैथी को वैकल्पिक पद्धति मानना चाहिये, क्योंकि मुख्य चिकित्सा वह होती है जो रोगों को जड़ से खत्म करने की क्षमता रखती है और वैकल्पिक उसे कहते हैं जो केवल लक्षणों में आराम पहुँचाती है। लेकिन हमारे यहाँ ठीक इसका उल्टा है। आयुर्वेद, होम्योपैथी तथा यूनानी जो कि समूल रोगों को नष्ट करती है उसे वैकल्पिक कहा जाता है तथा एलोपैथिक चिकित्सा को प्रमुख चिकित्सा।
उपरोक्त प्रमुख कारण हैं जो लोगों को आयुर्वेद की तरफ फिर से मोड़ेंगे। जो जितनी जल्दी जड़ों की तरफ लौटेगा, वह उतना ही ज़्यादा फायदे में रहेगा और जो जितनी देर करेगा, उतना ही घाटे में रहेगा। आयुर्वेद को व्यापक स्तर पर यदि प्रचारित किया जाए, लोगों को प्रशासन यह बताए कि किन-किन बीमारियों में आपको आयुर्वेद पहले ही अपना लेना चाहिये जिससे आप कई जटिल सर्जरी से भी बच सकते हैं और रोगों को जड़ से खत्म भी कर सकते हैं तो आयुर्वेद का स्वर्णकाल शायद 2 से 5 वर्षों में प्रारंभ हो जायेगा और यह एक क्रांतिकारी परिवर्तन होगा, लोगों के स्वास्थ्य के क्षेत्र में। इससे आयुर्वेद के डॉक्टरों से अधिक लाभ मानवता का होगा क्योंकि स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ नहीं है। हाँ, कुछ भी नहीं...
~डॉ अबरार मुल्तानी Abrar Multani
आयुर्वेद चिकित्सक, की वाल से🙏🙏

क्वचित् धर्म क्वचित् मैत्री क्वचित् अर्थ क्वचित् यश!कर्माभ्यासं क्वचितश्चेति चिकित्सा नास्ती निष्फला!!         (आचार्य च...
01/07/2020

क्वचित् धर्म क्वचित् मैत्री क्वचित् अर्थ क्वचित् यश!
कर्माभ्यासं क्वचितश्चेति चिकित्सा नास्ती निष्फला!!
(आचार्य चरक )

रोगियों की सेवा/चिकित्सा से कुछ धर्म , कुछ मित्र , कुछ पैसा, कुछ यश मिलता है !!
चिकित्सा कभी निष्फल नहीं होती , अगर ये सब न भी मिले तो चिकित्सक का अभ्यास तो हो ही जाता है || (आचार्य चरक)

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बाबा सीधे मेडिकल माफियाओं से उलझ गए हैं ।Covid 19 की चिकित्सा की खोज में वर्ल्ड लेवल पर रीसर्च चल रहा हैं करोड़ो रूपये इन...
23/06/2020

बाबा सीधे मेडिकल माफियाओं से उलझ गए हैं ।
Covid 19 की चिकित्सा की खोज में वर्ल्ड लेवल पर रीसर्च चल रहा हैं करोड़ो रूपये इन्वेस्ट किये जा चुके हैं अगर इसका इलाज आयुर्वेद से हो गया तो इन सब का क्या होगा इसलिए ये माफिया लॉबी एकदम सक्रिय हो गयी हैं।

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