29/09/2025
जीवन की तीन गाँठें
एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ एक गाँव से गुज़र रहे थे। चलते-चलते, उन्होंने रास्ते में एक नदी देखी। नदी के किनारे एक रस्सी पड़ी थी, जो जगह-जगह से गाँठों (knots) से बँधी हुई थी।
एक शिष्य ने उत्सुकता से पूछा, "भगवन्, ये रस्सी इतनी जगह से क्यों बँधी है? इसे खोलना बहुत मुश्किल होगा।"
बुद्ध मुस्कुराए और बोले, "यह रस्सी तुम्हारे जीवन की तरह है। जब तक तुम इसे छूते नहीं हो, यह सिर्फ़ एक रस्सी है। लेकिन जब तुम इसमें से कोई गांठ खोलने की कोशिश करते हो, तो यह और कस जाती है।"
फिर बुद्ध ने एक-एक करके शिष्य से पूछा:
"जब तुम किसी से क्रोध (anger) करते हो, तो क्या होता है?"
शिष्य ने कहा, "हमारी बात बिगड़ जाती है, और मन अशांत हो जाता है।"
बुद्ध ने कहा, "यह पहली गाँठ है, जो हमारे मन को जकड़ लेती है।"
"जब तुम किसी बात को लेकर बहुत अफ़सोस (regret) करते हो, तो क्या होता है?"
शिष्य ने कहा, "हमारा वर्तमान खराब हो जाता है, और हम आगे नहीं बढ़ पाते।"
बुद्ध ने कहा, "यह दूसरी गाँठ है, जो हमें पीछे की ओर खींचती है।"
"और जब तुम किसी चीज़ से बहुत अधिक मोह (attachment) रखते हो, तो क्या होता है?"
शिष्य ने कहा, "उसके खोने का डर सताता है, और हम दुखी होते हैं।"
बुद्ध ने कहा, "यह तीसरी और सबसे मज़बूत गाँठ है।"
बुद्ध ने रस्सी को उठाया और उसे देखते हुए बोले, "इन गाँठों को खोलने की ज़रूरत नहीं है। अगर तुम रस्सी को सीधा करना चाहते हो, तो तुम्हें यह जानने की ज़रूरत है कि यह गाँठें क्यों पड़ी हैं, और इन्हें किसने डाला है।"
उन्होंने आगे कहा, "जैसे ही तुम इन 'क्यों' और 'किसने' के उत्तर को ढूँढना बंद कर दोगे, और सिर्फ़ वर्तमान पर ध्यान दोगे, ये गाँठें अपने आप ढीली पड़ने लगेंगी। क्योंकि रस्सी को ज़बरदस्ती नहीं, बल्कि शांति और समझ से खोला जाता है।"
प्रेरणा
यह कहानी हमें सिखाती है कि हमारे जीवन की समस्याएँ या "गाँठें" क्रोध, अफ़सोस और मोह जैसे विचारों से बनी होती हैं। इनसे लड़ने या इन्हें ज़बरदस्ती खोलने के बजाय, हमें शांत मन से अपने वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
आप जिस पल में हैं, उसे स्वीकार करें, और आपकी मानसिक गाँठें धीरे-धीरे अपने आप सुलझती चली जाएँगी। सुकून इसी स्वीकार्यता और शांति में छिपा है।