15/11/2025
डॉ. प्रवीण कुलकर्णी
9226280158
🍂 आख़िरी पत्र और सूखी पत्तियाँ
अंजलि की दुनिया एक छोटी, सुनसान सड़क के किनारे बसे कॉफ़ी शॉप में सिमट गई थी। वह वहाँ वेट्रेस का काम करती थी। उसका मन हमेशा उदास रहता था, क्योंकि वह अपनी इकलौती बेटी, मीरा से पिछले पाँच सालों से बात नहीं कर पाई थी।
मीरा ने अंजलि से तब रिश्ता तोड़ लिया था जब अंजलि ने ज़िद करके अपनी सारी बचत मीरा की विदेश में पढ़ाई के लिए लगा दी थी। मीरा का मानना था कि माँ ने उसके करियर के लिए अपनी ख़ुशियाँ, अपना पुराना घर, और अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया। मीरा को यह बलिदान हमेशा एक असहनीय कर्ज़ जैसा लगा। वह अक्सर कहती, "माँ, मुझे आपकी इतनी बड़ी क़ुर्बानी नहीं चाहिए थी! मैं आपसे दूर होकर खुश नहीं हूँ।"
अंजलि ने कभी जवाब नहीं दिया। वह बस मुस्कुराती और मीरा के बैंक खाते में चुपचाप पैसे भेजती रहती, चाहे उसे ख़ुद दो वक़्त की रोटी के लिए कितनी ही मेहनत क्यों न करनी पड़े।
एक ठंडी बरसात की शाम, कॉफ़ी शॉप में भीड़ कम थी। डाकिये ने अंजलि को एक लिफाफ़ा थमाया, जिस पर मीरा की साफ़ लिखावट थी। अंजलि का दिल ज़ोर से धड़का। पाँच साल बाद मीरा का पहला संदेश!
उसने काँपते हाथों से लिफाफ़ा खोला। अंदर एक छोटा-सा, मुड़ा हुआ कागज़ था, जिसके साथ कुछ सूखी, मुरझाई हुई पत्तियाँ रखी थीं।
पत्र में लिखा था:
> प्रिय माँ,
> मुझे पता है कि तुम मुझसे बहुत नाराज़ हो। मैं पाँच साल बाद तुम्हें लिख रही हूँ, लेकिन शायद मैं तुमसे बात करने के लिए बहुत देर कर चुकी हूँ।
> मुझे आज भी याद है, जब मैं छोटी थी, तब मुझे ज़मीन पर गिरी सूखी पत्तियाँ जमा करना कितना पसंद था। तुम हर शाम मेरे लिए सबसे ख़ूबसूरत पत्तियाँ ढूंढकर लाती थीं। एक बार, जब मैं बहुत बीमार थी, तुमने मुझे हँसाने के लिए पतझड़ की ढेर सारी पत्तियाँ अपनी साड़ी में भरकर लाईं थीं। उन पत्तियों की सोंधी खुशबू मुझे आज भी याद है...
> पिछले महीने जब मेरा एक्सीडेंट हुआ और मैं अस्पताल में थी, तब मुझे तुम्हारी बहुत याद आई। मैंने महसूस किया कि तुमने जो बलिदान दिया, वह मुझ पर कर्ज़ नहीं था, वह तुम्हारा विशुद्ध, निस्वार्थ प्रेम था। तुम्हारी क़ुर्बानी मेरी सबसे बड़ी ताक़त थी।
> मैंने तुम्हें कभी नहीं बताया, माँ, लेकिन तुम मेरी दुनिया हो।
> ...मुझे अफ़सोस है कि मुझे यह समझने में इतना वक़्त लगा। मैं जल्द ही वापस आ रही हूँ, माँ। मैं तुम्हें गले लगाना चाहती हूँ।
> प्यार से,
> तुम्हारी मीरा।
>
अंजलि की आँखों से आँसू बहने लगे। वह खुश थी, लेकिन पत्र के अंत में एक नोट और था, जिसने उसके दिल को चीर दिया।
नीचे छोटे अक्षरों में लिखा था: "माँ, यह पत्र मीरा ने अस्पताल से निकलने से ठीक पहले लिखा था। लेकिन वह कभी वहाँ से निकल नहीं पाई। वह... अब हमारे बीच नहीं है। यह पत्र और ये पत्तियाँ (जो उसने आख़िरी बार ज़मीन से उठाई थीं) उसकी निजी चीज़ों में मिलीं। उसे हमेशा आपका इंतज़ार था।"
मीरा का प्यार उसे मिला, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
अंजलि ने सूखी पत्तियों को उठाया और उन्हें अपने सीने से लगा लिया। उस कॉफ़ी शॉप की धीमी रोशनी में, उसे लगा जैसे वे पत्तियाँ फिर से हरी हो गई हों, और उनमें से उसे वही पुरानी, प्यारी माँ की महक आ रही थी, जिसकी तलाश मीरा को हमेशा रही थी।
अब वह जानती थी कि उसे अब किसी और चीज़ की ज़रूरत नहीं थी; उसे अपनी बेटी का अंतिम प्रेम मिल चुका था।