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पेट में गैस का मतलब है ग्रासनली में हवा मौजूद होना। ये समस्या खाते-पीते समय ज्यादा हवा मुंह से अंदर लेने के कारण हो सकती...
02/07/2021

पेट में गैस का मतलब है ग्रासनली में हवा मौजूद होना। ये समस्या खाते-पीते समय ज्यादा हवा मुंह से अंदर लेने के कारण हो सकती है या ये पेट में बैक्टीरिया बढ़ने के कारण भी हो सकती है। पेट में गैस होने के सबसे आम कारणों में से एक है अपच। अपच, जीवनशैली व खान-पान की आदतों से हो सकती है, जैसे कैफीन, शराब या कार्बन डाइऑक्साइड वाले पदार्थ लेना, जल्दबाजी में खाना और फैट वाला खाना लेना। एंटीबायोटिक व पेनकिलर दवाओं और पेट में इन्फेक्शन के कारण भी अपच और पेट में गैस की समस्या हो सकती है।

पेट में गैस होने पर पेट फूलना, डकार आना, थोड़ा सा खाने के बाद ही पेट भरा हुआ लगना, पेट में जलन और कभी-कभी मतली जैसी समस्याएं होती हैं।

होम्योपैथी के अनुसार, पेट की गैस एक परेशान कर देने वाली समस्या है, जिसे व्यक्ति के जीवन से संबंधित अलग-अलग पहलुओं के आधार पर दवा देकर सही किया जा सकता है। इसके लिए कार्बो वेजीटेबिलिस, सिनकोना ऑफिसिनैलिस और लाइकोपोडियम।

होम्योपैथिक उपचार न केवल समस्या के लक्षणों को ठीक करता है, बल्कि व्यक्ति को कोई और समस्या होने की संभावना भी खत्म करता है।
पेट में गैस के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली होम्योपैथिक दवाओं के असर को जांचने के लिए कई अध्ययन किए गए हैं। अपच को ठीक करने के लिए और पेट में सूजन कम करने के लिए विशेष रूप से, लाइकोपोडियम दवा असरदार सबित हुई है|

पेट में गैस के लिए उपयोग की जाने वाली होम्योपैथिक दवाएं नीचे दी गई हैं:

कार्बो वेजीटेबिलिस (Carbo vegetabilis)

लक्षण: ये दवा अलसी लोगों के लिए अच्छी है, जो मोटे और सुस्त हैं। ये उन लोगों के लिए भी अच्छी है, जिन्हें पहले हुई कोई बीमारी अभी तक ठीक नहीं हो पाई है। निम्नलिखित लक्षणों के लिए ये दवा अच्छी है:
पेट में भारीपन और डकार आना।
पेट में दर्द, जैसे वज़न उठाने से होता है।
पेट फूलने और दर्द के कारण पेट में खिंचाव।
लेटने पर दर्द बढ़ जाना।
उनींदापन।
खाने-पीने के बाद लगातार डकार आना।
दुर्गंध वाली खट्टी डकार।
पेट, पीठ और रीड़ की हड्डी में जलन।
पेट में खिंचाव।
पेट दर्द के साथ ऐंठन, जिसके कारण व्यक्ति झुक जाता है।
पेट फूलने के कारण सांस फूलना।
मीट, दूध और फैट वाला खाना खाने की इच्छा न होना।
पेट के ऊपरी क्षेत्र में हाथ लगाने से दर्द होना।
हल्का खाना खाने से भी पेट में खिंचाव होना।
कमर और पेट पर टाइट कपडे न पहन पाना।

सिनकोना ऑफिसिनैलिस (Cinchona Officinalis)
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लक्षण: ये दवा उन लोगों के लिए अच्छी है, जिन्हें ज्यादा चाय पीने से पेट में गैस की समस्या हुई है। नीचे दिए लक्षणों में इस दवा का उपयोग किया जाता है:
पाचन कमजोर होना।
खाने के बाद पेट में वजन महसूस होना।
भूख न लगना।
पेट की साइड में दर्द होना।
पेट फूलना।
मुंह का स्वाद कड़वा होने के साथ खाना पेट से वापिस मुंह में आना।
खाना पचे बिना ही दोबारा भूख लगना।
फल खाने के बाद लक्षण बढ़ जाना।
हिलने-डुलने से फूला हुआ पेट कम होना।
लिवर के क्षेत्र में दर्द।
पित्त की पथरी के कारण पेट में दर्द।
पेट में गैस महसूस होना, जो न ऊपर जाती है न नीचे।

लाइकोपोडियम क्लेवेटम (Lycopodium Clavatum)

लक्षण: ये दवा उन लोगों को अधिक सूट करती है, जिन्हें बार-बार पाचन संबंधी समस्याएं होती हैं। जो लोग अपनी उम्र से बड़े लगते हैं, उनके लिए भी ये दवा अच्छी है। निम्नलिखित लक्षणों के इलाज के लिए इस दवा का उपयोग किया जाता है:
स्टार्च वाले खाने के कारण गैस बनना, जैसे पत्ता गोभी, फलियां आदि।
पेट फूलने के साथ भूख ज्यादा लगना।
थोड़ा सा भी खाने के बाद खाना पेट से मुंह में आना।
मुंह का स्वाद कड़वा होना।
खाने का स्वाद खट्टा लगना।
मीठा खाने की इच्छा होना।
थोड़ा सा खाने के बाद भी पेट भरा हुआ महसूस होना।
ऐसा महसूस होना, जैसे पेट में गैस घूम रही है।
रात के समय भूख लगना।
ठंडे से ज्यादा गरम खाने-पीने का मन करना।
लिवर के क्षेत्र में हाथ लगाने पर दर्द।
पेट में दर्द, जो दाईं से बाईं तारफ जाता है।
शाम को 4 से 8 बजे के बीच लक्षण बदतर होना और चलने पर बेहतर होना।
शरीर की दाईं तरफ लक्षण महसूस होना।

नक्स वोमिका (Nux Vomica)
लक्षण: ये दवा हर उम्र के व्यक्ति के लिए असरदार है, लेकिन इसका इस्तेमाल पुरुषों में अधिक किया जाता है। ये उन लोगों के लिए अच्छी है, जो बहुत चिंता करते हैं और हमेशा जल्दी में रहते हैं। नीचे दिए लक्षणों में ये दवा उपयोग की जाती है:
पेट दर्द के साथ पेट में वजन महसूस होना।
पेट फूलना, जो कभी-कभी खाने के बाद बढ़ जाता है।
खट्टे व कड़वे डकार आना।
मतली के साथ उबकाई व उल्टी आना।
पेट पर दबाव डालने पर दर्द।
पेट की ऊपरी तरफ फूलना और दबाव बनना, जैसे पथरी में होता है।
अत्यधिक पेट फूलना।
मुंह से बदबू आना।
उत्तेजक और फैट वाला खाना खाने की इच्छा होना।
अत्यधिक कॉफी पीने के कारण अपच।
डकार व उल्टी करने में दिक्कत।
ज्यादा सोचने से लक्षण बदतर हो जाना।
आराम करने से लक्षण बेहतर होना।

नैट्रम कार्बोनिकम (Natrum Carbonicum)

​लक्षण: नीचे दिए लक्षणों में इस दवा से राहत मिलती है:
पेट फूलना और हाथ लगाने में दर्द।
सुबह के 5 बजे भूख लगना।

पाचन कमजोर होना, जो थोड़ा सा भी गलत खाने से खराब हो जाता है।
मुंह का स्वाद कड़वा होना।
दूध पीने की बिलकुल इच्छा न होना।
अपच के कारण लगातार डकार आना।
बदहजमी होना, जो सोडा बिस्कुट खाने से बेहतर हो जाती है।
गर्मी में लक्षण बदतर होना।
संगीत सुनने के बाद मायूस महसूस होना।
दस्त होना, जो दूध पीने से बढ़ जाता है।
सटार्च और फैट वाले खाने के कारण पेट फूलना और अपच।

पल्सेटिला प्रेटेंसिस :-
लक्षण: ये दवा उन लोगों के लिए अच्छी है, जो स्वभाव में नाज़ुक व चिड़चिड़े होते हैं और उन्हें सिर को ऊंचा रखकर सोना पसंद होता है। ये दवा आयरन कम होने पर भी दी जाती है और महिलाओं में सबसे अच्छे से काम करती है। नीचे दिए लक्षणों को ठीक करने में इसका उपयोग किया जाता है:
पेट फूलना, खासकर फैट वाला खाना खाने के बाद।
फैट वाले व गरम खाने-पीने के कारण सीने में जलन और अपच।
खाने के बाद पेट में खिंचाव महसूस होना, जिसके कारण व्यक्ति को अपने कपडे ढीले करने पड़ते हैं।
प्यास न लगना।
बहुत पहले खाया खाना भी उल्टी में निकल जाना।
खाने के एक घंटे बाद पेट दर्द।
पेट में भारीपन महसूस होना, जैसे पथरी में होता है, खासकर सुबह उठने के बाद।
बहुत ज्यादा भूख लगना।
खाने का स्वाद बहुत समय तक मुंह में रहना, खासकर बर्फ, फल और पेस्ट्री खाने के बाद।
लगातार डकार आने के साथ मुंह का स्वाद खराब होना।
पेट से मुंह में पानी आने के साथ मुंह से बहुत दुर्गंध आना, जो सुबह के समय बदतर हो जाता है।
पेट में दर्द और खिंचाव।
पेट में दर्द के साथ ठंड लगना।
खुली हवा में जाने का मन होना और बाहर जाकर बेहतर महसूस होना।

एंटीमोनियम क्रूडम (Antimonium Crudum)

लक्षण: नीचे दिए लक्षणों के लिए ये दवा उपयोगी है:
भूख न लगना।
खट्टा व अचार खाने का मन होना, जिससे लक्षण बढ़ जाता है।
कुछ भी खाने के बाद उसी चीज़ का डकार आना।
सीने में जलन, मतली और उल्टी।
ब्रेड और पेस्ट्री खाने से पेट की समास्याएं होना।
गर्मी में और शाम के समय लक्षण बदतर हो जाना।
खाने के बाद पेट फूलना।
सुबह के समय पेट से मुंह में मीठा पानी आना।
जीभ पर सफेद मोटी परत जमना।
बार-बार डकार आना।
शाम को और रात के समय अधिक प्यास लगना।
बच्चे थोड़ा जमा हुआ दूध निकाल सकते हैं और बाद में फिर से दूध न पीना।
अत्यधिक चिड़चिड़ापन।
मोटापे की प्रवृत्ति।
खुली हवा में और आराम करने से लक्षण बेहतर होना।

आर्सेनिकम एल्बम (Arsenicum Album):-
लक्षण: ये दवा उन लोगों के लिए अच्छी है, जिन्हें दवाओं में विश्वास नहीं है और उन्हें लगता है वे मरने वाले हैं। निम्नलिखित लक्षण अनुभव करने पर इस दवा का उपयोग किया जाता है:
मतली और उल्टी।
खाने को देखना या उसकी गंध भी बर्दाश्त न होना।
समय-समय पर थोड़ा-थोड़ा पानी पीने की प्यास लगना।
पेट में जलन के साथ दर्द।
सीने में जलन।
लगातार डकार आना।
जीभ का साफ होना व सूखना।
थोड़ा सा खाने-पीने पर भी पेट में दर्द होना।
खट्टा खाना, आइसक्रीम और ठंडा पानी पीने के कारण अपच।
सब्जी, खरबूजा, तरबूज और अन्य पानी वाले फल से लक्षण उत्पन्न होना।
दूध पीने का मन करना।
पेट में दर्द और उसका फूलना।
अत्यधिक बेचैनी के साथ दर्द। इसके कारण व्यक्ति एक जगह से दूसरी जगह घूमता रहता है।
होम्योपैथी में पेट की गैस के लिए खान-पान और जीवनशैली के बदलाव - होम्योपैथिक उपचार के साथ आपको जीवनशैली व खान-पान के कुछ बदलाव करने की आवश्यकता होती है, जिसके बारे में नीचे दिया गया है:

क्या करें:

अचानक होने वाली समस्याओं में व्यक्ति को वह चीज़ खाने-पीने के लिए देनी चाहिए, जो उसका मन करे। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अक्सर वह चीज़ें लेने का मन करता है, जो उसकी हालत में आराम दे सकती हैं, इसीलिए रोगी की इच्छा पूरी करने की सलाह दी जाती है|
अपनी दिनचर्या में नियमित रूप से कुछ शारीरिक कार्य अवश्य शामिल करें।
क्या न करें:

ऐसी चीज़ें खाने-पीने से दूर रहें, जिनके कारण दवाओं के कार्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि इन्हें पहले ही बहुत कम खुराक में दिया जाता है। ये चीज़ें हैं:
जड़ी बूटी और मसाले।
औषधीय गुण वाले टूथपेस्ट व माऊथवॉश।
परफ्यूम और तेज गंध वाले फूल।
तेज मसाले वाला खाना और सॉस।
स्ट्रांग कॉफी या हर्बल चाय।
आइसक्रीम जैसे जमे ठंडे पदार्थ।
रोगी को परेशान न करें और उसे किसी तरह का मानसिक तनाव न होने दें।
सुस्त जीवनशैली न अपनाएं, दोपहर के समय ज्यादा देर तक सोना रोगी के लिए सही नहीं है।
दवाओं को सीधी धूप में न रखें।
पेट में गैस के होम्योपैथिक इलाज के नुकसान और जोखिम कारक :-होम्योपैथिक दवाएं बहुत ही सुरक्षित होती हैं और ये बीमारी के लक्षणों के साथ-साथ व्यक्ति को कोई और समस्या होने की संभावना को भी ठीक करती हैं। वैसे तो इन दवाओं के कोई दुष्प्रभाव अभी तक सामने नहीं आए हैं, लेकिन कोई भी होम्योपैथिक दवा लेने से पहले आपको एक योग्य होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।
अगर इन दवाओं को अधिक मात्रा में लिया जाए, तो इनके कुछ प्रभाव हो सकते हैं। अगर आपको उपचार के दौरान तेज पेट दर्द, उल्टी, रक्तस्राव या वजन कम होने की समस्याएं अनुभव हों, तो आपको तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

पेट में गैस एक ऐसी समस्या है, जो ग्रासनली में अधिक हवा एकत्रित होने के कारण होती है। अपच, पेट में गैस होने का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि, ये समस्या ज्यादा खाने से, जल्दी खाने से, शराब व गैस युक्त पदार्थ लेने से और फैट व स्टार्च वाला खाना खाने से भी होती है।
होम्योपैथिक दवाएं बहुत सुरक्षित हैं, चाहे इन्हें किसी अन्य उपचार के साथ लिया जाए या अकेले। हालांकि, इन दवाओं को एक योग्य होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए।
महर्षि मेंही हेल्दी लाइफ क्लिनिक
डॉ दीपक कुमार
( होम्योपैथिक फिजीशियन)
Mob:-7549301384,9113756401

30/06/2021

हेलो दोस्तों,
महर्षि मेंही हेल्दी लाइफ क्लिनिक आप लोगों के बीच एक बहुत ही खास जानकारी लेकर आया हैं ,जोकि हमारी जिंदगी से जुड़ी हुई है और उससे संबंधित कुछ अद्भुत तरीके हैं जोकि
ज़िंदगी को एक “चमत्कार” बना देने के लिए काफी हैं:-

1.प्रकृति की देन:- दोस्तों ,प्रकृति की सबसे अद्भुत देन है ‘दिमाग’... यदि यह ना होता तो आज हम कहां होते? यही दिमाग तो है जिसने आदिम इंसान को बताया कि पत्थर घिसने से आग उत्पन्न होती है, आसपास की हरियाली में ही खाद्य पदार्थ छिपे हैं। इसी दिमागी ताकत की बदौलत हम यहां तक पहुंचे हैं और आगे भी तरक्की की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।

2.कैसे जीयें ज़िंदगी:-
लेकिन जब मनुष्य अपनी दिमागी ताकतों को समझ ही नहीं पाएगा तो क्या लाभ? फिर तो वह एक जानवर के ही समान है। खैर ऐसा कहकर शायद मैं एक जानवर का भी निरादर कर रही हूं, क्योंकि उसे कब खाना है और कब खेलना है वह जानता है। लेकिन आजकल तो लोग अपने भीतर छिपी अच्छाइयों को भूलते जा रहे हैं।

3.परेशान ना हों:-
बस ज़िंदगी ने कहीं दुख दिए नहीं कि उससे लड़ने से पहले ही हार को दर्शाते हुए हाथ खड़े कर दिए। बड़े-बुज़ुर्गों ने सही तो कहा है कि ज़िंदगी हमें अपने हर एक पड़ाव पर एक सीख दे जाती है, मज़ा तो तब है जब हम उस सीख को सकारात्मक व्यवहार से अपनाते हुए अगले पड़ाव की ओर बढ़ चलें।

4.ज़िंदगी में कई रास्ते आते हैं:-👉⛩️⛩️⛩️⛩️⛩️
इसमें कोई दो राय नहीं कि ज़िंदगी में ऐसे कई रास्ते आते हैं जहां पहुंचकर हमें आगे कोई मार्ग दिखाई नहीं देता। लेकिन वहीं हम सब्र रखें और ध्यानपूर्वक कोशिश करें तो कई बार हमें ऐसा कोई मोड़ जरूर दिख जाता है जो हमारे लिए एक नया मार्ग बनता है। यह हमारी अंदरूनी ताकतें ही तो हैं जो हमें कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति देती हैं, लेकिन यदि आप भी अपनी ताकत भूल चुके हैं तो हम याद करवा देते हैं।

5.मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत:-💪💪💪💪💪
मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत तो उसके भीतर ही छिपी होती है। यह कोई दुनियावी बातें नहीं हैं और ना ही फिलॉसफी है जिसे आप समझ ना सकें। सच में हर एक इंसान में अपनी एक खूबी होती है जो किसी दूसरे में नहीं पाई जाती। हो सकता है आप जिस प्रकार से अपने कार्य के प्रति संवेदनशील हैं वैसा कोई और ना हो

6.आप का हंसमुख अंदाज़:-😀😀😀😀😀
आप का हंसमुख अंदाज़ केवल आपका ही है, अन्य किसी की ऐसी खासियत शायद ही हो। तो फिर उदासी में हम अपनी इन ताकतों को कैसे भूल जाते हैं। भगवान बुद्ध सही कहते थे – ‘हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही हो जाते हैं’। इसलिए यदि आप हताश ना होकर अपनी अंदरूनी ताकतों का इस्तेमाल करें तो शायद आप सारे ग़म भुला सकते हैं।

7.ग़म किस बात का:-😂😂😂😂😂
लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि हमें ग़म किस बात का? 100 नहीं तो 99 प्रतिशत लोग अपने आज से नहीं डरते। ना ही वह अपने बीते हुए कल की चिंता करते हैं, बल्कि उन्हें तो उनका आने वाला कल सताता है। लेकिन आप सही तरीके से अपनी ज़िंदगी तभी व्यतीत कर पाएंगे जब आप बीते हुए कल या आने वाले कल में नहीं बल्कि अपने ‘आज’ को जीना सीख जाएंगे|

8.कल क्या होगा:-
और वैसे भी आने वाले समय के लिए योजना बनाना तो फिर भी ठीक है लेकिन यह सोचते रहना कि ‘कल क्या होगा’, इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला। जब आप चिंता करना छोड़ देंगे तो आप बातों को दिल में रखना भी छोड़ देंगे। ऐसे कई लोग होते हैं जो लोगों की कड़वी बातों को दिल में बसा लेते हैं।

9.चिंता:-
या फिर जल्द ही किसी को भी अपना दुश्मन मानकर उसके प्रति हीनभावना को मन में बसा लेते हैं। लेकिन खुश तो आप तब रहेंगे जब चिंता करने के साथ दुख की भावना उत्पन्न करने जैसी बातों से भी दूर रहेंगे। यदि आपसे कोई कुछ कह दे तो उसे या तो उस मतभेद को उसी पल हल कर लें नहीं तो उसके बारे में भविष्य में सोचने का विचार ना करें।

10.छोटी-छोटी बातें:-
क्योंकि ऐसी छोटी-छोटी बातें ही जीवन में कड़वाहट लाती हैं और व्यक्ति की जीने की इच्छा कम होने लगती है। बातों को भूलना सीखें और यदि भूल नहीं सकते तो उसे अपने तरीके से सुलझाना सीखें। आपका ज़िंदगी को जीने का यही नज़रिया आपकी असली ताकत बनेगा।

11.गलतियों को माफ़ करना:-
मैंने कहीं पढ़ा था, ‘किसी को सज़ा देकर आप भले ही कुछ पल के लिए खुश हो सकते हैं, लेकिन किसी को माफ़ करके आप हमेशा के लिए खुश रह सकते हैं’। तो गलतियों को माफ़ करने से कोई छोटा या बड़ा नहीं हो जाता। लेकिन खुद के लिए आप बेहतर महसूस करेंगे।

12.खुद पर विश्वास:-
ज़िंदगी को सही तरह से जीने का अगला तरीका है खुद पर विश्वास रखना। यह बात आज ही दिमाग में बैठा लें कि दुनिया में आपके लिए फैसले लेने वाला आपसे बेहतर कोई इंसान नहीं है। आप स्वयं जानते हैं कि कौन सी बात आपके लिए सही है और क्या सही नहीं है

13.कौन सी बात आपको खुश करती है:-
कौन सी बात आपको खुश कर सकती है और कौन सी नहीं, यह आप ही जानते हैं। अपने आप को आप से बेहतर और कौन समझता है? इसलिए सबसे पहले खुद में विश्वास करना सीखें। इसके लिए आपको अपनी खामियों को भी अपनाना होगा, क्योंकि कोई भी परफेक्ट नहीं होता।

14.अपनी कमियों को समझें:-
जिस दिन आप अपनी कमियों को समझ जाएंगे उस दिन उन्हें सही करने तथा उन्हें दुनिया के सामने ना लाने का तरीका समझ जाएंगे। यूं तो ज़िंदगी एक पहेली ही है, जैसे उलझाते जाओगे वैसा ही पाओगे। लेकिन कदम-कदम पर आंखें खुली रखकर चलना भी तो जरूरी है।

15.मार्गदर्शन:-
यदि आप आंख मूंदकर किसी रास्ते पर चल रहे हैं तो ज़ाहिर है कि कहीं टक्कर खा जाएंगे या फिर गिर पड़ेंगे। बस यही सीख हमें ज़िंदगी सिखाती है। यदि जीवन के छोटे-छोटे रास्तों पर मार्गदर्शन से चलेंगे तथा कुछ बातों को समझते हुए आगे बढ़ेंगे तो ही सही जीवन व्यतीत करेंगे।

16.सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है:-
लेकिन इन सबके बाद सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है? आप बेशक जीवन की गाड़ी चलाते रहने की तमाम तरकीबें सीख लें। कई ऐसी ट्रिक्स का ज्ञान पा लें जो आपको सही रास्ता दिखाए लेकिन जब तक आप खुद से प्यार नहीं करेंगे तब तक आप ज़िंदगी में कुछ सीख नहीं पाएंगे।

17.इंसान का जज़्बा:-
इंसान में कुछ कर दिखाने का जज़्बा दो-तीन कारणों से ही उत्पन्न होता है। पहला जब वो खुद के लिए कुछ करना चाहता है और दूसरा जब वह अपने अपनों के लिए कुछ करना चाहता है। तो आप किसके लिए ज़िंदगी में ऊंचाई को छूना चाहते हैं, यह निश्चित कर लें।

महर्षि मेंही हेल्दी लाइफ क्लिनिक की ओर से आप लोगों को होम्योपैथिक इलाज के बारे में आखिर होम्योपैथी है क्या होम्योपैथिक इ...
29/06/2021

महर्षि मेंही हेल्दी लाइफ क्लिनिक की ओर से आप लोगों को होम्योपैथिक इलाज के बारे में आखिर होम्योपैथी है क्या होम्योपैथिक इलाज के क्या फायदे हैं उनके क्या तरीके हैं होम्योपैथिक दवा कैसे काम करती है होम्योपैथिक दवा में परहेज क्या है इन सब का संपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं आशा करता हूं कि यह जानकारी आप लोगों के लिए कारगर सिद्ध होगा इसी आशा के साथ प्रस्तुत है यह जानकारी:-

19 वीं शताब्दी से ही होम्योपैथिक दवाओं और डॉ हैनिमैन द्वारा तैयार की गई दवा की प्रणाली पर लोगों का भरोसा लगातार बढ़ता गया है। वर्तमान में विश्व भर में लगभग 20 करोड़ लोग होम्योपैथिक दवाओं या उपचारों को अपनाते हैं और भारत में होम्योपैथी चिकित्सा की दूसरी सबसे लोकप्रिय प्रणाली है।

होमियोपैथी व्यक्ति के संपूर्ण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित करने पर बल देती है। यह दवा की एक ऐसी प्रणाली है जो शरीर की स्वयं को ठीक कर लेने की क्षमता का सम्मान करती है तथा इस कार्य में सहायक बनती है। हमें उम्मीद है कि होमियोपैथी चिकित्सा या होम्योपैथिक इलाज के संबंध में आपके मन में उठने वाले कई सवालों के जवाब इस महर्षि मेंही हेल्दी लाइफ क्लीनिक पेज पर प्राप्त हो जायेंगे।

इस लेख में महर्षि मेंही हेल्दी लाइफ क्लिनिक की ओर से होम्योपैथिक इलाज क्या है, होम्योपैथिक इलाज के फायदे, होम्योपैथिक इलाज के तरीके, होम्योपैथिक दवा कैसे बनती है, होम्योपैथिक दवा लेने के नियम, होम्योपैथिक दवा का असर, होम्योपैथिक दवा का परहेज के साथ होम्योपैथिक इलाज की संपूर्ण जानकारी दी गयी है।

होम्योपैथी क्या है :-
होम्योपैथी जर्मनी में 1796 में डॉ सैमुअल हैनीमैन द्वारा खोजी गई दवा की एक प्रणाली है। 'होम्योपैथी' शब्द ग्रीक शब्दों “homoios” जिसका अर्थ है 'लाइक' (समान) और “patheia” जिसका अर्थ 'सफ्रिंग' (पीड़ा) से बना है। यह उपचार के प्राकृतिक नियम 'सिमिलिया सिमिलिबस क्यूरान्टूर' पर आधारित है, जिसका अनुवाद इंग्लिश में 'लाइक आर क्योर्ड बाए लाइक्स' होता है।

संस्कृत में इसी को “सम: समं समयति” या “विषस्य विषमौषधम्” कहा गया है अर्थात विष ही विष की औषधि है। इसका अर्थ यह है कि अधिक मात्रा में शरीर में जाने पर स्वस्थ व्यक्ति में हानिकारक लक्षण उत्पन्न करने वाले पदार्थ यदि बीमार व्यक्तियों को कम खुराक में दिए जाए तो समान हानिकारक लक्षणों को ठीक कर सकते हैं।

होम्योपैथी चिकित्सा में विभिन्न रोगों का इलाज करने के लिए पौधों और खनिजों जैसे प्राकृतिक पदार्थों की नैनो खुराक का उपयोग होता है। ये उपचार अचानक होने वाली और साथ ही पुरानी स्थितियों, बुखार और खांसी से लेकर गठिया तथा मधुमेह जैसी जीवन शैली की बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। एक समग्र चिकित्सा होने के नाते, यह केवल व्यक्तिगत लक्षणों का इलाज नहीं करती है, बल्कि संपूर्ण उपचार के लिए व्यक्तित्व के साथ-साथ व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक स्थिति पर भी ध्यान देती है।

होम्योपैथिक इलाज के फायदे :-
होम्योपैथी एक सुरक्षित और सौम्य चिकित्सीय तरीका है जो कई प्रकार की बीमारियों का प्रभावी उपचार कर सकता है। इसकी आदत नहीं पड़ती है अर्थात रोगी को होम्योपैथिक दवाओं की लत नहीं लगती है। यह गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सभी के लिए सुरक्षित है। यह उन व्यक्तियों द्वारा भी ली जा सकती है जिन्हें मधुमेह या लैक्टोज असहिष्णुता है।

चिकित्सा का 200 साल पुराना विज्ञान होने के बावजूद, होम्योपैथिक चिकित्सा से किसी भी स्वास्थ्य संबंधी खतरे को साबित करने वाले अध्ययन सामने नहीं आया हैं। होम्योपैथी के योग्य और पंजीकृत चिकित्सक अन्य स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की तरह अपने पेशे की सीमाओं के भीतर कार्य करते हैं, जिन्हें राष्ट्रीय दिशानिर्देशों द्वारा विनियमित किया जाता है।

शोध अध्ययनों ने होम्योपैथी की प्रभावकारिता को सिद्ध किया है। हालाँकि, विभिन्न परिस्थितियों में इसके लाभों को साबित करने के लिए उच्च गुणवत्ता युक्त अधिक बड़े अध्ययनों की आवश्यकता है।

यद्यपि, होम्योपैथी पारंपरिक चिकित्सा को प्रतिस्थापित करने में अभी सक्षम नहीं है, लेकिन इसका उपयोग विभिन्न स्थितियों और सामान्य बीमारियों के लिए सुरक्षित और प्रभावी रूप से किया जा सकता है। यह पारंपरिक चिकित्सा के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करती है और पूरक चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है।

होम्योपैथिक दवाओं का उपयोग सर्जरी के बाद जल्दी ठीक होने के लिए पारंपरिक चिकित्सा के साथ या अकेले किया जा सकता है। एक शोध में पाया गया कि होम्योपैथी चिंता और हल्के से गंभीर अवसाद के उपचार में उपयोगी है। एक अन्य अध्ययन से संकेत मिलता है कि होम्योपैथिक उपचार ने न केवल कैंसर से पीड़ित लोगों में थकान को कम किया बल्कि उनके जीवन की गुणवत्ता में समग्र रूप से सुधार किया।

यह याद रखें कि होम्योपैथी मामूली रोजमर्रा की बीमारियों के लिए एक सुरक्षित और आसान उपाय तो है, लेकिन इसे किसी योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श के बाद ही लिया जाना चाहिए। चिकित्सक कई कारकों पर विचार करते हैं, जिसमें आपकी आयु, स्थिति, बीमारी की गंभीरता, चरण और आपके पिछले इतिहास को शामिल करके सही दवा की पहचान करते हैं, जो आपके तेजी से ठीक होने के लिए सबसे अच्छा है।

होम्योपैथी कैसे काम करती है?

होम्योपैथी कैसे काम करती है, इसे समझने के लिए आइए एक उदाहरण की मदद लें। हम जानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति प्याज काटता है, तो वे कुछ सेकंड के भीतर ही आंखों में जलन पैदा कर देते हैं और उस व्यक्ति की नाक बहने लगती है। लेकिन इन्हीं प्याज से बना होमियोपैथिक उपचार एलियम सेपा इन लक्षणों से राहत दिला सकता है।
इसी तरह, कोबरा के काटने से हृदय और नसों पर असर पड़ता है, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है तथा हृदय और सांस लेने वाली मांसपेशियों में लकवा मार जाता है। कोबरा के जहर से बना होम्योपैथिक उपाय नाजा त्रिपुडिअन्स, सांप के काटने या इसी तरह के लक्षण पैदा करने वाली अन्य स्थितियों के मामले में राहत दे सकता है।

ऐसा इसलिए है क्योंकि होमियोपैथिक चिकित्सा उन्हीं ऊतकों पर कार्य करती है जो रोग से प्रभावित होते हैं और लक्षणों के उपचार के लिए शरीर की अपनी चिकित्सा प्रणाली को उत्तेजित करती हैं।

होम्योपैथी चिकित्सा रोगी की शारीरिक शिकायतों, वर्तमान और पिछला चिकित्सा इतिहास, व्यक्तित्व और वरीयताओं सहित विस्तृत इतिहास को ध्यान में रखती है। चिकित्सा की यह प्रणाली व्यक्ति की बीमारी को ही नहीं बल्कि संपूर्ण स्वास्थ्य को ठीक करने पर केंद्रित होती है|
होमियोपैथी इस विश्वाश पर चलती है कि शरीर खुद को ठीक कर सकता है। इसी सिद्धांत को मानते हुए होमियोपैथिक दवाओं को तैयार किया जाता हैं जो एलोपैथी दवाओं की तरह व्यक्ति की बीमारी को नहीं दबाती बल्कि उसे जड़ से खत्म करने के लिए शरीर की सेल्फ हीलिंग क्षमता को सक्रिय करती हैं।

होमियोपैथिक दवाओं के बारें में संपूर्ण जानकारी इस लेख में आगे विस्तार पूर्वक दी गयी है:-
होम्योपैथिक दवाएं कैसे बनती हैं?

होम्योपैथिक दवाएं प्राकृतिक पदार्थों का उपयोग करके बनाई जाती हैं, उदाहरण के लिए, पौधों (सिंहपर्णी, प्लांटेन, फॉक्सग्लोव), खनिज तत्व (नमक, लोहा, फास्फोरस) और पशु उत्पादों (मधुमक्खी का जहर, सांप का जहर) इत्यादि। कुछ होम्योपैथिक दवाएं पेनिसिलिन और एस्पिरिन जैसी दवाओं से भी बनाई जाती हैं।

ये दवाएं केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन, भारत सरकार और संबंधित देशों में अन्य सरकारी संगठनों द्वारा निर्धारित गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस (GMP) के अनुसार बनाई जाती हैं। होम्योपैथिक दवाओं के निर्माण को संबंधित देशों के होम्योपैथिक फार्माकोपिया के अनुसार नियंत्रित किया जाता है। होम्योपैथिक फार्माकोपिया में प्राकृतिक पदार्थों को इकट्ठा करने और होम्योपैथिक दवा के लिए उनके प्रसंस्करण के सटीक दिशा-निर्देश होते हैं।

कोई भी होम्योपैथिक उपचार के शुरू करने के लिए, फार्माकोपिया के अनुसार प्राकृतिक पदार्थ को पानी और अल्कोहल के निर्धारित अनुपात के साथ मिलाकर एक टिंचर बनाया जाता है। यह टिंचर सही से घोलने और पतला बनाने के लिए निर्धारित तरीके से हिलाया जाता है। एक निश्चित बिंदु के बाद, मूल पदार्थ की कोई भी पता लगने योग्य मात्रा घोल में नहीं दिखती है।

सभी दवाएं सख्त दिशानिर्देशों और गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रियाओं का उपयोग करके बनाई जाती हैं जो भारत के साथ-साथ अमेरिका में भी खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) द्वारा विनियमित होती हैं।

होम्योपैथिक दवा लेने के नियम:-
होम्योपैथिक दवाओं की खुराक
होम्योपैथिक दवाओं को कई रूपों में बनाया जाता है, जैसे कि गोलियां, पिल्स और ड्रॉप्स जो उनकी खुराक के पैटर्न को निर्धारित करती हैं। डॉक्टर आपको आपकी विशिष्ट स्थिति, उसकी गंभीरता और अवस्था, आपकी उम्र और अन्य कारकों के आधार पर खुराक की मात्रा तथा कितनी बार लेनी है इसके बारे में सलाह देगा। इसके अलावा, होम्योपैथिक दवाएं तब ली जानी चाहिए जब आपका मुंह साफ हो और मुँह में कोई अन्य स्वाद या भोजन न हो। इससे रक्तप्रवाह में तेजी से दवा का अवशोषण होता है।

क्या होम्योपैथी घर पर ली जा सकती है?
छोटी बीमारियों के लिए, होम्योपैथी को घर पर लिया जा सकता है। लेकिन नियमित दवा लेने के बावजूद ठीक नहीं होने वाली पुरानी बीमारियों और आम रोगों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि चिकित्सक आपके अंतर्निहित “मिआस्म” को समझे और उसका सही इलाज करे। मिआस्म (miasm) शब्द की उत्पत्ति मिआस्मा (miasma) शब्द से हुई है, जिसका अर्थ प्रदूषण है। मिआस्म होम्योपैथिक उपचार दर्शन की एक महत्वपूर्ण आधारशिला हैं। डॉ. हैनीमैन ने महसूस किया कि कुछ अंतर्निहित बल हैं जो उचित उपचार के बावजूद कुछ लोगों में बीमारी के पूर्ण समाधान को रोकते हैं। यही बल कुछ लोगों को दूसरों की तुलना में अधिक बीमार बनाता है और उन लोगों में नई बीमारियों का कारण बनता है जिन्होंने किसी अन्य स्थिति के लिए कुछ उपचार प्राप्त किया था।

डॉ. हैनीमैन ने इस बल को मिआस्म कहा तथा तीन अलग-अलग प्रकार के मिआस्म जैसे कि, सोरा (psora), साइकोसिस (sycosis) और सिफलिस (syphilis) बताएं। अपनी पुस्तक, क्रॉनिक डिज़ीज़ में, वे बताते हैं कि कुछ लोगों और परिवारों में अपनी बीमारी का 'मूल’ होता है जो इलाज के बावजूद बीमारी को ठीक होने से रोकता है या एक विशेष बीमारी या बीमारी के प्रकार की प्रवृत्ति में वृद्धि करता है। उन्होंने किसी व्यक्ति और उसके परिवार में देखी जाने वाली बीमारियों के बीच के पैटर्न या इसी तरह की विशेषताओं पर ध्यान दिया। उन्होंने महसूस किया कि जब तक इसकी जड़ का इलाज नहीं किया जाता और इसे हटाया नहीं जाता, तब तक व्यक्ति अपने जीवन में एक या दूसरी बीमारी से ग्रस्त होता रहेगा।

होम्योपैथी के अनुसार, हम में से प्रत्येक व्यक्ति एक या एक से अधिक प्रकार के मिआस्म के साथ पैदा होता है, जो कुछ प्रकार की बीमारियों की आशंका बढ़ाता है। मिआस्म के नाम उन बीमारियों के साथ बहुत ही ढीले संबंध रखते हैं, जिन पर उनका नामकारण हुआ है। यह समझना जरुरी है कि मिआस्म कोई जादू नहीं करते हैं और कभी भी पूरी तरह से समाप्त नहीं हो सकते हैं। जब वे अनुपात से बाहर निकलते हैं तभी होम्योपैथिक उपचार से उनको केवल संतुलित किया जाता है। मिआस्म का उपचार उनकी रोग पैदा करने की क्षमता को कम करने में मदद करता है और जीवन-निर्वाह बल को मजबूत करता है, जिसे 'वाइटल फाॅर्स' भी कहा जाता है।

केवल वर्षों के अनुभव और समझ से ही होम्योपैथिक चिकित्सक पुरानी व जटिल बीमारियों के इलाज में उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं। यह क्रिया घर पर हम स्वयं नहीं कर सकते हैं।

होम्योपैथी के साइड इफेक्ट्स और जोखिम:-

होम्योपैथिक दवाएं प्राकृतिक तत्वों से बनी होती हैं, लेकिन उनका इतना महीन घोल (डाइल्यूट) बनाया जाता है कि मूल पदार्थ का तत्व नगण्य हो जाता है। इससे होम्योपैथी दवाएं बेहद सुरक्षित रहती है। किसी भी अध्ययन से आज तक किसी गंभीर जोखिम या होम्योपैथी के दुष्प्रभावों की सूचना नहीं मिली है। कोक्रेन डेटाबेस ऑफ़ सिस्टमैटिक रिव्यूज़ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, अलग-अलग अध्ययनों ने कैंसर के रोगियों में होम्योपैथिक दवाओं के प्रभाव का विश्लेषण किया। इन अध्ययनों में होम्योपैथिक दवाओं से कोई स्वास्थ्य जोखिम नहीं पाया गया।

स्विटजरलैंड में स्विस फेडरल ऑफिस ऑफ पब्लिक हेल्थ द्वारा किए गए एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि होम्योपैथी और पारंपरिक दवा लेने वाले 3126 मरीजों में से होम्योपैथी लेने वाले रोगियों में 2 से 3 गुना कम दुष्प्रभाव हुए और पारंपरिक दवाएं वालो की तुलना में उनका संतुष्टि का स्तर उच्च था।

हालाँकि, होम्योपैथी काफी हद तक सुरक्षित है, लेकिन नियमित उपचार के बावजूद यदि लक्षणों में सुधार नहीं होता है, तो शीघ्र उपचार के लिए संबंधित विशेषज्ञ से परामर्श करना जरूरी है।

इसके अलावा, वैक्सीन के रूप में होम्योपैथिक दवाओं की प्रभावकारिता अभी सिद्ध नहीं हुई है। इसीलिए, बच्चों को आसानी से रोके जाने योग्य घातक रोगों से बचने के लिए देश के राष्ट्रीय टीकाकरण सूची के अनुसार टीकाकरण करवाया जाना चाहिए।

होम्योपैथी में परहेज :-
क्या होम्योपैथी के अनुसार किसी बीमारी के इलाज के लिए आहार और जीवनशैली में बदलाव की आवश्यकता है?

सामान्य विचार के विपरीत, कॉफी, लहसुन और प्याज जैसे खाद्य पदार्थों के सेवन से होम्योपैथिक दवाओं का असर कम नहीं होता है। उपचार लेते समय किसी भी समस्या से बचने के लिए खाद्य पदार्थों के संबंध में एक योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक की सलाह का पालन करना सबसे बेहतर रहता है।

होम्योपैथी चिकित्सा नियामक प्राधिकरण :-
क्या होम्योपैथी किसी भी प्राधिकरण द्वारा विनियमित है?
हाँ, अधिकांश देशों में सरकार द्वारा होम्योपैथी को विनियमित किया जाता है। भारत में, यह आयुष मंत्रालय, केंद्रीय होम्योपैथी परिषद और एफडीए द्वारा विनियमित है। अमेरिका में, यह यूएस एफडीए द्वारा विनियमित है। होम्योपैथिक दवाओं का निर्माण किसी देश के फार्माकोपिया के अनुसार किया जाता है, जिसमें प्राकृतिक पदार्थों के चयन के साथ ही उनके प्रसंस्करण और अंतिम उपयोग हेतु घोल बनाने के लिए विस्तृत दिशा निर्देश होते हैं।

होम्योपैथिक इलाज की अन्य जानकारी:-
होम्योपैथी दो सदियों से भी अधिक पुरानी चिकित्सा पद्धति है। यह आम बीमारियों, जीवनशैली संबंधी विकारों और पुरानी बीमारियों के इलाज के लिए काफी हद तक सुरक्षित, प्रभावी तथा जेब के अनुकूल विकल्प है। हालांकि, एक योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक से परामर्श के बाद ही यह चिकित्सा ली जानी चाहिए|



अस्वीकरण: इस साइट पर उपलब्ध सभी जानकारी और लेख केवल शैक्षिक उद्देश्यों के लिए हैं। यहाँ पर दी गयी जानकारी का उपयोग किसी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्या या बीमारी के निदान या उपचार हेतु बिना विशेषज्ञ की सलाह के नहीं किया जाना चाहिए। चिकित्सा परीक्षण और उपचार के लिए हमेशा एक योग्य चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए|
उचित सलाह लेने के लिए योग्य चिकित्सक
महर्षि मेंही हेल्दी लाइफ क्लिनिक
डॉ दीपक कुमार
( होम्योपैथिक फिजीशियन) से संपर्क करें, और इस पेज को लाइक ,कमेंट ,और शेयर करें आपका बहुत-बहुत धन्यवाद|
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महर्षि मेंही हेल्दी लाइफ क्लीनिक के संस्थापक डॉ दीपक कुमार जी आप लोगों के बीच एक और महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं ,बच्च...
29/06/2021

महर्षि मेंही हेल्दी लाइफ क्लीनिक के संस्थापक डॉ दीपक कुमार जी आप लोगों के बीच एक और महत्वपूर्ण जानकारी लेकर आए हैं ,

बच्चे का वैक्सिनेशन, जानें कब और कौन सा वैक्सीन है जरूरी?
बच्चों की बॉडी में किसी भी बीमारी के विरुद्ध प्रतिरोधात्मक क्षमता (immunity) विकसित करने के लिए टीकाकरण किया जाता है। टीकाकरण (Vaccination) मौखिक और इंजेक्शन के रूप में किया जाता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे वैक्सीन कहते हैं। बच्चों में संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए टीकाकरण सबसे ज्यादा प्रभावी एवं किफायती तरीका माना जाता है। इस आर्टिकल में हम टीकाकरण के बारे में आपको बताएंगे

बच्चों को दिए जाने वाले कुछ जरूरी वैक्सीन
टीका (वैक्सीन) क्या होता है?
टीके एंटीजेनिक (antigenic) पदार्थ होते हैं। टीके के रूप में दी जाने वाली दवा या तो बीमारी के कारक जीवित बैक्टीरिया को मार देती है या उन्हें अप्रभावी करती है। इसके अलावा, टीका किसी पदार्थ का शुद्ध रूप जैसे – प्रोटीन आदि हो सकता है। सबसे पहले चेचक का टीका आजमाया गया था।

वेरिसेला (चिकनपॉक्स) वैक्सीन
शिशुओं को चिकनपॉक्स से बचाने के लिए उन्हें वेरिसेला वैक्सीन (चिकनपॉक्स वैक्सीन) दिया जाता है। स्कूल और बाहरी माहौल में यह वैक्सीन शिशु के चिकनपॉक्स के संपर्क में आने से उसकी रक्षा करता है।

कब दिया जाता है चिकनपॉक्स वैक्सीन?
सेंटर डीजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के मुताबिक, 12 महीने से लेकर 18 वर्ष की आयु तक बच्चों को चिकनपॉक्स वैक्सीन के दो डोज दिए जाते हैं। सीडीसी के मुताबिक, चिकनपॉक्स वैक्सीन का पहला डोज 12 और 15 महीने के बीच दिया जाना चाहिए। इसका दूसरा डोज चार और छह वर्ष के बीच में दिया जाना चाहिए।

चिकनपॉक्स वैक्सीन के संभावित साइड इफेक्ट्स
अध्ययनों में इस बात की पुष्टि की जा चुकी है कि ज्यादातर बच्चों के लिए वेरिसेला (चिकनपॉक्स) वैक्सीन सुरक्षित होता है लेकिन, इसके कुछ हल्के दुष्प्रभाव भी होते हैं। इनके बारे में नीचे बताया गया है।

सूजन और इंजेक्शन वाले हिस्से के आसपास लालिमा पड़ना
बुखार
रैशेज
रोटावायरस वैक्सीन (आरवी)
रोटावायरस सबसे ज्यादा संक्रामक वायरस होता है। इससे शिशुओं और बच्चों में गंभीर डायरिया होता है। इस वायरस के संपर्क में आने से उल्टी और बुखार हो सकता है। यदि इसका इलाज ना किया जाए तो इससे डीहाइड्रेशन और मृत्यु तक हो सकती है। पाथ नामक अंतरराष्ट्रीय और गैर लाभकारी संगठन के मुताबिक, हर वर्ष दुनियाभर में डायरियल डिजीज से पांच लाख बच्चों की मृत्यु हो जाती है। इसमें से एक तिहाई मौतें रोटावायरस की वजह से होती हैं। रोटावायरस के संपर्क में आने से लाखों बच्चों को हर वर्ष अस्पताल में भर्ती कराया जाता है।

कब दिया जाता है रोटावायरस वैक्सीन?
रोटावायरस वैक्सीन 6, 10, 14 हफ्ते में तीन बार जाता है। इसमें बेबी को 5 ड्रॉप ओरली दी जाती हैं। हालांकि, एलर्जी के कुछ मामलों में शिशुओं को रोटावायरस वैक्सीन नहीं मिल पाता है।

रोटावायरस के साइड इफेक्ट्स
अन्य वैक्सीन की तरह रोटावायरस वैक्सीन के कुछ हल्के साइड इफेक्ट्स होते हैं।

टेम्प्रेरी डायरिया या उल्टी होना
बुखार
ऐप्टेटाइट का कम होना
चिड़चिड़ापन
हेपेटाइटिस ए वैक्सीन
हेपेटाइटिस ए लिवर की एक एक्यूट बीमारी है। यह हेपेटाइटिस ए वायरस से फैलती है। इसके लक्षण एक हफ्ते से लेकर कई महीनों तक रह सकते हैं। शिशुओं के लिए यह कई मामलों में खतरनाक होती है।

कब दिया जाता है हेपेटाइटिस ए का वैक्सीन?
सीडीसी के मुताबिक, हेपेटाइटिस का पहला डोज एक साल पूरा होने पर दिया जाना चाहिए। इसका दूसरा डोज इसके छह या एक वर्ष बाद दिया जाना चाहिए।

हेपेटाइटिस ए वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स
इंजेक्शन वाले हिस्से के आसपास सोरनेस।
सिर दर्द
थकान
मेनिंगोकोकल वैक्सीन (एमसीवी)
मेनिंगोकोकल एक खतरनाक बैक्टीरियल बीमारी है। मेनिंगोकोकल से मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड के चारों तरफ मौजूद सुरक्षा घेरे में इंफ्लमेशन और ब्लडस्ट्रीम में संक्रमण होता है।। इस बीमारी से बचाव करने के लिए मेनिंगोकोकल वैक्सीन दिया जाता है।

कब दिया जाता है मेनिंगोकोकल वैक्सीन?
11 से 12 और 16 वर्ष तक मेनिंगोकोकल वैक्सीन के दो डोज दिए जाते हैं। इस वैक्सीन को मेनाक्ट्रा भी कहा जाता है।

हेपेटाइटिस बी
हेपेटाइटिस बी में बच्चों का लिवर खराब हो जाता है। हेपेटाइटिस बी से बचाव के लिए हेपेटाइटिस बी वैक्सीन दिया जाता है। इसके तीन से चार डोज दिए जाते हें।

कब दिया जाता है हेपेटाइटिस बी का वैक्सीन?
इसका पहला डोज शिशु के जन्म के बाद दिया जाता है। दूसरा डोज एक से दो महीना पूर्ण होने पर दिया जाता है। जरूरत पड़ने पर इसका तीसरा डोज चौथे महीने में दिया जाता है और आखिरी छह से 18 महीनों पर दिया जाता है।

डिप्थीरिया, टेटनस और व्हूपिंग कफ (परटुससिस, डीटीएपी)
बच्चों को DTaP वैक्सीन के तीन डोज दिए जाते हैं। 6, 10 और 14वें हफ्ते में कम्रश: ये डोज दिए जाते हैं।

हेमोफिलस इनफ्लेंजा टाइप बी (Hib) वैक्सीन
Hib वैक्सीन 3-4 डोज में दिया जाता है। हालांकि, यह इसके ब्रांड पर भी निर्भर करता है कि बच्चे को कितने डोज दिए जाएं। इसका पहला डोज 2 महीने, दूसरा चार महीने पर और जरूरत पड़ने पर तीसरा डोज छह महीने पर दिया जाता है। इसका आखिरी डोज 12-15 महीनों के बीच दिया जाता है।

इन्फ्लूएंजा(Flu)
प्रत्येक बच्चे को इन्फ्लूएंजा वैक्सीन के छह महीने पर दिया जाता है। वहीं, नौ वर्ष से छोटे बच्चों को इन्फ्लूएंजा वैक्सीन के दो डोज की जरूरत होती है। यदि आपके बच्चे को भी एक से अधिक डोज की जरूरत हो तो एक बार डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।

खसरे का टीका (mumps)
यह वैक्सीन बच्चों को खसरे की बीमारी से बचाता है। बच्चों को एमएमआर (खसरे) वैक्सीन के दो डोज दिए जाते हैं। पहला डोज 12-15 महीने पर और दूसरा डोज 4-6 वर्ष की उम्र के बीच दिया जाता है। हाल ही के कुछ वर्षों में खसरा एक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या के रूप में उभरा है।

न्यूमोकोकल वैक्सीन
न्यूमोकोकल बीमारी एक प्रकार का संक्रमण होता है, जो स्टेरेप्टेकोकोकस न्यूमोनिया बैक्टीरिया से होता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे निमोनिया के नाम से जाना जाता है। इससे कान में संक्रमण और मेनिनगिटिस जैसी समस्या हो सकती है। इस बीमारी से बचाव के लिए बच्चों को प्रेनव्नार (पीसीवी) के चार डोज दिए जाते हैं। इसका पहला डोज दो महीने, दूसरा चार महीने और तीसरा डोज छह महीने पर दिया जाता है। इसका चौथा डोज 12-15 महीनों पर दिया जाता है।

वहीं, कुछ बच्चों को न्यूमोवेक्स (पीपीएसवी) के एक डोज की जरूरत होती है। न्यूमोकोकल बीमारी से अतिरिक्त सुरक्षा के लिए यदि आपके बच्चे को एक्सट्रा डोज की जरूरत पड़ती है तो अपने डॉक्टर से बात करें।

पोलिया (IPV) वैक्सीन
पोलिया एक ऐसी घातक बीमारी है, जिससे शिशुओं की बॉडी में लकवा मार जाता है। इससे बचाव के लिए बच्चों को पोलियो वैक्सीन (IPV) के चार डोज की जरूरत होती है। इसका पहला डोज दो महीने और दूसरा डोज चार महीने पर दिया जाता है। पोलियो वैक्सीन का तीसरा डोज 6-18 महीने और चौथा डोज 4-6 वर्ष की उम्र में दिया जाता है।

अंत में हम यही कहेंगे बच्चे का टीकाकरण (वैक्सिनेशन) सबसे ज्यादा जरूरी है। जानलेवा संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिए अपने बच्‍चों को सही समय पर टीके अवश्‍य लगवाएं। हर मां को अपने बच्चे का टीकाकरण कराना चाहिए। टीकाकरण बच्चों को जीवन भर हेल्दी रखने में मददगार साबित होता है।

अंत में आप लोगों से सादर अनुरोध है कि इस पेज को( महर्षि मेंही हेल्दी लाइफ क्लीनिक) फॉलो करें कमेंट करें और शेयर करें जिससे हमारा भी हौसला बना रहे |धन्यवाद

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