Avanti Ayurvediya Chikitsalaya

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06/11/2024

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/11/blog-post_6.html

बदलते/नये हेतु स्कंध एवं तज्जन्य बदलते/नये लक्षण स्कंध के अनुसार ... नया अभिनव नूतन अपूर्व औषध स्कंध!

आज कुछ "अच्छा" सुनते है !
आज कुछ "सच्चा" सुनते है !!

हेतु स्कंध के अनुसार हि लक्षण निर्माण होते है,

यह कार्य करण भाव सिद्धांत है!

जैसे हेतू बदलेंगे, वैसे लक्षण भी बदलेंगे.

संहिता मे जो हेतु स्कंध था,

वो आज वैसे के वैसे उपलब्ध नहीं है

और

आज का जो हेतु स्कंध है,

उसका वर्णन संहिता में नही हो सकता!

तो संहिता काल के हेतुजन्य लक्षण आज दिखाई नही देते, जैसे की गुल्म ऊरुस्तंभ ...

और आज के नये हेतु, एवं तज्जन्य जन्य नये लक्षण संहिता मे वर्णित नही हो सकते !

और

*हेतु लक्षण के विपरीत हि, औषध स्कंध होता है*.

तो ... बदलते/नये हेतु स्कंध एवं तज्जन्य बदलते/नये लक्षण स्कंध के अनुसार हि, नया औषध स्कंध होना,

यही शास्त्र सुसंगत है.

किंतु नये औषधस्कंध की निर्मिती या डिझाईन के लिए उतनी बुद्धिमत्ता उतने अनुभव और *उतनी विश्वासार्हता* संभवतः आज किसी के भी पास नही है.

तो जो संहिता मे उल्लेखित या 100 200 300 वर्ष पूर्व लिखे हुए ग्रंथो मे उल्लेखित योग / कल्प है,

वे "तत्कालीन" हेतुजन्य, "तत्कालीन" लक्षणों के लिए लिखे हुए, "तत्कालीन" औषध स्कंध है.

इसलिये मेरा एक ऐसा भी मानना है, कि वह जो औषध स्कंध आज हम प्रयोग मे ला रहे है, वो "कालबाह्य" है.

हम आज के हेतुओं के विपरीत, "आज" के हेतु व "आज" के लक्षण के विपरीत, "तत्कालीन" ताप्यादि लोह, "तत्कालीन" कौटजादि शिलाजतु "तत्कालीन" च्यवनप्राश ऐसे औषध, आज के दौर/काल/युग मे प्रयोग कर रहे है.

ये आज के गन और बॉम्ब से जैसे शस्त्रों से सिद्ध/ युक्त शत्रुओं के साथ , "विगतकाल के कालबाह्य तत्कालीन" "तीर और तलवार" से युद्ध करने जैसा है.

ये ई-मेल व्हाट्सअप के जमाने मे कबूतर द्वारा या घुडसवार द्वारा संदेश भेजने जैसा है.

तो "आज के नये" हेतुओं के लिए और "तज्जन्य आज के नये" लक्षण के लिए, "आज का नया औषध स्कंध" लिखना, यह "आज के वैद्यों" का, "आज के आयुर्वेद अनुयायीयों" का, "आज के आयुर्वेद अभ्यासकों" का काम है.

सिद्धांत त्रिकाला बाधित है इसका अर्थ यह नही होता है कि, उसके अनुसार लिखे हुए औषध कालबाह्य नही होंगे.

जैसे हमारे बचपन मे चौथी पाचवी छठी कक्षा मे गणित के मॅथ्स के कुछ प्रॉब्लेम्स सॉल्व करते थे, उसमे जो उदाहरण होते है, उस काल के थे. आज 30 40 साल के बाद, जब हम रोज के व्यवहार में बँक मे किराणा दुकान मे बस के ट्रॅव्हल मे हर क्षण हर व्यवहार मे जो गणित के प्रॉब्लेम्स सॉल्व करते है, वो बचपन की किताबों से नही है. बचपन के किताब मे गणित के जो 0 से 9 नंबर थे और जो मूलभूत मल्टिप्लिकेशन ॲडिशन सबट्रॅक्शन डिव्हायडेशन+×÷- ये गणित की प्रक्रियायें थी, "आज के प्रॉब्लेम के लिए भी, वैसे ही उपयोगी है".✅️

इस प्रकार से संहितोक्त या बाद के योगसंग्रह मे जो आज से 100 200 400 वर्ष पहले लिखे गये है, उन तत्कालीन ग्रंथो मे उल्लेखित औषध स्कंध / योग / कल्प "आज, कालबाह्य" हो गये है ... "क्योंकि" वे "तत्कालीन" हेतुस्कंध, "तत्कालीन" तज्जन्य लक्षण स्कंध के लिये, "तत्कालीन" हेतु लक्षण विपरीत औषध स्कंध है. उनका भी आकलन उन्हीं सिद्धांतोंपर उन्ही दोषरसगुणमहाभूत पर और मूलभूत मुस्ताशुंठीवचाहरिद्रा इन द्रव्यों के आधार पर हि सिद्ध होगा ... वैसे ही उन्ही दोष रस गुण महाभूत सिद्धांत पर और उन्हीं मुस्ता शुंठी वचा हरिद्रा इन्हीं द्रव्यों से हि आज के नये हेतुओं के लिए और आज के नये लक्षणे के लिये, आज का नया औषध स्कंध बनेगा.

शून्य से नऊ (0 to 9) अंक वही रहेंगे, मल्टिप्लिकेशन डिव्हायडेशन सब्ट्रॅक्शन ॲडिशन (+×÷-) यह प्रक्रियायें वही रहेंगी, किंतु बचपन के मॅथ्स के प्रॉब्लेम आज नही रहेंगे, आज के मॅथ्स के प्रॉब्लेम नये आयेंगे, जो फिर से उन्हे 0 से 9 नंबर के द्वारा और उन्हीं मल्टिप्लिकेशन डिव्हायडेशन सब्ट्रॅक्शन ॲडिशन +×÷- प्रक्रियायों द्वारा हि सॉल्व होंगे.

सब कुछ बेसिकली वही रहेगा , लेकिन "कॉम्बिनेशन बदलेगा, अरेंजमेंट बदलेगी".

आज के व्यवहार में, वैसे ही दोष रस गुण महाभूत वही रहेंगे, वचा शुंठी मुस्ता हरिद्रा वही रहेंगे, किंतु आज के हेतूओं के लिए, आज के लक्षणों के लिए , आज का औषध स्कंध इन्हीं सिद्धांतोंसे, इन्ही औषधी द्रव्यों से बनेगा ... किंतु "कॉम्बिनेशन = अरेंजमेंट नया होगा" ... इसलिये औषधी स्कंध अभिनव बनेगा , नूतन बनेगा , अपूर्व बनेगा!!!

प्रस्थापित औषधों से परे , कुछ अन्य नये अभिनव नूतन औषधी योग = औषधी कल्प प्रस्तुत करने का निरंतर प्रयास, स्वयं म्हेत्रेआयुर्वेद के और ... MhetreAyurveda के विद्यार्थी तथा सन्मित्र वैद्यों द्वारा उनका बहुतर मात्रा में प्रयोग करने के बाद जो अनुभव आता है , उसके अनुसार ये लेख लिखे जाते है.

इसका उद्देश्य ये है की , आज के नये हेतू स्कंध के लिए और "तज्जन्य" आज के नये लक्षण स्कंध के लिए ... यह "नए औषध स्कंध" प्रयोग करके देखिये !!!

हो सकता है की प्रस्थापित और पूर्वोक्त संहितोक्त और संभवतः कालबाह्य औषध कल्पों से "अधिक कार्यकारी, यह नए कल्प" है, ऐसा अनुभव आपको भी आयेगा!!!

यह नये कल्प कोई म्हेत्रेआयुर्वेद MhetreAyurveda की अपनी प्रॉपर्टी पेटंट कॉपीराईट नही है!

यह केवल एक नयी पहल है, की प्रस्थापित लोकप्रिय कल्पों को बाजू को रखके, कुछ नये कल्पों का रुग्णों पर उपयोग करके, आने वाले अनुभवोंको आपके सामने प्रस्तुत किया है.

ये कल्प म्हेत्रेआयुर्वेद से ही पर्चेस करने चाहिये ऐसा नही है. ये कल्प स्वयं भी निर्माण करके आपके पेशंट पर उपयोग करके देख सकते है. हो सकता है की, हम आज के नये हेतुस्कंध के लिए, "तज्जन्य" नये लक्षण स्कंध के लिए, एक नया औषध कंध निर्माण कर पाये ... जो आनेवाले काल के लिए सुसंगत, परिणामकारक और लाभदायक होगा.

म्हेत्रेआयुर्वेद द्वारा जो लेख कल्पों के / गण के बारे मे लिखे जाते है, वे मार्केटिंग के लिए, व्यवसाय के लिए, व्यापार के लिए नही लिखे जाते!

अपितु, नये हेतू स्कंध के अनुसार, निर्माण होनेवाले, "तज्जन्य" नये लक्षण स्कंध के लिए उपयोगी, ऐसे हेतू विपरीत &/or लक्षण विपरीत, "नये औषध स्कंध" प्रस्तुत करने के लिए, शास्त्र के लिए एक समर्पित योगदान करने के लिए , यह लेख निरंतर प्रस्तुत किये जाते है.

✍🏼
वैद्य हृषीकेश म्हेत्रे
आयुर्वेद क्लिनिक्स @ पुणे & नाशिक
9422016871

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06/11/2024

*मुस्तादि गण : स्त्री विशिष्ट विकारों में उपयोगी अत्यंत वीर्यवान कल्प!*

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29/10/2024

नमस्कार 🙏🏼
धनत्रयोदशी निमित्त सर्वांना शुभेच्छा 💐
अश्विनौ देवभिषजौ अर्थात अश्विनी कुमार हे देवांचे वैद्य आहेत. रुद्र हा प्रथम वैद्य आहे, अशी श्रुती आहे !
असे असताना हे नुसता अमृताचा कलश वरती घेऊन येणारा धन्वंतरी हा आयुर्वेदाची वैद्यकाची औषधा ची देवता का आणि कसा झाला ???

जर सगळे देव मिळून क्षीरसागर मंथन करत होते आणि त्या मंथनातून धन्वंतरी वरती आला असेल, तर तो आदिदेव म्हणजे पहिला देव कसं काय होऊ शकतो?
धन्वंतरीचा आणि आरोग्यशास्त्राचा खरंच काही संबंध आहे का?
मुळात आयुर्वेदाच्या चरकपरंपरेमध्ये धन्वंतरीचा कुठेही उल्लेख नाही ...
ब्रह्मापासून तर अग्निवेश पर्यंत!!! सुश्रुत संहिते इंद्राकडून मी म्हणजे धन्वंतरीने ज्ञान घेतले असा उल्लेख आहे, पण हा धन्वंतरी कोणता? अमृत मंथनातून आलेला? का काशीराज दिवोदास? काशीराज दिवोदास असेल तर त्याच्या आधी कित्येक राजे होऊन गेले असतील आणि त्या राजांचे आरोग्य संभाळणारा आयुर्वेद आधीपासूनच अस्तित्वात असणार आहे! त्यामुळे दिवोदास हा इंद्रा कडून आयुर्वेद घेणारा होऊ शकेल, असे वाटत नाही! फक्त चरकपरंपरेला समांतर लिहिण्यासाठी ही "कथा तयार झाली" असावी.

त्यामुळे सरळ सरळ स्पष्टपणे धन्वंतरीचा आरोग्याशी आयुर्वेदाशी संबंध आहे, असा सुश्रुत संहिता आणि त्यानंतरचे आयुर्वेद ग्रंथ वगळता, अन्य कुठे संदर्भ आहे का???

29/10/2024

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/10/blog-post.html

धन्वन्तरि कौनसा?
देहत्याग स्थल कौनसा?
निष्प्रयोजने काकदन्तपरीक्षादौ प्रेक्षावतां प्रवृत्तिर्नोपलभ्यते !!!

अगर इस विषय मे अन्य दृष्टीकोन पढने की इच्छा और उत्सुकता हो तो
सविस्तर यहां पढे👇🏼
https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/10/blog-post.html

https://youtu.be/AvE8kd24YkE?si=LC3h6wcs2hd8ihMxसर्वश्रेष्ठ टीकाकार आयुर्वेद रसायन कार श्री हेमाद्री विरचित भगवान् धन्वन...
29/10/2024

https://youtu.be/AvE8kd24YkE?si=LC3h6wcs2hd8ihMx

सर्वश्रेष्ठ टीकाकार आयुर्वेद रसायन कार श्री हेमाद्री विरचित भगवान् धन्वन्तरि स्तवन शुद्ध उच्चारण मे

ॐ शङ्खं चक्रं जलौकां
दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः।
सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमम्भोजनेत्रम्॥
कालाम्भोदोज्ज्वलाङ्गं कटितटविलसच्चारूपीताम्बराढ्यम्।
वन्दे धन्वन्तरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम्॥

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Dhanvantari Stavanam Shankham Chakram

23/10/2024

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/10/fast-and-distant-mobility.html
🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️
*द्रुतविलम्बितगो* = शीघ्रगती से और लंबी दूरी तक जाने की क्षमता = Fast and Distant mobility! 🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️

रुके रुके से कदम ... रुक के ... बार बार चले 🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️

इस मोड से जाते है, कुछ सुस्त कदम रस्ते ... *कुछ तेज कदम राहे*🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️🏃🏻‍♀️

सहचरं सुरदारुं सनागरं
क्वथितमम्भसि तैलविमिश्रितम्।
पवनपीडितदेहगतिः पिबन्
*द्रुतविलम्बितगो* _भवति इच्छया_ ॥

सहचर देवदार और शुंठी इनका क्वाथ बनाकर, उसमे योग्य मात्रा मे तैल संमिश्र करके पान करते है तो,
जिनकी देह गती अर्थात शरीर का चलनवलन वायुसे पीडित हैै , ऐसे रुग्ण भी अपनी "इच्छा के अनुसार, शीघ्रगती से और लंबी दूरी तक जाने मे समर्थ" होते है. Fast and Distant mobility!

लेखक : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे.
एम् डी आयुर्वेद, एम् ए संस्कृत.
आयुर्वेद क्लिनिक्स @पुणे & नाशिक.
9422016871

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/10/fast-and-distant-mobility.html

19/10/2024

https://mhetreayurved.blogspot.com/2024/10/blog-post_19.html
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चिकुनगुन्या डेंग्यू इत्यादि ज्वर सहित या विरहित या पश्चात होने वाले *संधि शूल शोथ ग्रह सकष्ट आकुंचन प्रसारण* मे उपयोगी शीघ्र उपशमदायक योग

लेखक✍🏼 : वैद्य हृषीकेश बाळकृष्ण म्हेत्रे 9422016871

18/10/2024

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आयुर्वेद को मेन स्ट्रीम मेडिसिन , फर्स्ट चॉईस मेडिसिन, प्रीमियम मेडिसिन ... ऐसे श्रेणी मे प्रस्थापित करने के लिए सकारात्मक उपाय

साथ हि, आयुर्वेद को होलिस्टिक मेडिसिन बनाने के लिए विधायक उपाय

साथ हि, आधुनिक आयुर्वेद/ आयुर्वेद का आधुनिकीकरण / युगानुरूपसंदर्भ आयुर्वेद के लिये रचनात्मक उपाय

आधुनिक BAMS = Bharateeya "All Medicines" Scholar

Or

आधुनिक BAMS = Bachelor of "All Medicine" Skills

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17/10/2024

धन्वंतरी देहत्याग स्थल ... ऐसा एक प्रचार किया जाता है! वैसे भी दिवाली आ रही है ... धन्वंतरी जयंती भी समीप हि है !!!

जैसे चरक जयंती यह नागपंचमी के दिन होती है , ऐसा "प्रचार" किया जाता है ... वैसे हि ये धन्वंतरी देहत्याग स्थल भी, बिना सर पैर की बात है !

चरक शेष के अवतार है, शेष एक नाग है ... इसलिये नागपंचमी चरक जयंती है , ऐसा बडा दूर का संबंध लगाया जाता है

वैसेही गुजरात के धनेज नाम के किसी गाव मे धन्वंतरी का देह त्याग स्थल है, इस प्रकार का प्रचार और फिर वहां पर ॲकॅडमिक टूरिझम !! ऐसे तथाकथित "पवित्र" स्थल पर अध्ययन करने का उत्सव / सेलिब्रेशन !!!

यूं तो, आयुर्वेद के लोगों को ऐसे इव्हेंटफुल हॅपनिंग सेलिब्रेशन करने मे बडा मजा आता है.

अभी आप संहिताओं का अध्ययन अपने घर मे करो , कॉलेज में करो , ऑनलाइन करो या धन्वंतरी के देह त्याग स्थल पर करो ... उससे क्या फरक पडने वाला है?!

लेकिन ऐसे नही है !
कुछ तो हॅपेनिंग होना चाहिये, इव्हेंटफुल होना चाहिये ! जिसका "मार्केटिंग" किया जा सके, जिस पर "कोलाहल / शोर" मचाया जा सके !!!

अभी धन्वंतरी कौन सा??

जो क्षीरसागर के मंथन से उपर आया हुआ था, अमृत कलश लेकर वह?!

अब जिसके हाथ मे अमृत कलश था, वो धन्वंतरी थोडेही मरेगा??? जिसके हाथ में अमृत है वो तो अमर है ना!? वह किसलिये देह त्याग करने के लिए धनेज गांव जायेगा!?

या दूसरा धन्वंतरी, जिसको काशीराज दिवोदास कहते है???

अभी काशी जैसी पवित्र नगरी, जहां पर लोग मरने के लिए आते है अपने अंतिम समय मे , ऐसी पवित्र नगरी छोडकर , काशीराज दिवोदास देहत्याग के लिये, काशी से इतनी दूर , पश्चिम समुद्र के तट पर, गुजरात राज्य मे, धनेज नाम के गाव मे जायेगा???

किंतु सोचेगा कौन?

हमारे यहाँ तो किसने कुछ बोलने की देर है .. "जय हो" कहने के लिए उसके पीछे सैकडो लोग खडे रहते है हि!

उदाहरण के तौर पर ...
किसी ने बोल/लिख दिया ज्वर कषाय पंचक यह धातुपाचक है! और उसके भी आगे जाकर, "धातुपाचक के ब्रेड" पर "मीमांसा का बटर" लगा दिया ... भैय्या मेरे, पाणीपुरी के ठेले पर श्रीखंड क्यूं बेच रहे हो!? 😇🙃

अभी जहां पाच विषम ज्वरों का धातु स्थान हि निश्चित/निर्धारित नही है, कौन से भी धातु मे कौनसा भी विषमज्वर हो सकता है, ऐसे स्वयं चरक हि कहता है ... तो उनको शमन करने वाले कषाय पंचक, अमुक धातु का अमुक पाचक है, ऐसे कैसे कहेंगे?!

अभी उस श्लोक मे तो "शमनाः" शब्द है, लेकिन लोगो ने तो "धातुपाचक" कहकर, उसको "प्रस्थापित" करके, उसके टॅबलेट, उसके गुगुल, उसके काढे, उसके आसवारिष्ट, उस पर व्याख्यानमाला, उस पर किसी मासिक का विशेष अंक, पूरी "धातु पाचक संहिता" बना ली !!

कोई "सोचेगा" ही नही!!

या तो कोई भी "सोच"🧐 हि नही रहा है

या

सभी "सो"च 🥱😴 हि रहे है

किसी ने भी कुछ भी बोल दिया कि,
जय हो कहने का !!!

लेकिन उसकी स्क्रुटीनी व्हेरिफिकेशन व्हॅलिडेशन एक्झामिनेशन ... कुछ नही करनेका ... "सोचने" का हि नही ...

"क्योंकि ..."

"सोचने" से ज्यादा "बेचने" मे फायदा है ... यह जानने के बाद, यह समझने के बाद, इस प्रकार के "ॲकॅडमिक टूरिझम" का व्यवसाय चलने लगता है ...

थोडे दिन रुकिये ...
सुश्रुत का भी जन्मस्थल, वाग्भट का भी देह त्याग स्थल मिल जायेगा!!!

सुश्रुत की जयंती भी अभी किसी ने मनायी थी!

वाग्भट की भी जयंती अगले को सालों मे निकलकर आयेगी ... भाई, "बेचना" जो है, "सोचना" थोडी हि है!!!

लेकिन ये भी एक कौशल, है प्राविण्य है ... इस प्रकार का ॲपॅरेंटली "नैतिक" ॲडवर्टाइजमेंट और "बेचने का कौशल" आना भी आवश्यक है.

दुनिया झुकती है , झुकानेवाला चाहिये

कुछ भी बिकता है ... बस् "बेचने वाला" चाहिये

अगर "बेचने" की कला है ...
तो "सोचने" की आवश्यकता हि नही है

जय हो
जय आयुर्वेद
जय धन्वंतरी

17/10/2024

काहीही नवीन संशोधन आलं की स्वतःवरून स्वर्ग गाठणे आणि आपल्याकडे आधीच सांगितलं होतं असं वडाचं पान पिंपळाला लावणे असले उद्योग आपण बंद करायला पाहिजेत.

काही वर्षांपूर्वी intermittent fasting & autophagy याबद्दलच्या संशोधनासाठी फिजिऑलॉजी मधील शास्त्रज्ञाला नोबेल पारितोषिक मिळाले तर लगेच आमच्याकडे एकादशी व्रत आधीपासूनच सांगितलेले आहे वगैरे वगैरे ढोल ताशे बडवले गेले

आता यावर्षी पण फिजिओलॉजी मधील शास्त्रज्ञाला मायक्रो RAN संशोधनासाठी नोबेल पारितोषिक मिळाले तर लगेच आमच्याकडे गृष्टिक्षीर = पहिल्या वेताचे दूध आधीच सांगितले आहे असे नगारे बडवायला सुरू झाले

खरं पाहता गृष्टिक्षीर याचा अर्थ पहिल्या वेताचे दूध असा होत नाही ,तर एक वार प्रसूता म्हणजे ज्या गाईची ही पहिली प्रसूती आहे तिचं दूध !!
पहिल्या वेताचे दूध हे आयुर्वेदात फारसं चांगलं मानलं गेलेलं नाही, म्हणूनच पहिले तीन दिवस बाळाला स्वतःच्या आईचं दूध सुद्धा वर्ज्य सांगितलेले आहे. स्वतःच्या मातेचे दूध सुद्धा चौथ्या दिवशी प्यायला सांगितलेला आहे. असं आयुर्वेदात स्पष्ट निर्देश आहे उलट आत्ताचे नवीन संशोधन असे सांगते की जन्माला जन्माला बाळाला त्याच्या आईचे तथाकथित चिकाचे दूध कोलेस्ट्रुम हे पाजले जावे म्हणजे त्याला इम्युनिटीसाठी आवश्यक असे अनेक घटक मिळू शकतात आणि प्रत्यक्षात आयुर्वेदात मात्र असे आईचे पहिले दूध चिकाचे दूध कोलेस्ट्रुम हे पहिले तीन दिवस बाळाला देऊ नये असे सांगितलेले आहे हे सत्य आहे. त्यामुळे पहिल्या वेताचं दूध आणि खरवस आणि मायक्रो rna असलं काही आपल्याला ज्ञात असेल आणि ते उपयोगात आणत असतील हे जरा दुष्कर आहे. खरवस हा खाण्याचा पदार्थ म्हणून ठीक आहे परंतु तो अत्यंत गुरु म्हणजे पचायला अत्यंत जड आहे हे त्यांना ज्ञात होतंच. पण त्यात मायक्रो rna असतात त्यात म्हणून खरवस खावा आणि गृष्टि क्षीर म्हणजे पहिल्या वेताचं दूध *हे दोन्ही अपसमज आहेत, शास्त्रीय दृष्ट्या*

इतिहासाचे अवजड ओझे
डोक्यावर घेऊन ना नाचा
करा तयाचे पदस्थल आणिक
त्यावर चढूनी भविष्य वाचा
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हे मला पटतं...

विद्यार्थ्यांना तरुण मुलांना आयुर्वेदाबद्दल ज्ञान असायला पाहिजे खरोखर सत्य यथार्थ!!! त्यांना भ्रांती दिशाभूल अंधश्रद्धा या मार्गाने उग्रवादी कट्टर असे बनवू नये. बुद्धी जागृत ठेवून शास्त्राशी निष्ठावंत असणं वेगळं आणि निर्बुद्ध कट्टरपणा वेगळा!!!

[17/10, 12:20 pm] MhetreAyurveda: काहीही नवीन संशोधन आलं की सुतावरून स्वर्ग गाठणे आणि आपल्याकडे आधीच सांगितलं होतं असं वडाचं पान पिंपळाला लावणे असले उद्योग आपण बंद करायला पाहिजेत.

विद्यार्थ्यांना तरुण मुलांना आयुर्वेदाबद्दल ज्ञान असायला पाहिजे खरोखर सत्य यथार्थ!!! त्यांना भ्रांती दिशाभूल अंधश्रद्धा या मार्गाने उग्रवादी कट्टर असे बनवू नये. बुद्धी जागृत ठेवून शास्त्राशी निष्ठावंत असणं वेगळं आणि निर्बुद्ध कट्टरपणा वेगळा!!!

पदार्थ विज्ञान या नावाचा विषय पहिल्या वर्षी यासाठी आहे की प्रमाणैः अर्थ परीक्षणम् ... योग्य त्या प्रमाणांनी विषयाची परीक्षा करण्याची बुद्धी वृत्ती क्षमता दृष्टी आवड निर्माण व्हावी!

यथा रजते इदं रजतम् इति ज्ञानम् यथार्थज्ञानम् ... यथाशुक्तौ इदं रजतम् इति ज्ञानम् अयथार्थज्ञानम् ... तर यथार्थ काय, अयथार्थ काय, यातला भेद हा साहसाने धाडसाने सत्याधिष्ठित बुद्धीने, कोणाच्याही दबावाखाली न येता, लोकप्रियतेच्या लोंढ्यात वाहून न जाता, गर्दीच्या गडबडीत गोंधळून न जाता, सदसद विवेक बुद्धी जागृत ठेवून, सारासार विवेक करता येईल, अशा पद्धतीने विचार करून, काय स्वीकारायचे, काय नाकारायचे, काय शास्त्रीय सत्य आहे, काय लोकप्रिय ढोंग आहे, कुठली व्यावसायिक चलाखी चतुराई लबाडी, कुठली धंदेवाईक फसवणूक चालते ... याची "परीक्षा" करून, योग्य त्या सन्मार्गावरती पुढे जाता येणे, यासाठी विद्यार्थ्यांना त्यांची "स्वतंत्र बुद्धी, जागृत आणि सक्षम" राहील यासाठी, प्रामाणिक प्रयत्न करायला हवेत🙏🏼

10 ऑक्टोबर : मानस आरोग्य दिनमनाची चिकित्सा = मनाच्या रोगांवर उपचार करणे, हे आयुर्वेदामध्ये शक्य नाही, ते आयुर्वेदाचे काम...
10/10/2024

10 ऑक्टोबर : मानस आरोग्य दिन
मनाची चिकित्सा = मनाच्या रोगांवर उपचार करणे, हे आयुर्वेदामध्ये शक्य नाही, ते आयुर्वेदाचे काम नाही, तो आयुर्वेदाचा स्कोप नाही
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मन आणि आयुर्वेद 👇🏼
https://youtu.be/aV3t6yyrgi0?si=pWI01moeavV0TqsM

मनाला सुद्धा दोष सांगितले आहेत ,तर त्याची चिकित्सा कशी करावयाची
आणि
जर पराधिकार असेल तर उन्माद, अपस्मार याचे एवढे विस्तृत वर्णन आपल्या ग्रंथात कसे??

कायचिकित्सा नाम सर्वाङ्गसंश्रितानां व्याधीनां ज्वररक्तपित्तशोष *उन्मादापस्मार* कुष्ठमेहातिसारादीनामुपशमनार्थम्

उन्माद अपस्मार हे काय चिकित्सा अधिकारात येणारे रोग आहेत, त्याचे प्रकार वात पित्त कफ ज असे आहेत ... सात्त्विक राजस तामस असे नाहीत.

🎯मनाला दोनच दोष सांगितले आहेत , रज आणि तम ... त्यांची चिकित्सा योगशास्त्रात सांगितली आहे. आयुर्वेद शास्त्रात रज आणि तम यांचा "फक्त उल्लेख" आहे, त्याच्या चिकित्सेचा उपचारांचा उल्लेख कुठेही नाही !!!

तेन मानस "उद्दिष्ट एव", परं न शारीरदोषवत् प्रपञ्चितः, मानसदोषाणामस्मिंस्तन्त्रे कायचिकित्सारूपे "अप्रास्ताविकत्वाद्" इति भावः।
चक्रपाणि👆🏼

अत्रायुर्वेदशास्त्रे, "रजस्तमसोर्न साकल्येन व्याकरणम्" अनिलादीनामिव। ते खल्वत्र स्वभावस्थानादिभिः प्रकारैरशेषमुक्ताः, न तु रजस्तमसी।
अरुण दत्त 👆🏼

न त्वनयोर्वातादिवद्दोषत्वम्, ततो "अनन्तरम् अनुक्ते" र्दोषविज्ञानीयादिषु चाग्रहणात्।
हेमाद्रि👆🏼

https://youtu.be/aV3t6yyrgi0?si=pWI01moeavV0TqsM

Manas & Ayurved मन व आयुर्वेद Marathi Pune 2 Sept 2018 by MhetreAyurved

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