20/05/2022
आपके पास अच्छी खासी जमीन है। उसकी मिट्टी उपजाऊ भी है। अब ये आप पर निर्भर करता है कि उसमें आप झाड़-झंखाड़ होने दें या जंगल बनाएं या बाग बनाएं। केवल जमीन होना ही या मिट्टी उपजाऊ होना ही महत्व नहीं रखता बल्कि उससे भी महत्त्वपूर्ण होता है उसका रखरखाव करना, उसे समुचित ढंग से विकसित करना। तभी उसे सुन्दर, मोहक और उत्पादक बनाया जा सकता है।
यही हाल व्यक्ति का भी होता है। ईश्वर ने आपको बुद्धि युक्त स्वस्थ शरीर के साथ जीवन दिया और आपने इसे सकारत्मक रूप से विकसित नहीं किया तो ईश्वर प्रदत्त उपहार का आपने सार्थक उपयोग नहीं किया, उसे विनष्ट कर दिया।
अब व्यक्ति ईश्वर प्रदत्त इस जीवन रूपी उपहार का सदुपयोग कैसे करे? इसके लिए उसे स्वयं को विकसित करना होता है। जिसके लिए उसे सद्गुणों के बीज अपने आचार, विचार और व्यवहार में बोने होते हैं। जिसको समय समय पर अंतःप्रेरणा से सींचना भी होता है और कालक्रम में उपजे दुर्गुण रूपी खर-पतवारों की निड़ाई-गुड़ाई भी करनी होती है। निष्ठापूर्वक आलोचनाओं के प्रति सकारत्मक भाव रखना तथा अपनी संगति के प्रति भी सचेत रहना होता है क्योंकि संग का रंग चढ़ता ही चढ़ता है। जैसी संगति होती है वैसी आपकी प्रवृत्ति होती जाती है। आत्मावलोकन द्वारा वैचारिक और व्यवहारिक पटल पर स्वयं की स्थिति देखने की क्षमता भी आवश्यक है। ऐसी क्षमता विवेक के उपयोग से विकसित होती है। स्वयं के आकलन के लिए शास्त्र अनूदित सैद्धांतिक जीवन मूल्यों के आधार पर आत्म परीक्षण करते रहना चाहिए।
अहंकार, लोभ, मद, मोह, दंभ, ईर्ष्या, कुटिलता, अनीति आदि भीतर के शत्रुओं से सतर्क रहना चाहिए। ये दुर्गुण अवनति के कारण बनते हैं।
स्मरण रहे, आपके अपने व्यक्तित्व की जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। एक सद्गुणी व्यक्तित्व अपने साथ साथ अन्यों के लिए भी लाभकारी होता है।
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शशांक