28/08/2025
The हिन्दू न्यूज़ पेपर के एडिटोरियल में आयुष प्रैक्टिशनर की निंदा की जगह ये पक्ष भी लिखना चाहिए था ...👇
■आयुर्वेद और AYUSH चिकित्सकों की भूमिका –
भारत में चिकित्सा की विविध परंपराएं रही हैं और आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध, होम्योपैथी जैसी पारंपरिक पद्धतियाँ केवल चिकित्सा नहीं बल्कि समग्र जीवन शैली और स्वास्थ्य दर्शन हैं। हालिया विवाद, जिसमें AYUSH चिकित्सकों के अधिकारों पर सवाल उठे हैं, उसी लम्बे संघर्ष का हिस्सा है जिसमें पारंपरिक चिकित्सा को #बराबरी का दर्जा दिलाने की कोशिश हो रही है।
■ भारतीय चिकित्सा की गरिमा और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
AYUSH पद्धतियाँ हज़ारों वर्षों से भारतीय समाज की सेवा करती आई हैं। आयुर्वेद, केवल बीमारियों का इलाज नहीं, बल्कि रोग-निवारण, जीवनशैली प्रबंधन, आहार-विहार और मानसिक संतुलन का शास्त्र है। इसे एलोपैथी की तरह संकीर्ण "लक्षण-आधारित उपचार" में बाँधना इसके मूल स्वरूप को छोटा करना होगा।
■ चिकित्सकीय सीमाएं या व्यवस्थागत भेदभाव?
एडिटोरियल लेख में यह चिंता जताई गई कि AYUSH चिकित्सक ‘डॉक्टर’ शब्द का उपयोग क्यों करें। लेकिन यह भुला दिया गया कि ये चिकित्सक भी गहन शैक्षणिक और क्लिनिकल प्रशिक्षण से गुजरते हैं। यदि MBBS को आधुनिक चिकित्सा की पहचान मानी जाती है, तो BAMS आयुर्वेदाचार्य को भी उसी प्रकार की मान्यता मिलनी ही चाहिए – क्योंकि उनकी समझ शरीर, मन और आत्मा की समग्र चिकित्सा पर आधारित होती है।
■ एलोपैथी बनाम आयुर्वेद – टकराव नहीं, तालमेल:
समस्या वहाँ उत्पन्न होती है जहाँ AYUSH और एलोपैथी को प्रतिद्वंद्वी बना दिया जाता है। जबकि आज की स्वास्थ्य चुनौतियाँ जैसे डायबिटीज़, तनाव, मोटापा, जीवनशैली रोग आदि, केवल दवाओं से नहीं, बल्कि आयुर्वेद जैसे समग्र चिकित्सा तंत्र से बेहतर प्रबंधित किए जा सकते हैं। यह टकराव का नहीं, इंटीग्रेशन (समन्वय) का समय है।
■ राजनीति नहीं, वैज्ञानिक विवेक:
एडिटोरियल लेख में यह दर्शाया गया कि पारंपरिक चिकित्सा को कभी-कभी “हिंदू परंपरा” से जोड़ा जाता है। लेकिन आयुर्वेद किसी धर्म विशेष का नहीं, बल्कि मानव कल्याण का शास्त्र है। इसे संप्रदायिक दृष्टिकोण से नहीं, #ग्लोबल_वेलनेस_साइंस के रूप में देखा जाना चाहिए।
■ जनस्वास्थ्य में AYUSH की भूमिका:
भारत जैसे देश में जहाँ आबादी विशाल है और संसाधन सीमित, वहाँ आयुर्वेदिक चिकित्सक प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं में बेहद प्रभावी साबित हो सकते हैं। आयुर्वेदिक औषधियाँ, पंचकर्म, क्षारसूत्र सर्जरी ,जीवनशैली सुधार और आहार पर आधारित उपचार, बिना साइड इफेक्ट्स के लाखों लोगों की सेहत सुधार सकते हैं।
■संतुलन और समन्वय ही समाधान है:
AYUSH चिकित्सकों को केवल “सीमित अनुमति” देकर नहीं, बल्कि उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में बराबरी की भूमिका देकर भारतीय चिकित्सा प्रणाली को सशक्त बनाया जा सकता है। यह वक्त टकराव का नहीं, आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा के मिलन से "इंटीग्रेटिव हेल्थकेयर मॉडल" बनाने का है, जहाँ हर पद्धति की श्रेष्ठता का उपयोग हो – रोगी के पूर्ण कल्याण के लिए।