17/09/2025
डेंगू या किसी भी वायरल फीवर में गिरती प्लेटलेट्स को लेकर ये जो बाजार में प्लेटलेट्स बढ़ाने वाले सिरप, टैबलेट्स, पपीते का अर्क और न जाने क्या-क्या बिक रहा है न, ये सब एक बड़ा झोल है। लोगों की डर और अनजानी के नाम पर बिज़नेस चल रहा है। और सबसे बड़ा मज़ाक ये है कि आम लोग मान भी लेते हैं कि ये सब पीते ही प्लेटलेट्स झर-झर गिरने के बाद अचानक आसमान छूने लगते हैं। अरे भई, शरीर कोई ATM है क्या? जहाँ प्लेटलेट सीरप या टेबलेट का कार्ड डाला और प्लेटलेट्स बाहर आने लगे?
अरे भई डेंगू में प्लेटलेट्स गिरते हैं, ये सच है। पर हर बार ये जानलेवा नहीं होता। बहुत बार शरीर खुद से रिकवर कर लेता है। असली खतरा तब होता है जब प्लेटलेट्स बहुत ज़्यादा गिरते हैं और ब्लीडिंग शुरू हो जाती है। लेकिन लोगों को डराया जाता है अब तो पपीते का रस पीना पड़ेगा नहीं तो हॉस्पिटल जाना पड़ेगा और फिर शुरू हो जाती है मुनाफे की दुकान।
अच्छे से समझ लीजिये कोई सिरप, कोई टैबलेट, कोई जूस कुछ भी ऐसा नहीं है जो clinically proven हो कि इससे प्लेटलेट्स scientifically बढ़ते हैं। पपीते का अर्क? गिलोय? कीवी? बकरी का दूध? इन सबका कोई मेडिकल आधार नहीं है । आज तक कोई बड़ी मेडिकल बॉडी न WHO, न ICMR ने इन चीज़ों को recommend किया है।
अब असली बात सुनिये डेंगू का इलाज कोई चमत्कार नहीं, बल्कि सिंपल साइंस है। और वो है hydration। जितना ज्यादा fluids लोगे, उतनी जल्दी रिकवरी होगी , नारियल पानी पी लो, ORS लो, नींबू पानी, सूप, मट्ठा, दाल का पानी जो भी मिले पीते रहो। बस बॉडी में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए, वरना हालत वहीं से बिगड़ती है।
बाक़ी डेंगू में आराम सबसे बड़ी दवा है। कोई दिमाग नहीं लगाना कि थोड़ा ठीक लग रहा है तो बाहर घूम लूं या काम पर चला जाऊं। भाई आराम करो। और अगर नाक से खून आने लगे, मसूड़ों से खून आए, पेशाब या लेटरीन में खून दिखे या शरीर पर नीले धब्बे दिखें तो तुरंत डॉक्टर के पास जाओ। घर बैठकर जादुई सिरप पीकर इलाज करने का टाइम तब नहीं होता।
लोगों को समझना चाहिए कि हर चीज़ का इलाज किसी शीशी में बंद नहीं होता। प्लेटलेट्स कोई गैस का मीटर नहीं है कि जिसको चाहो बढ़ा लो। शरीर को वक्त दो, आराम दो, सही खाना और fluids दो वो खुद से ठीक हो जाता है। और सबसे ज़रूरी डर को बेचने वालों के चक्कर में मत पड़ो। इलाज डॉक्टर करता है, ना कि दुकानदार।
पर कसम से अब लम्बे वक्त से देख रहा हूँ कि आज बहुत सारे डॉक्टर्स भी वही खतरनाक काम कर रहे हैं जिनके ऊपर लोगों को सबसे ज़्यादा भरोसा होता है । कुछ डॉक्टर खुद ही patients को बोलते हैं ये प्लेटलेट बढाने की गोली लो लो, ये सिरप ले लो, इससे प्लेटलेट्स जल्दी बढ़ेंगे। पूछो उनसे कि कौन से double-blind controlled clinical trial में ये साबित हुआ? कौन सी medical guideline में लिखा है? चुप्पी छा जाती है। क्योंकि पता है सब हवा में तीर चलाया जा रहा है, ताकि मरीज खुश हो जाए और डॉक्टर भगवान कहलाए।
बाक़ी आजकल तो दिक्कत ये है कि बहुत सारे डॉक्टर भी लोगों की उम्मीदें पूरी करने के लिए वो चीज़ें लिख देते हैं जिनका कोई scientific base नहीं होता। डर है कि अगर कुछ नहीं लिखा तो मरीज बोलेगा, डॉक्टर ने तो कुछ दिया ही नहीं, तो बस झोले में से निकाल दिया एक पपीता-सिरप। अरे भई ये इलाज नहीं, ये customer satisfaction वाली दुकानदारी है।
देखिए, इलाज का मतलब ये नहीं कि जो मरीज को अच्छा लगे वही दे दो। इलाज का मतलब है जो सही हो, वही देना।
मरीज को खुश करने के चक्कर में अगर आप उसे वो चीज़ लिख रहे हो जिसका कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है, तो आप इलाज नहीं कर रहे आप सिर्फ भरोसे का सौदा कर रहे हो। और भरोसे का सौदा, झूठ के दम पर, बहुत महंगा पड़ता है मरीज को भी और मेडिकल प्रोफेशन को भी।
समझिए जब आप एक झूठी या बिना-सबूत वाली दवा लिखते हैं, तो सिर्फ एक मरीज को गुमराह नहीं करते, बल्कि पूरे सिस्टम में भरोसे की जड़ें हिला देते हैं।