Dr.sheikh asad Qureshi

Dr.sheikh asad Qureshi Doctor
general physicians & consultant
CCH (Mumbai)
healthy life style coach �
Residency doctor

बच्चों के गले में कुछ फंस जाए तो हेइम्लीच मैन्योर ट्रिक अपनाएं👇
22/10/2025

बच्चों के गले में कुछ फंस जाए तो हेइम्लीच मैन्योर ट्रिक अपनाएं👇

मोटा होना स्वास्थ का संकेत नहीं है 👉सिर्फ़ इसलिए कि मेरा बच्चा मोटा नहीं है वह अस्वस्थ है ⭐️एक बच्चे को तब स्वस्थ माना ज...
21/10/2025

मोटा होना स्वास्थ का संकेत नहीं है

👉सिर्फ़ इसलिए कि मेरा बच्चा मोटा नहीं है वह अस्वस्थ है
⭐️एक बच्चे को तब स्वस्थ माना जाता है जब उसका वजन उसकी उम्र के हिसाब से बढ़ रहा हो और वे समय पर अपने लक्ष्य पूरे
कर रहा हो ।
⭐️हर बच्चे की शारीरिक संरचना और ग्रोथ अलग-अलग होता है और यह अधिक महत्वपूर्ण है
⭐️यह परिवार की अनुवांशिक संरचना पर भी निर्भर करता है इसलिए पतला होना बीमारी का संकेत नहीं है ।
👉याद रखना :-
एक स्वस्थ बच्चा वह है खुश,सक्रिय और अपनी उम्र के हिसाब से बढ़ रहा हो-भले ही वह मोटा न हो ।…

26/09/2025

बीपी की गोली 30 साल खाने के बाद भी उतना नुकसान नहीं होता जितना बीपी लगातार ज़्यादा रहने से होता है। बीपी कंट्रोल रखें दवा , परहेज और डाइट से।

डेंगू एक ऐसी बीमारी है जो अक्सर तीन दौर से होकर गुज़रती है। सबसे पहले बुख़ार का दौर आता है। इस समय तेज़ बुख़ार, सिर दर्द...
19/09/2025

डेंगू एक ऐसी बीमारी है जो अक्सर तीन दौर से होकर गुज़रती है। सबसे पहले बुख़ार का दौर आता है। इस समय तेज़ बुख़ार, सिर दर्द, बदन टूटना, आंखों के पीछे दर्द और कभी–कभी उल्टी–दस्त भी हो सकते हैं। यही वो समय होता है जब प्लेटलेट्स धीरे–धीरे कम होना शुरू हो जाते हैं और लोग टेस्ट कराकर घबरा जाते हैं। इसको फेबराइल फेज़ या आप लोग ऐसे समझ लीजिये ये वक्त शुरूआती बुख़ार का दौर होता जो प्रायः 1 से 3 दिन तक होता है और ज़्यादातर मरीज को यहां जान का खतरा नहीं होता।

दूसरा दौर सबसे ख़तरनाक होता है। इसको क्रिटिकल फेज़ हम मानते हैं ,ये तब शुरू होता है जब बुख़ार हल्का हो जाता है या उतर जाता है, और लोग सोचते हैं कि अब तो सब ठीक हो गया, लेकिन असली मुसीबत तो इसी वक्त शुरू होती है। हकीकत में प्लेटलेट्स इसी दौरान सबसे तेजी से गिरते हैं। ब्लड प्रेशर गिर सकता है, शरीर से plasma लीक और और खून बहने का खतरा भी यहीं होता है। इसीलिए डेंगू में 3–5 दिन की निगरानी बहुत ज़रूरी है।

तीसरा दौर रिकवरी का होता है। जो पाँचवें दिन से शुरू हो जाता है , अगर मरीज पिछले 3 से 5 दिन के क्रिटिकल फेज़ के दौर से सुरक्षित निकल जाए तो धीरे–धीरे शरीर अपने आप को संभालना शुरू कर देता है। खून में प्लाज़मा वापस आने लगता है, बॉडी के आर्गन अपना काम करने लगते हैं और प्लेटलेट्स अपने आप बढ़ने लगते हैं। यही वो वक्त है जब लोग अच्छा महसूस करने लगते हैं और समझते हैं कि अब जान का ख़तरा टल गया।

लेकिन यहीं पर सबसे बड़ी गलतफ़हमी पैदा होती है। लोग जब प्लेटलेट्स गिरते देखते हैं तो घबरा कर बकरी का कच्चा दूध, पपीते का रस या और तरह–तरह के नुस्ख़े आज़माना शुरू कर देते हैं। और जब अगले दिन प्लेटलेट्स बढ़ते हैं तो समझ लेते हैं कि ये सब उसी वजह से हुआ।

डेंगू या किसी भी वायरल फीवर में गिरती प्लेटलेट्स को लेकर  ये जो बाजार में प्लेटलेट्स बढ़ाने वाले सिरप, टैबलेट्स, पपीते क...
17/09/2025

डेंगू या किसी भी वायरल फीवर में गिरती प्लेटलेट्स को लेकर ये जो बाजार में प्लेटलेट्स बढ़ाने वाले सिरप, टैबलेट्स, पपीते का अर्क और न जाने क्या-क्या बिक रहा है न, ये सब एक बड़ा झोल है। लोगों की डर और अनजानी के नाम पर बिज़नेस चल रहा है। और सबसे बड़ा मज़ाक ये है कि आम लोग मान भी लेते हैं कि ये सब पीते ही प्लेटलेट्स झर-झर गिरने के बाद अचानक आसमान छूने लगते हैं। अरे भई, शरीर कोई ATM है क्या? जहाँ प्लेटलेट सीरप या टेबलेट का कार्ड डाला और प्लेटलेट्स बाहर आने लगे?

अरे भई डेंगू में प्लेटलेट्स गिरते हैं, ये सच है। पर हर बार ये जानलेवा नहीं होता। बहुत बार शरीर खुद से रिकवर कर लेता है। असली खतरा तब होता है जब प्लेटलेट्स बहुत ज़्यादा गिरते हैं और ब्लीडिंग शुरू हो जाती है। लेकिन लोगों को डराया जाता है अब तो पपीते का रस पीना पड़ेगा नहीं तो हॉस्पिटल जाना पड़ेगा और फिर शुरू हो जाती है मुनाफे की दुकान।

अच्छे से समझ लीजिये कोई सिरप, कोई टैबलेट, कोई जूस कुछ भी ऐसा नहीं है जो clinically proven हो कि इससे प्लेटलेट्स scientifically बढ़ते हैं। पपीते का अर्क? गिलोय? कीवी? बकरी का दूध? इन सबका कोई मेडिकल आधार नहीं है । आज तक कोई बड़ी मेडिकल बॉडी न WHO, न ICMR ने इन चीज़ों को recommend किया है।

अब असली बात सुनिये डेंगू का इलाज कोई चमत्कार नहीं, बल्कि सिंपल साइंस है। और वो है hydration। जितना ज्यादा fluids लोगे, उतनी जल्दी रिकवरी होगी , नारियल पानी पी लो, ORS लो, नींबू पानी, सूप, मट्ठा, दाल का पानी जो भी मिले पीते रहो। बस बॉडी में पानी की कमी नहीं होनी चाहिए, वरना हालत वहीं से बिगड़ती है।

बाक़ी डेंगू में आराम सबसे बड़ी दवा है। कोई दिमाग नहीं लगाना कि थोड़ा ठीक लग रहा है तो बाहर घूम लूं या काम पर चला जाऊं। भाई आराम करो। और अगर नाक से खून आने लगे, मसूड़ों से खून आए, पेशाब या लेटरीन में खून दिखे या शरीर पर नीले धब्बे दिखें तो तुरंत डॉक्टर के पास जाओ। घर बैठकर जादुई सिरप पीकर इलाज करने का टाइम तब नहीं होता।

लोगों को समझना चाहिए कि हर चीज़ का इलाज किसी शीशी में बंद नहीं होता। प्लेटलेट्स कोई गैस का मीटर नहीं है कि जिसको चाहो बढ़ा लो। शरीर को वक्त दो, आराम दो, सही खाना और fluids दो वो खुद से ठीक हो जाता है। और सबसे ज़रूरी डर को बेचने वालों के चक्कर में मत पड़ो। इलाज डॉक्टर करता है, ना कि दुकानदार।

पर कसम से अब लम्बे वक्त से देख रहा हूँ कि आज बहुत सारे डॉक्टर्स भी वही खतरनाक काम कर रहे हैं जिनके ऊपर लोगों को सबसे ज़्यादा भरोसा होता है । कुछ डॉक्टर खुद ही patients को बोलते हैं ये प्लेटलेट बढाने की गोली लो लो, ये सिरप ले लो, इससे प्लेटलेट्स जल्दी बढ़ेंगे। पूछो उनसे कि कौन से double-blind controlled clinical trial में ये साबित हुआ? कौन सी medical guideline में लिखा है? चुप्पी छा जाती है। क्योंकि पता है सब हवा में तीर चलाया जा रहा है, ताकि मरीज खुश हो जाए और डॉक्टर भगवान कहलाए।

बाक़ी आजकल तो दिक्कत ये है कि बहुत सारे डॉक्टर भी लोगों की उम्मीदें पूरी करने के लिए वो चीज़ें लिख देते हैं जिनका कोई scientific base नहीं होता। डर है कि अगर कुछ नहीं लिखा तो मरीज बोलेगा, डॉक्टर ने तो कुछ दिया ही नहीं, तो बस झोले में से निकाल दिया एक पपीता-सिरप। अरे भई ये इलाज नहीं, ये customer satisfaction वाली दुकानदारी है।

देखिए, इलाज का मतलब ये नहीं कि जो मरीज को अच्छा लगे वही दे दो। इलाज का मतलब है जो सही हो, वही देना।
मरीज को खुश करने के चक्कर में अगर आप उसे वो चीज़ लिख रहे हो जिसका कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है, तो आप इलाज नहीं कर रहे आप सिर्फ भरोसे का सौदा कर रहे हो। और भरोसे का सौदा, झूठ के दम पर, बहुत महंगा पड़ता है मरीज को भी और मेडिकल प्रोफेशन को भी।

समझिए जब आप एक झूठी या बिना-सबूत वाली दवा लिखते हैं, तो सिर्फ एक मरीज को गुमराह नहीं करते, बल्कि पूरे सिस्टम में भरोसे की जड़ें हिला देते हैं।

बरसात का मौसम आते ही नमी और पसीने की वजह से फंगल इंफेक्शन बहुत बढ़ जाते हैं। ये इंफेक्शन अक्सर बगलों, जांघों के बीच, गर्...
17/09/2025

बरसात का मौसम आते ही नमी और पसीने की वजह से फंगल इंफेक्शन बहुत बढ़ जाते हैं। ये इंफेक्शन अक्सर बगलों, जांघों के बीच, गर्दन और पैरों की उंगलियों के बीच सबसे ज़्यादा होते हैं। इसकी असल वजह है लगातार गीलापन और हवा का कम लगना।

बचाव के लिए सबसे ज़रूरी है कि शरीर को हमेशा साफ़ और सूखा रखें। नहाने के बाद तौलिये से अच्छे से पोछें, खासकर उन जगहों पर जहाँ पसीना ज़्यादा आता है। कोशिश करें कि आप कॉटन के ढीले कपड़े पहनें और गीले कपड़ों को तुरंत बदलें। मोज़े और जूते भी रोज़ाना बदलना ज़रूरी है।

अब बात करते हैं ट्रीटमेंट की। अगर हल्की खुजली या लाल दाने नज़र आएं तो शुरू से ही एंटी-फंगल पाउडर या क्रीम (जैसे क्लोट्रिमाज़ोल, माइकोनाज़ोल, टर्बिनाफ़ीन) का इस्तेमाल किया जा सकता है। दिन में दो बार साफ़ और सूखी जगह पर दवा लगानी चाहिए। ध्यान रहे, स्टेरॉयड वाली क्रीम (जैसे बेटनोवेट या क्वाड्रिडर्म) खुद से कभी भी न लगाएँ, वरना इंफेक्शन और फैल सकता है।

अगर दाने बढ़ रहे हों, खुजली बहुत ज़्यादा हो, या बार-बार इंफेक्शन लौटकर आए तो ज़रूरी है कि आप डर्मेटोलॉजिस्ट से मिलें। ऐसे मामलों में डॉक्टर ज़रूरत के हिसाब से ओरल एंटी-फंगल दवाइयाँ भी दे सकते हैं, जैसे टर्बिनाफ़ीन या इट्राकोनाज़ोल, जो केवल मेडिकल सुपरविज़न में ली जानी चाहिए।

और आख़िर में याद रखिए , फंगल इंफेक्शन से बचने का सबसे असरदार मंत्र है कि साफ़-सुथरे रहो, सूखे रहो, और डॉक्टर की बताई दवा समय पर लो।

स्कूली बच्चों में तेज़ी से फैल रही HFMD Infection, Parents ध्यान दें, बचाव कैसे करना?  पूरी जानकारी पढ़ें👇👇👇👇👇
16/09/2025

स्कूली बच्चों में तेज़ी से फैल रही HFMD Infection, Parents ध्यान दें, बचाव कैसे करना? पूरी जानकारी पढ़ें👇👇👇👇👇

दोस्तों, बहुत से लोग शरीर पर बनने वाली मुलायम सी गाँठ देखकर घबरा जाते हैं और सोचते हैं कि कहीं ये कैंसर तो नहीं। असलियत ...
13/09/2025

दोस्तों, बहुत से लोग शरीर पर बनने वाली मुलायम सी गाँठ देखकर घबरा जाते हैं और सोचते हैं कि कहीं ये कैंसर तो नहीं। असलियत ये है कि ऐसी ज़्यादातर गांठें लिपोमा होती हैं और लिपोमा कैंसर नहीं होता।

ये दरअसल शरीर की चर्बी (fat) का छोटा सा गुच्छा है, जो धीरे-धीरे बढ़ता है। इसे दबाओ तो हल्का-सा खिसकता है और आमतौर पर दर्द नहीं करता। बहुत बार लोग इसे मोटापे या ज्यादा तेल-घी खाने से जोड़ते हैं, लेकिन सच ये है कि लिपोमा का कारण खराब खानपान नहीं बल्कि ज्यादातर family history और cells की growth होती है।

अब सवाल आता है कि आख़िर इसका इलाज क्या है?

तो समझ लीजिये अगर ये छोटा है और कोई तकलीफ़ नहीं दे रहा तो इसे ऐसे ही छोड़ सकते हैं। लेकिन अगर बड़ा हो जाए, दबाव बनाए या देखने में खराब लगे तो छोटी-सी surgery करके इसे निकाला जा सकता है। आजकल आसान तरीक़े जैसे liposuction या minor cut से भी इसे हटाया जा सकता है।

ध्यान रहे कोई भी दवा, तेल या घरेलू नुस्खा लिपोमा को खत्म नहीं कर सकता।

और prevention की बात करें तो इसे पूरी तरह रोकना मुश्किल है क्योंकि ये genetic भी हो सकता है। हाँ, हेल्दी lifestyle और balanced diet रखने से शरीर की चर्बी का सिस्टम सही चलता है और नए लिपोमा बनने का risk कम हो सकता है।

बाक़ी बस इतना याद रखिए लिपोमा जानलेवा नहीं है, दवा से नहीं मिटता, और अगर परेशानी दे तो surgery ही इसका सही इलाज है। 🙂

एटा समेत दिल्ली और यूपी के कई जिलों में हैंड-फुट-माउथ सिंड्रोम (HFMS) वायरस तेजी से फैल रहा है। 50 से ज्यादा बच्चे अब तक...
13/09/2025

एटा समेत दिल्ली और यूपी के कई जिलों में हैंड-फुट-माउथ सिंड्रोम (HFMS) वायरस तेजी से फैल रहा है। 50 से ज्यादा बच्चे अब तक संक्रमित पाए गए हैं। यह वायरस खासतौर पर 10 साल तक के बच्चों को प्रभावित करता है।

⚠️ लक्षण:

बुखार और गले में खराश

हाथ, पैर और मुंह में लाल छाले या दाने

थकान और चिड़चिड़ापन

👩‍⚕️ बचाव के उपाय:

संक्रमित बच्चों को दूसरों से अलग रखें
बार-बार हाथ धोने की आदत डालें
बच्चों के खिलौने और सामान को साफ रखें

डॉक्टर की सलाह जरूर लें

👉 समय पर पहचान और सावधानी से बच्चों को इस वायरस से बचाया जा सकता है।

प्लेसेंटा (Placenta) गर्भावस्था के दौरान माँ और बच्चे के बीच एक life-line की तरह काम करता है। यह बच्चे को कई तरह से prot...
12/09/2025

प्लेसेंटा (Placenta) गर्भावस्था के दौरान माँ और बच्चे के बीच एक life-line की तरह काम करता है। यह बच्चे को कई तरह से protect (सुरक्षित) करता है:

1. पोषण और ऑक्सीजन देना
• माँ के खून से ऑक्सीजन और ज़रूरी पोषक तत्व (ग्लूकोज़, अमीनो एसिड, विटामिन, मिनरल) प्लेसेंटा के ज़रिए बच्चे तक पहुँचते हैं।
• इससे बच्चा बढ़ता और विकसित होता है।

2. कचरे को बाहर निकालना
• बच्चे के शरीर में बनने वाला कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य अपशिष्ट प्लेसेंटा माँ के खून में भेज देता है, ताकि वे उसके शरीर से बाहर निकल जाएँ।

3. संक्रमण से सुरक्षा
• प्लेसेंटा एक बैरियर (ढाल) की तरह काम करता है।
• यह कई बैक्टीरिया और हानिकारक तत्वों को बच्चे तक पहुँचने से रोकता है (हालाँकि कुछ वायरस और दवाइयाँ पार कर सकती हैं)।

4. हार्मोन बनाना
• प्लेसेंटा कई ज़रूरी हार्मोन (जैसे hCG, प्रोजेस्टेरोन, एस्ट्रोजन) बनाता है, जो गर्भावस्था को बनाए रखने और बच्चे की सुरक्षा में मदद करते हैं।

5. इम्यून प्रोटेक्शन
• माँ की कुछ एंटीबॉडीज़ (IgG) प्लेसेंटा के ज़रिए बच्चे तक पहुँचती हैं।
• इससे बच्चे को जन्म के बाद शुरुआती महीनों तक बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है।



👉 आसान भाषा में कहें तो:
प्लेसेंटा बच्चे को खाना, ऑक्सीजन, बीमारी से सुरक्षा और माँ से जुड़ाव सब कुछ देता है। यह एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच है।


उल्टी या Vomiting सिर्फ एक लक्षण है, लेकिन उसका रंग और शक्ल हमें यह अंदाज़ा लगाने में मदद करता है कि शरीर के अंदर क्या ग...
10/09/2025

उल्टी या Vomiting सिर्फ एक लक्षण है, लेकिन उसका रंग और शक्ल हमें यह अंदाज़ा लगाने में मदद करता है कि शरीर के अंदर क्या गड़बड़ हो रही है। हर बार ये पक्का कारण नहीं बताता, लेकिन एक बड़ा संकेत ज़रूर देता है।

सबसे पहले, अगर उल्टी पानी जैसी साफ़ हो, तो यह अक्सर वायरल बुखार, फूड पॉइज़निंग या पेट की हल्की गड़बड़ी की वजह से होती है। यह आमतौर पर ज़्यादा ख़तरनाक नहीं होती और आराम से ठीक हो जाती है।

अगर उल्टी का रंग पीला या हरा है, तो इसका मतलब है कि पेट से पित्त (bile) बाहर आ रहा है। यह तब होता है जब आंतों में रुकावट हो या पित्त का रास्ता उल्टा हो जाए। हायपर ऐसिडिटी में कई बार ये देखने को मिलता है लेकिन अगर बार-बार हरी उल्टी बो रही है तो फिर ये किसी रुकावट का भी संकेत हो सकता है, जिस पर डॉक्टर को ज़रूर दिखाना चाहिए।

अगर उल्टी का रंग काले-भूरे दानेदार (coffee ground जैसा) है, तो यह बहुत अहम है। इसका मतलब पेट या आंत के ऊपरी हिस्से से पुराना खून निकल रहा है। यह पेट के अल्सर या गैस्ट्रिक ब्लीडिंग की वजह से हो सकता है और तुरंत इलाज चाहिए।

अगर उल्टी में ताज़ा लाल खून दिखे तो यह और भी गंभीर है। ऐसा पेट या खाने की नली में अल्सर, फटने या लीवर की बीमारी से नसें फटने पर होता है। इस हालत में मरीज को तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए।

कभी-कभी उल्टी का रंग गहरा भूरा और बदबूदार, जैसा पॉटी का हो तो यह आंतों में रुकावट का बहुत खतरनाक संकेत है। इसमें पेशेंट को सर्जरी की ज़रूरत पड़ सकती है।

और अगर उल्टी अचानक तेज़ फव्वारे जैसी निकले (projectile vomiting), तो बच्चों में यह पेट की नली संकरी होने (pyloric stenosis) की वजह से हो सकता है और बड़ों में दिमाग़ में प्रेशर बढ़ने की वजह से होता है ।

तो कुल मिलाकर सार ये है कि मोटा मोटा उल्टी के रंग से ही हम बीमारी की सीवियरटी का अंदाज़ा लगा सकते हैं , इसलिये इस पोस्ट को सेव करके रख लीजिये , ताकि भविष्य में अगर किसी को परेशानी आये तो आप मोटा मोटा अंदाज़ा कर सकें और जान सकें किस तरह की उल्टी अलार्मिंग साइन है और किसमें ज़्यादा घबराने की ज़रूरत नहीं है।


बहुत से बच्चे 6–7 साल की उम्र तक भी रात में बिस्तर गीला कर देते हैं। माता-पिता अक्सर इसे आलस या ज़िद समझकर डाँटते हैं, ल...
10/09/2025

बहुत से बच्चे 6–7 साल की उम्र तक भी रात में बिस्तर गीला कर देते हैं। माता-पिता अक्सर इसे आलस या ज़िद समझकर डाँटते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि यह बच्चे की गलती नहीं, बल्कि एक मेडिकल समस्या है जिसे Bedwetting या Nocturnal Enuresis कहा जाता है। यह तब होता है जब बच्चे का मूत्राशय पूरी तरह मज़बूत नहीं बन पाता, रात को ADH hormone कम बनता है जिससे पेशाब ज़्यादा बनने लगता है, या बच्चा इतनी गहरी नींद में होता है कि bladder का सिग्नल पकड़ ही नहीं पाता। कई बार तनाव या पारिवारिक इतिहास भी कारण हो सकता है।

इसका सबसे बड़ा इलाज lifestyle में बदलाव है। जैसे – सोने से एक से 2 घंटे पहले ज़्यादा पानी या दूध न देना, बच्चे को टॉयलेट कराकर ही बिस्तर पर भेजना, कब्ज़ से बचाना, दिन में हर 2–3 घंटे टॉयलेट जाने की आदत डालना और सबसे ज़रूरी है बच्चे को डाँटना नहीं है , बल्कि मोटिवेट करना है । आजकल bedwetting alarm जैसी छोटी मशीनें भी आती हैं जो काफी असरदार साबित होती हैं।

कभी-कभी कुछ बच्चों को दवाइयों की भी ज़रूरत पड़ती है जैसे Desmopressin या Oxybutynin,
इसके अलावा कभी कभी Solifenacin भी सजेस्ट की जाती है लेकिन इन्हें सिर्फ़ specialist डॉक्टर की देखरेख में ही दिया जाना चाहिए।

माता-पिता को समझना चाहिए कि यह स्थिति शर्मिंदा होने या बच्चे को दोष देने की नहीं है। ज़्यादातर बच्चे बड़े होते-होते अपने आप ठीक हो जाते हैं। असली दवा है , आपका धैर्य, प्यार और सही मार्गदर्शन।

अगर आपके परिवार या रिश्तेदारी में किसी बच्चे को यह समस्या है तो माता-पिता को समझाइए और यह जानकारी ज़रूर शेयर कीजिए। बच्चों का मन तोड़ने से नहीं, बल्कि समझने से वो जल्दी ठीक होते हैं।

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