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✡️ ।। ॐ ह्रौं जुं सः ॐ त्रयंबकाय नाम: ।। श्री सोमनाथ महादेव मंदिर,प्रथम ज्योतिर्लिंग - गुजरात (सौराष्ट्र)दिनांकः 14 जुला...
14/07/2022

✡️ ।। ॐ ह्रौं जुं सः ॐ त्रयंबकाय नाम: ।।

श्री सोमनाथ महादेव मंदिर,
प्रथम ज्योतिर्लिंग - गुजरात (सौराष्ट्र)
दिनांकः 14 जुलाई 2022, आषाढ कृष्ण प्रतिपदा - गुरूवार
प्रातः श्रृंगार

हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को लक्ष्मी जयंती  का पावन पर्व मनाया जाता है। लक्ष्मी जयंती...
18/03/2022

हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा को लक्ष्मी जयंती का पावन पर्व मनाया जाता है। लक्ष्मी जयंती के दिन फाल्गुन पूर्णिमा होने के कारण उत्तरा फाल्गुन नक्षत्र होता है, खासकर ये तिथि दक्षिण भारत में मनाई जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। धार्मिक ग्रंथों की मानें तो राक्षस और देवताओं के बीच समुद्र मंथन से मां लक्ष्मी अवतरित हुई थी। इस दिन विधि विधान से धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद अपने भक्तों पर सदैव बना रहता है। तथा आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और धन प्राप्ति के मार्ग में वृद्धि होती है।

Lakshmi Jayanti is the birth anniversary of Goddess Lakshmi. Goddess Lakshmi is the goddess of wealth and prosperity. It is believed that Goddess Lakshmi was born on Phalguna Purnima during the great churning of milky ocean which is popularly known as Samudra Manthan.

It is significant to note that day of Phalguna Purnima mostly coincides with Uttara Phalguni Nakshatra. Hence the day of Uttara Phalguni is also associated with Lakshmi Jayanti.
Lakshmi Jayanti is observed mainly in SOUTH INDIA and it is less known in North Indian states.

WISHING YOU AND YOUR FAMILY VERY AUSPICIOUS LAKSHMI JAYANTI AND HAPPY COLOURFUL HOLI!
🌼🌈💕

04/02/2022

✡️ "सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्हासं जगत्सन्निवासं शतादित्यभासम् |
गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीत - वस्त्रं हसच्चारु - वक्रं भजेहं भजेहं ||

~`जय कन्हैया लाल की। हाथी घोड़ा पालकी।। ✨
30/08/2021

~`जय कन्हैया लाल की। हाथी घोड़ा पालकी।। ✨

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15/06/2021

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🔯 मधुराष्टकं ❤️अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥वचनं मधुरं...
11/05/2021

🔯 मधुराष्टकं ❤️
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं ।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥

वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥

वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरः पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥

गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥

करणं मधुरं तरणं मधुरं हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥

गुञ्जा मधुरा माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥

गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥

गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥

🔯 ॐ उग्रवीरं महा विष्णुं  ज्वलन्तं सर्वतो मुखम्।      नृसिंह भीषणं भद्रं  मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥"हिरण्यकश्यप मदिरा पान...
29/03/2021

🔯 ॐ उग्रवीरं महा विष्णुं ज्वलन्तं सर्वतो मुखम्।
नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्॥"

हिरण्यकश्यप मदिरा पान में तन्मय हो सम्पूर्ण सृष्टि को अपनी क्रूरता से प्रताड़ित करने लगा,नर नारी, नाग, किन्नर, गंधर्व और स्वयं इन्द्र आदि देवतागण भी उससे भयभीत रहने लगे| इधर भक्त प्रह्लाद गुरुकुल में श्री हरि का नाम निरंतर जपते रहे ! अपने राक्षस सखाओ को भी श्री हरि विष्णु के नाम संकीर्तन महत्व समझाया और जिससे प्रभावित हो उनके सभी सखा और गुरुजनों को भी श्री हरि विष्णु के श्री चरणों में अनुराग हो गया ! जिसे आत्मज्ञान हो जाता है, उसे शरीर नहीं दिखता, केवल परमात्मा ही दिखते हैं ! यह सुन हिरण्यकश्यप की आँखे क्रोध से लाल लाल हो गयी ! उसकी भृकुटी तन गयी और उसनें प्रह्लाद से कहा- अरे मुर्ख !! और कहाँ-कहाँ दिखता है तुझे तेरा परमात्मा ? प्रह्लााद ने कहा- प्रत्येक वस्तु में आकाश में, धरती में, वायु में, आप में, मुझ में, सारे संतो में, और इन दैत्य सैनिको में भी आप विश्वास कीजिये पिताश्री वे सृष्टीके कण-कण में विद्यमान हैं | हिरण्यकश्यप ने कहा- यहाँ के हर वस्तु में भी ,प्रह्लाद ने हाथ जोड़ कर कहा- जी पिताश्री ! हिरण्यकश्यप ने पुनः कहा : इस महल में भी ? प्रह्लाद ने कहा - जी पिताश्री !! मैं तो उन्हें इस महल की हर वस्तु में देख रहा हूँ ! हिरण्यकश्यप ने पुनः कहा- तो इस अग्नि से दहकते हुए खम्बे में भी दिखता है,तुझे तेरा परमात्मा...? प्रह्लाद ने कहा- जी पिताश्री ,वे उस खम्बे में भी हैं ! हिरण्यकश्यप ने पुनः कहा- अरे मूढ़ !! यदि वो इस अग्नि से दहकते हुए खम्बे में भी अगर तेरा वो विष्णु है तो जा आलिंगन कर उसका !! यह सुन प्रह्लाद उस दहकते हुए खम्बे की ओर श्री हरि विष्णु नारायण का ध्यान करते हुए बढे | अपने प्रिय भक्त का अटूट विश्वास और हिरण्यकश्यप के पाप का घड़ा भरा हुआ देख स्वयं भगवान "श्री हरि विष्णु नारायण- श्रीनृसिंहजी" के रूप में सिंह की सी गर्जना करते हुए उस खम्बे को फाड़कर प्रकट हुए !भगवान श्री हरि विष्णु नारायण का वो रौद्र रूप बहुत ही भयंकर था ! उनका मुख सिंह का था उनका शरीर मनुष्य का था हाथों में सिंह के से बड़े बड़े नाख़ून थे श्री भगवान का वह रूप देख वहां उपस्थित सभी लोग डरने लगे यहा तक स्वयं प्रह्लाद भी एक क्षण के लिए डर गए !
हिरण्यकश्यप ने श्री भगवान का यह रूप देखा तो वो भी डर से कांपने लगा ! फिर हिरण्यकश्यप कुछ संभलकर भगवान नृसिंहजी पर प्रहार करने लगा परन्तु भगवान के प्रहार का वेग वो सहन न कर सका और कुछ ही समय में थक गया और श्री हरि विष्णु नारायण जिन्होंने नृसिंह देवजी के रूप में अवतार लिया था वे उसी क्रोधित मुद्रा में सिंह की सी गर्जना करते हुए हिरण्यकश्यप के समीप गए और उसे अपने नाखून वाले हाथो से पकड़ के बीच सभा में घसीटते हुए उस सभा के द्वार की देहली पर ले गए और हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में उठा कर लिटा लिया श्री भगवान का ये रूप देख हिरण्यकश्यप के मुख से एक भी स्वर नहीं निकला और फिर भगवान नृसिंह देव यह देख उससे इस प्रकार कहने लगे -
हे असुरवंशी हिरण्यकश्यप ! तुझे ब्रह्मा जी का वरदान था की तू किसी ब्रह्मा की सृष्टि से नहीं मरेगा तो देख मैं स्वयं ब्रह्मा की सृष्टि में नहीं हूँ..न मैं नर हूँ न पशु.न देवता न दैत्य हूं !
इस समय न दिन हैं न रात्रि हैं.इस समय सायंकाल हैं.तुझे न अस्त्र से मारा जा रहा है न शस्त्र से... तुझे स्वयं मैं अपने इन नाखूनों से मारूंगा.तू न धरती में है न आकाश में.देख तू मेरी गोद में हैं. तू उन बारह महीनो ,में भी नहीं मारा जा रहा,

केवल तेरे लिए ही मैंने इस अधिक {पुरषोतम} मास की रचना की हैं...
न तू अन्दर हैं न बाहर.तुझे मैं घर की द्वार की देहली पर मार रहा हूँ !ऐसा कह श्री हरि नृसिंहजी सिंह की सी तेज गर्जना करते हुए... अपने नुकीले लंबे लंबे नाखूनों से हिरण्यकश्यप का पेट फाड़ देते हैं.और हिरण्यकश्यप का वध कर पाप का अंत कर देते हैं !भगवान नृसिंह जी हिरण्यकश्यप के शव को दूर फेंक खड़े हो...

जोर जोर से सिंह के समान गर्जना करने लगते हैं !यह दृश्य देख प्रह्लाद के आँखों से अश्रु धाराएं बहने लगती हैं और वे अपने हाथो में श्रीनृसिंहजी के लिए फूलो की माला लिए श्री हरि विष्णु का ध्यान करने लगते हैं.!
वहां पर उपस्थि समस्त असुर, दैत्य सैनिक अदि नतमस्तक हो भगवान नृसिंहजी से हाथ जोड़ क्षमा प्रार्थना करने लगते हैं ! तत्पश्चात उस सभा में भगवान शिव, भगवान ब्रह्मा , इन्द्र आदि देवतागण प्रकट हो, भगवान श्री नृसिंह देवजी की करबद्ध स्तुति करने लगे ! भगवान श्री नृसिंहजी का रौद्र रूप किसी प्रकार से शांत होता न देख.तत्क्षण श्री प्रह्लाद अपने अश्रु पूर्ण नेत्रो के साथ अपने आराध्य देव श्री नृसिंहजी की स्तुति व प्रार्थना करते हैं ! श्री प्रह्लाद हाथ जोड़ इस प्रकार श्री हरि नृसिंहदेवजी की स्तुति करते है |
नृसिंह रूप हरे... प्रभु नृसिंह रूप हरे शांत शांत जग्वर, कृपा करो परमेश्वर...
श्री प्रह्लाद को श्री हरि नृसिंह नारायण अपनी गोद में बैठा लेते हैं, और श्री हरि नृसिंहजी अपने हाथो से, श्री प्रह्लाद के बालो को संवारते हैं... और अपनी जीभ से उनको चाटने लगते हैं...
ऐसे श्री नृसिंह भगवान की सदा ही जय हो।

नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्।। 🔱
29/03/2021

नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्युं नमाम्यहम्।। 🔱

This Narasimha Kavacha Stotra is recited by Sri Prahlada Maharaja. It is most pious, vanquishes all kinds of impediments, and provides one all protection. ...

सिंह लग्न की संक्षिप्त और सारगर्भित विवेचना:आकाश के 120 डिग्री से 150 डिग्री तक के भाग को सिंह राशि के नाम से जाना जाता ...
06/12/2020

सिंह लग्न की संक्षिप्त और सारगर्भित विवेचना:

आकाश के 120 डिग्री से 150 डिग्री तक के भाग को सिंह राशि के नाम से जाना जाता है. जिस जातक के जन्‍म समय में यह भाग आकाश के पूर्वी क्षितिज में उदित होता है , उस बालक का लग्‍न सिंह माना जाता है. सिंह लग्‍न की कुंडली में मन का स्‍वामी चंद्रमा द्वादश भाव का स्‍वामी होता है जो कि जातक के निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्‍मकुंडली या दशाकाल में चंद्रमा के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

समस्‍त जगत में चमक बिखेरने वाला सूर्य प्रथम भाव का स्‍वामी होकर लग्नेश बनता है. यह जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकॄति और संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधि होता है. जन्‍मकुंडली या दशाकाल में सूर्य के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

मंगल चतुर्थ और नवम भाव का स्‍वामी होकर सिंह लग्न के जातकों के लिये यह अतीव शुभ फ़लदायक ग्रह होता है. चतुर्थेश होने के कारण यह माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है जबकि नवमेश होने के कारण यह जातक के धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल इत्यादि विषयों का दायित्व निभाता है. मंगल बलवान और शुभ प्रभाव वाला हो तो वर्णित विषयों
अत्यंत शुभ और प्रचुर फ़ल मिलते हैं जबकि कमजोर और अशुभ प्रभाव वाला मंगल शुभ फ़ल देने में असमर्थ होता है परंतु अशुभ फ़ल सिंह लग्न मे अति अल्प मात्रा में ही देता है. .

शुक्र तृतीय और दशम भाव का स्‍वामी होता है. तॄतीयेश होने के कारण यह जातक के नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है एवम दशमेश होने कारण राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति का प्रतिनिधि होता है. जन्‍मकुंडली या दशाकाल में शुक्र के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

बुध एकादश भाव का स्‍वामी होकर जातक के लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्‍मकुंडली या दशाकाल में बुध के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

बृहस्‍पति पंचम भाव का स्‍वामी हो कर जातक के बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्‍व करता है. जन्‍मकुंडली या दशाकाल में वॄहस्पति के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

शनि षष्‍ठ और सप्‍तम भाव का स्‍वामी होता है. षष्ठेश होने के कारण यह रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन जैसे विषयों एवम सप्तमेश होने के कारण यह लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्‍मकुंडली या दशाकाल में शनि के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

राहु द्वितीय भाव का अधिपति होकर जातक के कुल, आंख (दाहिनी), नाक, गला, कान, स्वर, हीरे मोती, रत्न आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. जन्‍मकुंडली या दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

केतु अष्टम भाव का अधिपति होकर जातक के व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है. जन्‍मकुंडली या दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं.

🔯 "जय श्री नमश्चंडिकाय माँ गायत्री"      "जय श्री राम शर्मा आचार्य"
29/10/2020

🔯 "जय श्री नमश्चंडिकाय माँ गायत्री"
"जय श्री राम शर्मा आचार्य"

✡️ " श्रद्धांजलि " 🙏बाधाएं आती हैं आएंघिरें प्रलय की घोर घटाएं,पावों के नीचे अंगारे,सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,निज हाथों ...
16/08/2020

✡️ " श्रद्धांजलि " 🙏

बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा.
कदम मिलाकर चलना होगा.
कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा.
क़दम मिलाकर चलना होगा_!

✡️जग की सब पहेलियों का देके कैसा हल गए,लोक के जो प्रश्न थे वो शोक में बदल गए,सिद्ध कुछ हुए ना दोष, दोष सारे टल गए,सीता आ...
05/08/2020

✡️
जग की सब पहेलियों का देके कैसा हल गए,
लोक के जो प्रश्न थे वो शोक में बदल गए,
सिद्ध कुछ हुए ना दोष, दोष सारे टल गए,
सीता आग में ना जली, राम जल में जल गए।
सारा जग है प्रेरणा, प्रभाव सिर्फ राम हैं,
भाव सूचियां हैं बहुत, भाव सिर्फ राम हैं।

जय जय श्रीराम ❤️🙏

जय राम सीता राम.. जय जय राम..
जय जय विघ्नहरण.. हनुमान..!!

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