Kridha Ability Development Centre

Kridha Ability Development Centre We are providing Speech therapy, physiotherapy, occupational therapy, special education, music Therap

“आओ मिलकर दीप जलाएँ, अंधकार को दूर भगाएँ। इस दीपावली पर हम सबके जीवन में ज्ञान, प्रेम और सद्भावना का प्रकाश फैले। आप सभी...
20/10/2025

“आओ मिलकर दीप जलाएँ, अंधकार को दूर भगाएँ। इस दीपावली पर हम सबके जीवन में ज्ञान, प्रेम और सद्भावना का प्रकाश फैले। आप सभी को आरोग्य, समृद्धि और खुशियों से भरी शुभ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ! 💫🎉🌟🔥💖

आप सभी को धनतरेस की हार्दिक शुभकामनाएं।।।।
18/10/2025

आप सभी को धनतरेस की हार्दिक शुभकामनाएं।।।।

🎈 ऑटिज़्म में बॉल पूल का महत्त्व1. 🧠 सेंसरी इंटीग्रेशन (Sensory Integration) में मददऑटिज़्म वाले बच्चों को अक्सर सेंसरी ...
17/10/2025

🎈 ऑटिज़्म में बॉल पूल का महत्त्व

1. 🧠 सेंसरी इंटीग्रेशन (Sensory Integration) में मदद

ऑटिज़्म वाले बच्चों को अक्सर सेंसरी प्रोसेसिंग में कठिनाई होती है — जैसे ज़्यादा या कम स्पर्श-संवेदनशील होना।

बॉल पूल में खेलने से बच्चों को स्पर्श (Touch) और प्रोप्रियोसेप्टिव (Body Awareness) इनपुट मिलता है।

यह दिमाग को संवेदनाओं को सही ढंग से समझने में मदद करता है, जिससे बच्चा शांत और संतुलित महसूस करता है।

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2. 🤸‍♀️ बॉडी अवेयरनेस और मोटर स्किल्स में सुधार

बॉल पूल में रेंगना, कूदना या गोता लगाना बच्चे को अपने शरीर की स्थिति समझने में मदद करता है।

इससे उनके ग्रॉस मोटर स्किल्स (जैसे कूदना, दौड़ना, संतुलन बनाना) और कोऑर्डिनेशन बेहतर होता है।

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3. 💪 मांसपेशियों की मज़बूती और बैलेंस

बॉल के अंदर चलने या खेलने में शरीर को हल्का प्रतिरोध मिलता है, जिससे मांसपेशियाँ मज़बूत होती हैं।

इससे बच्चे का बैलेंस और पोस्टर भी सुधरता है।

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4. 💖 दीप प्रेशर से शांति और आराम

बॉल पूल में शरीर के चारों ओर से मिलने वाला हल्का दबाव (Deep Pressure) बच्चों को सुकून और सुरक्षा का अहसास कराता है।

इससे हाइपरएक्टिविटी, चिंता और मेल्टडाउन कम होते हैं।

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5. 🗣️ सामाजिक और संप्रेषण कौशल का विकास

बॉल पूल में एक साथ खेलना बच्चों को टर्न लेना, साझा करना, नकल करना और संवाद करना सिखाता है।

यह स्पीच और सोशल स्किल्स बढ़ाने का एक मज़ेदार तरीका है।

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6. 🎯 ध्यान और एकाग्रता में सुधार

जब बच्चा सेंसरी रूप से शांत होता है तो वह क्लास या थेरेपी में बेहतर ध्यान लगा पाता है।

बॉल पूल सेंसरी ब्रेक के रूप में बहुत उपयोगी है।

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7. 🌈 मज़ेदार और प्रेरणादायक गतिविधि

बच्चे बॉल पूल में खेलना बहुत पसंद करते हैं। यह उन्हें थेरेपी में भाग लेने के लिए प्रेरित करता है और सीखने को आसान बनाता है।

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💡 संक्षेप में

> बॉल पूल केवल खेलने की जगह नहीं है, बल्कि यह एक थेरेप्यूटिक टूल है जो बच्चों के सेंसरी, मोटर, भावनात्मक और सामाजिक विकास में मदद करता है।

विशेष शिक्षक का क्या महत्व है?एक स्पेशल एजुकेटर (Special Educator) वह शिक्षक होता है जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चों — जैस...
16/10/2025

विशेष शिक्षक का क्या महत्व है?
एक स्पेशल एजुकेटर (Special Educator) वह शिक्षक होता है जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चों — जैसे ऑटिज़्म (Autism), सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy), इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी (Intellectual Disability), लर्निंग डिसऑर्डर, हियरिंग इम्पेयरमेंट आदि — के लिए विशेष तरीके से शिक्षण और प्रशिक्षण देता है।

स्पेशल एजुकेटर का काम केवल पढ़ाना नहीं होता, बल्कि बच्चे के समग्र विकास (holistic development) में सहयोग करना होता है।

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🌈 1. व्यक्तिगत शिक्षण योजना (Individualized Education Plan – IEP) तैयार करना

हर बच्चे की जरूरत अलग होती है।

स्पेशल एजुकेटर बच्चे की क्षमता, कमजोरी, रुचि और व्यवहार को समझकर उसके लिए एक व्यक्तिगत शिक्षण योजना बनाते हैं।

इससे बच्चे को उसी स्तर पर सिखाया जाता है जिस पर वह सीखने में सहज महसूस करे।

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🧠 2. सीखने की क्षमता बढ़ाना (Enhancing Learning Ability)

स्पेशल एजुकेटर बच्चे को visual aids (चित्र), tactile activities (स्पर्श आधारित गतिविधियाँ), games, flashcards, multisensory methods के माध्यम से सिखाते हैं।

इससे बच्चा आसानी से समझता और याद रखता है।

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🗣️ 3. संचार कौशल (Communication Skills) विकसित करना

जो बच्चे बोल नहीं पाते या कम बोलते हैं, उन्हें alternative communication methods (जैसे gestures, picture exchange communication system – PECS, sign language) सिखाए जाते हैं।

इससे बच्चा अपनी जरूरतें और भावनाएँ व्यक्त करना सीखता है।

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🧍‍♂️ 4. व्यवहार प्रबंधन (Behaviour Management)

कई बार स्पेशल बच्चों में aggressive behaviour, poor attention, self-hitting, tantrums आदि देखे जाते हैं।

स्पेशल एजुकेटर positive reinforcement techniques और behaviour modification plans से इन व्यवहारों को सुधारने में मदद करते हैं।

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👩‍👧 5. सामाजिक और आत्मनिर्भरता कौशल (Social & Daily Living Skills)

बच्चे को सहयोग करना, अपनी बारी का इंतजार करना, दूसरों से बातचीत करना, खुद कपड़े पहनना, खाना खाना जैसी चीज़ें सिखाई जाती हैं।

इससे बच्चा धीरे-धीरे independent (स्वावलंबी) बनता है।

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🧩 6. परिवार को मार्गदर्शन देना (Parental Guidance)

स्पेशल एजुकेटर केवल बच्चे के साथ नहीं, बल्कि माता-पिता को भी सिखाते हैं कि घर पर बच्चे के साथ कैसे काम करें।

इससे होम प्रैक्टिस बेहतर होती है और बच्चे की प्रगति तेज़ होती है।

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🎯 7. समाज में समावेशन (Inclusive Education & Integration)

स्पेशल एजुकेटर बच्चों को इस तरह तैयार करते हैं कि वे सामान्य बच्चों के साथ स्कूल और समाज में सहजता से घुल-मिल सकें।

यह inclusive education की दिशा में एक बड़ा कदम है।

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🪄 निष्कर्ष (Conclusion):

> “स्पेशल एजुकेटर एक बच्चे के जीवन में वही भूमिका निभाता है जो एक दीपक अँधेरे में निभाता है।”

स्पेशल एजुकेटर बच्चे की सीखने, समझने, बोलने, व्यवहार और आत्मनिर्भरता की यात्रा में मार्गदर्शक बनता है। उसकी मदद से बच्चा अपने अंदर के संभावनाओं को पहचानकर एक सम्मानजनक जीवन जीना सीखता है।

15/10/2025

ऑटिज़्म में "पोशम्पा" खेल का समूह में महत्व

"पोशम्पा भई पोशम्पा" एक पारंपरिक भारतीय खेल है जो बच्चों में सामाजिक, भाषा और शारीरिक विकास को बढ़ावा देता है। यह खेल विशेष रूप से ऑटिज़्म (Autism) वाले बच्चों के लिए बहुत उपयोगी होता है जब इसे ग्रुप एक्टिविटी (Group Activity) के रूप में कराया जाता है।

नीचे इसके प्रमुख लाभ दिए गए हैं
🌈 1. सामाजिक संपर्क (Social Interaction) बढ़ाता है

बच्चे एक-दूसरे के साथ जुड़ते हैं, पकड़ते हैं और मिलकर गाना गाते हैं।

इससे peer interaction यानी साथियों के साथ खेलने की आदत विकसित होती है।

बच्चों में turn-taking (बारी-बारी से खेलना) और joint attention (एक साथ ध्यान देना) की क्षमता बढ़ती है।

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🗣️ 2. भाषा और संवाद कौशल (Communication Skills)

इस खेल में गाने के शब्द बार-बार दोहराए जाते हैं –
जैसे “पोशम्पा भई पोशम्पा…”
इससे listening skill और speech imitation में सुधार आता है।

बच्चे शब्दों की ध्वनि, लय और टोन को समझना सीखते हैं।

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🧠 3. ध्यान और एकाग्रता (Attention & Focus)

खेल के दौरान बच्चे को ध्यान रखना होता है कि कब “गेट” बंद होगा या कब भागना है।

इससे attention span और response time बेहतर होता है।

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🧍‍♀️🧍‍♂️ 4. मोटर कौशल विकास (Motor Skills Development)

हाथ मिलाना, चलना, झुकना, भागना — इन सब क्रियाओं से gross motor skills और body coordination सुधरती है।

साथ ही rhythmic movement (तालबद्ध गतिविधि) का अभ्यास भी होता है।

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😊 5. भावनात्मक अभिव्यक्ति (Emotional Understanding)

बच्चे खुशी, मज़ाक, और डर (जब “गेट” बंद होता है) जैसी भावनाएँ पहचानना और व्यक्त करना सीखते हैं।

इससे emotional awareness और social understanding विकसित होती है।

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👩‍🏫 6. समूह में सामंजस्य (Group Adjustment)

ऑटिज़्म वाले बच्चों को समूह में रहना सिखाने के लिए यह खेल बहुत उपयोगी है।

यह team activity होने के कारण बच्चों में cooperation (सहयोग) की भावना लाता है।

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👉 निष्कर्ष (Conclusion):
"पोशम्पा" खेल एक साधारण लेकिन बहुत प्रभावी थैरेप्यूटिक ग्रुप एक्टिविटी है। इसे स्पीच थेरेपी, ऑक्युपेशनल थेरेपी या स्पेशल एजुकेशन क्लास में शामिल करने से ऑटिज़्म वाले बच्चों का सामाजिक, भाषा और शारीरिक विकास बहुत अच्छे से होता है।


आइए जागरूक बनें और दूसरों तक जागरूकता पहुंचाए।
13/10/2025

आइए जागरूक बनें और दूसरों तक जागरूकता पहुंचाए।

11/10/2025

नमस्ते दोस्तों,
बच्चा स्पीच थेरेपी से अब भाषा का विकास कर रहा है।

10/10/2025

आइए सुनते हैं एक प्यासे कौवे की कहानी।।।
नए नए भाषा के विकास की वजह से कुछ समझने में दिक्कत हो सकती है।

लर्निंग डिसऑर्डर (Learning Disorder) क्या है?लर्निंग डिसऑर्डर एक न्यूरोडेवलपमेंटल समस्या (Neurodevelopmental Disorder) ह...
09/10/2025

लर्निंग डिसऑर्डर (Learning Disorder) क्या है?

लर्निंग डिसऑर्डर एक न्यूरोडेवलपमेंटल समस्या (Neurodevelopmental Disorder) है, जिसमें बच्चे की सीखने, पढ़ने, लिखने या गणित समझने की क्षमता उसकी उम्र और बुद्धिमत्ता के अनुसार धीमी या कमजोर होती है।
यह बच्चे की बुद्धि की कमी नहीं, बल्कि सीखने की प्रक्रिया में कठिनाई होती है।

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लर्निंग डिसऑर्डर के प्रकार (Types of Learning Disorders)

1. डिस्लेक्सिया (Dyslexia) –
इसमें बच्चे को पढ़ने और शब्द पहचानने में दिक्कत होती है।

अक्षर उल्टा पढ़ना (जैसे ‘b’ को ‘d’ समझना)

पढ़ते समय बार-बार रुकना

शब्दों को पहचानने या याद रखने में कठिनाई

2. डिसग्राफिया (Dysgraphia) –
इसमें बच्चे को लिखने में कठिनाई होती है।

अक्षर टेढ़े-मेढ़े या गलत आकार में लिखना

वाक्य बनाते समय शब्दों का क्रम गड़बड़ाना

लिखने में बहुत धीमापन

3. डिसकैलकुलिया (Dyscalculia) –
इसमें बच्चे को गणितीय अवधारणाओं (math concepts) को समझने में कठिनाई होती है।

जोड़, घटाव, गुणा, भाग में गलती

संख्या का क्रम (number sequence) भूल जाना

समय, माप, या पैटर्न समझने में समस्या

4. डिसऑर्थोग्राफिया (Dysorthographia) –
इसमें बच्चे को स्पेलिंग (spelling) में परेशानी होती है।

बार-बार शब्द गलत लिखना

सही उच्चारण होते हुए भी गलत स्पेलिंग लिखना

5. नॉन-वर्बल लर्निंग डिसऑर्डर (Non-verbal Learning Disorder) –
इसमें बच्चे को विजुअल और स्पेशल (visual-spatial) चीज़ें समझने में परेशानी होती है।

दिशा या दूरी का अंदाज़ा न लग पाना

पिक्चर या मैप समझने में कठिनाई

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माता-पिता बच्चे की समस्या कैसे पहचान सकते हैं?

माता-पिता निम्नलिखित संकेतों (signs) से पहचान सकते हैं —

बच्चा बार-बार अक्षर या शब्द गलत पढ़े या लिखे।

बहुत मेहनत करने के बाद भी स्कूल में कमजोर प्रदर्शन।

कॉपी में शब्द उल्टे-पुल्टे या बिना स्पेस के लिखना।

बच्चा पढ़ने-लिखने से कतराए या जल्दी थक जाए।

ध्यान केंद्रित करने में परेशानी।

पढ़े हुए को याद नहीं रख पाना या दोहराने में गलती करना।

यदि ऐसे लक्षण लगातार दिखें, तो स्पेशल एजुकेटर या चाइल्ड साइकॉलजिस्ट से मूल्यांकन (assessment) कराना चाहिए।

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स्पेशल एजुकेशन (Special Education) कैसे मदद करती है?

स्पेशल एजुकेशन का उद्देश्य बच्चे की सीखने की क्षमता को बढ़ाना और आत्मविश्वास विकसित करना होता है।

स्पेशल एजुकेटर निम्न तरीकों से मदद करते हैं –

इंडिविजुअल एजुकेशन प्लान (IEP) बनाते हैं – हर बच्चे की जरूरत के अनुसार खास शिक्षण योजना।

मल्टी-सेंसरी टीचिंग मेथड – देखने, सुनने, छूने और करने के जरिए सीखाना।

फोनेटिक (phonetic) और रीडिंग ट्रेनिंग द्वारा अक्षर पहचान में सुधार।

लिखने और गणित के लिए विशेष वर्कशीट्स और गेम्स का उपयोग।

मोटिवेशनल और आत्मविश्वास बढ़ाने वाली एक्टिविटीज़।

स्कूल और घर के बीच समन्वय ताकि बच्चा हर जगह एक समान तरीके से सपोर्ट पाए।

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निष्कर्ष (Conclusion)

लर्निंग डिसऑर्डर कोई बीमारी नहीं है, बल्कि यह एक सीखने का अलग तरीका है।
यदि समय पर पहचान और सही स्पेशल एजुकेशन दी जाए, तो बच्चा भी सफल और आत्मनिर्भर बन सकता है।

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नमस्ते दोस्तों, आज हम जानेंगे कि autism में meltdown condition क्या है इसे कैसे सम्हाला जा सकता है, ये कैसे दिख सकती है,...
08/10/2025

नमस्ते दोस्तों, आज हम जानेंगे कि autism में meltdown condition क्या है इसे कैसे सम्हाला जा सकता है, ये कैसे दिख सकती है, इसके कारण क्या हो सकते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं।

🌪️ मेल्टडाउन क्या होता है

मेल्टडाउन कोई “जिद” या “शरारत” नहीं होती — यह एक ऐसी भावनात्मक और संवेदी (sensory) ओवरलोड की स्थिति होती है जिसमें बच्चा अपने वातावरण, आवाज़, रोशनी, लोगों या किसी परिस्थिति से बहुत ज़्यादा तनाव महसूस करता है।

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⚠️ संभावित कारण (Causes)

1. Sensory Overload – बहुत तेज़ आवाज़, भीड़, तेज़ रोशनी, या कई लोगों की बातचीत।

2. Communication Difficulty – जब बच्चा अपनी ज़रूरत या तकलीफ़ शब्दों में नहीं बता पाता।

3. Routine Change – अचानक दिनचर्या में बदलाव (जैसे नया स्कूल, नया रास्ता)।

4. Frustration या Anxiety – जब कुछ समझ नहीं आता या किसी चीज़ में असफल होता है।

5. Physical Discomfort – भूख, थकान, नींद की कमी या दर्द भी कारण हो सकते हैं।

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😣 मेल्टडाउन के समय बच्चे का व्यवहार (Behaviour)

ज़ोर-ज़ोर से रोना या चिल्लाना

चीज़ें फेंकना या खुद को चोट पहुँचाना

कान या सिर ढक लेना

भाग जाना या छिप जाना

आँखों से संपर्क न बनाना

बहुत तेज़ साँस लेना या कांपना

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🤱 माता-पिता को क्या करना चाहिए (What Parents Should Do)

✅ 1. शांत रहें (Stay Calm)

खुद का धैर्य बनाए रखें।

बच्चे पर चिल्लाएँ या सज़ा न दें — इससे स्थिति और बिगड़ सकती है।

✅ 2. सुरक्षित वातावरण दें (Ensure Safety)

बच्चे को भीड़ या शोर से दूर किसी शांत जगह पर ले जाएँ।

उसके आसपास से खतरनाक वस्तुएँ (जैसे खिलौने या तेज चीजें) हटा दें।

✅ 3. उसे समझने का समय दें (Give Time to Settle)

बच्चे को तुरंत “Stop crying” या “Be quiet” मत कहें।

उसे धीरे-धीरे अपने आप शांत होने दें।

✅ 4. संवेदनशील स्पर्श और शब्द (Gentle Approach)

अगर बच्चा पसंद करता है, तो हल्का स्पर्श या गले लगाएँ।

कोमल आवाज़ में कहें — “ठीक है, मम्मी यहाँ है”, “तुम सुरक्षित हो।”

✅ 5. बाद में कारण पहचानें (Identify Triggers Later)

जब बच्चा शांत हो जाए, तो सोचें — क्या चीज़ से मेल्टडाउन हुआ?

जैसे शोर, भूख, दिनचर्या में बदलाव आदि।

उस कारण से भविष्य में बचने की कोशिश करें।

✅ 6. प्री-प्रिपरेशन (Prevention Plan)

बच्चे को रोज़ का रूटीन पहले से बताएं।

विज़ुअल चार्ट या पिक्चर शेड्यूल का प्रयोग करें।

शांत गतिविधियाँ (deep pressure, swing, favorite toy) शामिल करें।

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🌈 महत्वपूर्ण बात

मेल्टडाउन बच्चे की कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी संवेदी सीमाओं का संकेत है। माता-पिता अगर धैर्य और समझ के साथ प्रतिक्रिया देंगे, तो बच्चा धीरे-धीरे अपनी भावनाओं को बेहतर तरीके से संभालना सीख सकता है।

नमस्ते दोस्तों, आज हम समझेंगे कि sensory dysregulation क्या है, क्योंकि बहुत से माता पिता या बाहरी लोग समझ नहीं पाते कि ...
07/10/2025

नमस्ते दोस्तों,
आज हम समझेंगे कि sensory dysregulation क्या है, क्योंकि बहुत से माता पिता या बाहरी लोग समझ नहीं पाते कि ये समस्यात्मक व्यवहार बच्चा क्यों दिखा रहा है?
🧠 Sensory Dysregulation (संवेदी असंतुलन) क्या है?

संवेदी असंतुलन या Sensory Dysregulation एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें बच्चे का मस्तिष्क (brain) आने वाले sensory input — जैसे आवाज़, रोशनी, स्पर्श (touch), स्वाद, गंध, गति (movement) आदि को ठीक से प्रोसेस या समझ नहीं पाता।
इस कारण बच्चा अत्यधिक संवेदनशील (over responsive) या कम संवेदनशील (under responsive) हो सकता है।

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🔍 उदाहरण:

1. Over responsive (अत्यधिक प्रतिक्रिया देने वाला बच्चा)

तेज़ आवाज़ या लाइट से परेशान होना

कोई छूए तो चिढ़ना या डरना

कपड़े, टैग या जूतों की बनावट से असहज होना

भीड़ या नए माहौल में चिड़चिड़ा होना

2. Under responsive (कम प्रतिक्रिया देने वाला बच्चा)

ज़ोर से आवाज़ देने पर भी ध्यान न देना

दर्द या तापमान का असर कम महसूस करना

चीज़ों को बार-बार छूना, सूंघना या काटना

लगातार घूमना, कूदना या झूलना पसंद करना

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💡 Sensory Dysregulation का असर बच्चे के जीवन पर:

संवेदी असंतुलन ऑटिस्टिक बच्चे के दैनिक जीवन, व्यवहार, और सीखने की क्षमता पर गहरा प्रभाव डालता है।

1. 🏫 सीखने में कठिनाई – बच्चा क्लासरूम के वातावरण से विचलित हो जाता है।

2. 🤯 भावनात्मक नियंत्रण की कमी – बच्चा अचानक रो सकता है, गुस्सा कर सकता है या खुद को अलग कर सकता है।

3. 🧍‍♂️ सामाजिक कठिनाई – दूसरे बच्चों के साथ खेलना या बात करना मुश्किल लगता है।

4. 🍽️ खाने-पीने की समस्या – खाने की बनावट या गंध से परेशानी हो सकती है।

5. 😴 नींद और दिनचर्या का असंतुलन – अधिक उत्तेजना (overstimulation) से नींद की समस्या होती है।

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🧩 Management (प्रबंधन) कैसे करें?

संवेदी असंतुलन का इलाज नहीं, बल्कि प्रबंधन (management) किया जाता है, ताकि बच्चा बेहतर तरीके से जीवन जी सके।

👩‍⚕️ 1. Occupational Therapy (व्यावसायिक चिकित्सा)

OT बच्चे की sensory needs को पहचानता है।

Sensory Integration Therapy दी जाती है, जिससे बच्चा धीरे-धीरे विभिन्न संवेदनाओं को सहन और समझ पाता है।

🎨 2. Sensory Diet (संवेदी गतिविधियों का कार्यक्रम)

दिनभर में बच्चे की ज़रूरत के अनुसार गतिविधियाँ जैसे—
👉 झूलना (swinging)
👉 ट्रैम्पोलिन पर कूदना
👉 वेटेड ब्लैंकेट या प्रेशर एक्टिविटीज़
👉 प्ले-डो, ब्रशिंग, या डीप प्रेशर टच

इससे बच्चे की sensory system संतुलित होती है।

🏡 3. घर में सहायक माहौल बनाना

बच्चे की पसंद-नापसंद को समझें।

तेज़ आवाज़, तेज़ रोशनी, या भीड़ से बचाएँ।

शांत कोना (quiet corner) तैयार करें जहाँ बच्चा आराम कर सके।

❤️ 4. Parent Support और धैर्य

बच्चे को समय दें, ज़बरदस्ती न करें।

छोटी-छोटी प्रगति पर भी सराहना करें।

धीरे-धीरे exposure बढ़ाएँ।

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✨ निष्कर्ष:

Sensory Dysregulation कोई खराब व्यवहार नहीं, बल्कि मस्तिष्क की प्रोसेसिंग की समस्या है।
सही समझ, Occupational Therapy, और Sensory Integration के ज़रिए बच्चा अधिक शांत, संतुलित और आत्मनिर्भर बन सकता है।

🧩 Sensory Integration Therapy क्या होती है और यह Autism में क्यों ज़रूरी है?🧠 Sensory Integration Therapy क्या है?हमारे ...
06/10/2025

🧩 Sensory Integration Therapy क्या होती है और यह Autism में क्यों ज़रूरी है?

🧠 Sensory Integration Therapy क्या है?

हमारे शरीर में पाँच मुख्य इन्द्रियाँ होती हैं —

1. देखना (Vision)

2. सुनना (Hearing)

3. छूना (Touch)

4. सूँघना (Smell)

5. स्वाद (Taste)

लेकिन इसके अलावा दो और महत्वपूर्ण इन्द्रियाँ होती हैं जिन्हें हम अक्सर नहीं जानते —
6. Vestibular Sense – जो हमारे balance और movement को नियंत्रित करती है।
7. Proprioceptive Sense – जो बताती है कि हमारा शरीर किस स्थिति में है (जैसे हाथ कहाँ हैं, पैर कितने मुड़े हैं)।

👉 इन सभी इन्द्रियों से दिमाग में लगातार सूचनाएँ (signals) जाती हैं।
Sensory Integration Therapy एक ऐसी थेरेपी है जिसमें बच्चे को इन सभी इन्द्रियों से आने वाली सूचनाओं को सही तरीके से समझने, प्रोसेस करने और उपयोग करने में मदद की जाती है।

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🧒 Autism में इसका क्या महत्व है?

Autism वाले बच्चों को अक्सर Sensory Processing Disorder (SPD) भी होता है —
मतलब उनका दिमाग संवेदनाओं को बहुत ज़्यादा या बहुत कम महसूस करता है।

उदाहरण:

कुछ बच्चे हल्की आवाज़ या रोशनी से परेशान हो जाते हैं।

कुछ बच्चे बार-बार झूलना, घूमना या चीज़ों को छूना पसंद करते हैं।

कुछ बच्चे दूसरों के छूने या कपड़ों की बनावट से असहज हो जाते हैं।

इन सब व्यवहारों के पीछे Sensory Integration की दिक्कतें होती हैं।

🧩 Therapy कैसे की जाती है?

Sensory Integration Therapy को Occupational Therapist (OT) द्वारा किया जाता है।
इसमें बच्चे को विभिन्न sensory activities करवाई जाती हैं जैसे:

Swing therapy (झूला झूलना) – Vestibular sense सुधारने के लिए।

Brushing, deep pressure massage – Touch sense को संतुलित करने के लिए।

Ball pool, trampoline, climbing, balancing activities – Body awareness और proprioception सुधारने के लिए।

Sand, rice box play, light & sound games – विभिन्न sensory inputs देने के लिए।

इन गतिविधियों के ज़रिए बच्चे का मस्तिष्क धीरे-धीरे सीखता है कि अलग-अलग संवेदनाओं को कैसे समझे और उनका सही उपयोग करे।
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🌈 Autism में इसके फायदे

1. बच्चे का attention और concentration बढ़ता है।

2. Hyperactivity और sensory seeking व्यवहार कम होता है।

3. बच्चे की communication और social interaction में सुधार आता है।

4. Self-regulation यानी बच्चे को अपनी भावनाओं और व्यवहार को नियंत्रित करना सिखाता है।

5. Daily life skills (जैसे कपड़े पहनना, खाना खाना, लिखना आदि) आसान हो जाते हैं।

💬 संक्षेप में

Sensory Integration Therapy दिमाग और शरीर के बीच बेहतर तालमेल बनाती है।
यह सिर्फ खेल नहीं है, बल्कि विज्ञान पर आधारित structured therapy है जो बच्चे के व्यवहार, सीखने और जीवन की गुणवत्ता को सुधारती है।

Address

Mangalam Gali Near Raja Singh House New Colony Road
Robertsganj
231216

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Tuesday 9am - 5pm
Wednesday 9am - 5pm
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