Bliss Yoga Centre

Bliss Yoga Centre I am starting this page to spread positivity, knowledge and to share my thoughts regarding yoga and how it has changed my life.

I hope to bring a slightest change in all of your lives by the means of yoga.
- Yogacharya Megha Julka

20/08/2025

*अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के 12 बेहतरीन प्राकृतिक तरीके*

1. 🌞 सुबह की धूप में रहना

- विटामिन डी के स्तर को बढ़ाने के लिए सुबह की धूप में 15-20 मिनट बिताएँ।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता को नियंत्रित करने और संक्रमणों से लड़ने में मदद करता है।

2. 🍲 इंद्रधनुष खाएँ

- एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर रंग-बिरंगे फल और सब्ज़ियाँ (जैसे संतरा, पालक, चुकंदर) शामिल करें।
- कोशिकाओं की सुरक्षा को मज़बूत करता है और ऊतकों की मरम्मत करता है।

3. 🧘‍♂️ रोज़ाना योग और प्राणायाम

- अनुलोम विलोम और सूर्य नमस्कार जैसे अभ्यास तनाव कम करते हैं और ऑक्सीजन के प्रवाह में सुधार करते हैं।
- मानसिक स्पष्टता और रोग प्रतिरोधक क्षमता को साथ-साथ बढ़ाते हैं।

4. 🥦 रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले मसालों का प्रयोग करें

- अपने भोजन में हल्दी, अदरक, लहसुन, दालचीनी और काली मिर्च शामिल करें।
- इनमें सूजन-रोधी और विषाणु-रोधी गुण होते हैं।

5. 🥛 पारंपरिक काढ़े और हर्बल चाय

- तुलसी-अदरक की चाय, हल्दी दूध, या घर का बना काढ़ा नियमित रूप से पिएँ।
- विषाक्त पदार्थों को साफ़ करता है और श्वसन शक्ति को बढ़ाता है।

6. 😴 अच्छी नींद को प्राथमिकता दें

- 7-8 घंटे की निर्बाध नींद का लक्ष्य रखें।
- नींद वह समय है जब आपका शरीर अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली की मरम्मत और उसे मज़बूत करता है।

7. 🚶‍♂️ सक्रिय रहें, लचीला रहें

- रोज़ाना हल्का कार्डियो, पैदल चलना या स्ट्रेचिंग करें।
- लसीका परिसंचरण को मज़बूत बनाए रखता है—जो प्रतिरक्षा प्रणाली की सक्रियता के लिए ज़रूरी है।

8. 🧂 चीनी और ज़्यादा नमक से मना करें

- सूजन और कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली से बचने के लिए प्रोसेस्ड फ़ूड का सेवन सीमित करें।
- इसके बजाय खजूर या गुड़ जैसी प्राकृतिक मिठाइयाँ चुनें।

9. 💧 हाइड्रेशन से आराम मिलता है

- 8-10 गिलास पानी पिएँ; इसमें जीरा पानी या नींबू-शहद पानी जैसे डिटॉक्स ड्रिंक शामिल करें।
- विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है और कोशिकाओं को बेहतर ढंग से काम करने में मदद करता है।

10. सकारात्मकता और कृतज्ञता का अभ्यास करें

11 ध्यान करें, डायरी लिखें, या सकारात्मक वाक्य दोहराएँ—सकारात्मकता तनाव हार्मोन को कम करती है।

12- शांत मन एक मज़बूत शरीर का समर्थन करता है।

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17/08/2025

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11/08/2025

*फेफड़ो की सफाई करने का घरेलू नुस्खा, एक बार प्रयास करके देखें...*

यह नुस्खा फेफड़ों को, धूम्रपान या किसी और तरह से होने वाले नुक्सान से बचा कर रखेगा।

*जानिये इस नुस्खे के बारे में...*

*सामग्री :-*
■ 1 इंच अदरक
■ 400ग्राम प्याज
■ 400 ग्राम शुद्ध शहद
■ 2 चम्मच हल्दी पाउडर
■ 1 लीटर पानी

*विधि/इस्तेमाल करने का तरीका:-*
● पानी और शहद को आग पर रखे और उबालें।
● जब यह मिश्रण उबलने लगे तो इसमें कटा हुआ अदरक और प्याज डालें।
● अब मिश्रण में हल्दी डाल कर इसे तब तक धीमी आग पर रखें जब तक यह सारा मिश्रण कम हो कर आधा नहीं रह जाता।
● जब यह मिश्रण आधा रह जाए तो इसे आग से हटा लें और इस मिश्रण को सामान्य तापमान तक ठंडा होने दें।
● मिश्रण ठंडा होने के बाद इस मिश्रण को ग्लास जार में निकाल कर फ्रिज में स्टोर करके रखें।

2 चम्मच रोजाना खाली पेट
और 2 चम्मच रात को सोने से
2 घंटे पहले इस मिश्रण का सेवन
आपके फेफड़ों को समय से पहले खराब होने से बचा सकता है।

07/08/2025

*पता नहीं किसने ये अफ़वाह फैला दी है कि दालें खाने से यूरिक एसिड बढ़ जाता है।*

कोई भी हल्की सी जोड़ों की तकलीफ बताता है तो लोग फौरन बोल देते हैं – दाल मत खाओ, यूरिक एसिड होगा। जबकि सच्चाई ये है कि यूरिक एसिड सीधे दाल से नहीं, प्यूरिन नाम के तत्व से बनता है और प्यूरिन की सबसे ज्यादा मात्रा रेड मीट, मछलियों, शराब और मीठे ड्रिंक्स में होती है। हमारी रोजमर्रा की दालों में थोड़ा प्यूरिन ज़रूर होता है, मगर इतनी अल्प मात्रा कि सामान्य खाते रहने से किसी स्वस्थ व्यक्ति में यूरिक एसिड बढ़ना मुश्किल है। भारत जैसे देश में, जहां थाली पहले से ही कम प्रोटीन और ज्यादा कार्बोहाइड्रेट से भरी होती है, वहां दालें ही वो साधारण, सस्ती और सुपाच्य प्रोटीन का जरिया हैं जो शरीर की कमजोरी, मांसपेशियों की दुर्बलता और रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी को दूर करती हैं। सबसे ज्यादा मजेदार बात ये है कि जिन चीज़ों से यूरिक एसिड सच में बढ़ता है, जैसे शराब और फास्ट फूड, उनकी चर्चा कोई नहीं करता, और सीधा दोष दालों पर मढ़ दिया जाता है।
आइए समझते हैं कुछ प्रमुख दालों के बारे में ।

मूंग दाल
हल्की, त्रिदोषशामक (मुख्यतः कफ-पित्त शामक ), सुपाच्य
बुखार, अतिसार (दस्त), उल्टी, अपचन और गर्भवती महिलाओं के लिए भी उपयुक्त
प्रोटीन का सर्वोत्तम स्रोत, बच्चों और बुजुर्गों में उपयोगी

मसूर दाल
पित्त को शांत करने वाली होती है,
रक्त शुद्ध करता है, रक्त पित्त में उपयोगी है,त्वचा के दाग-धब्बे मिटाने में सहायक,हैवी ब्लीडिंग में उपयोगी है,मधुमेह के रोगियों के लिए उपयुक्त, ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने में मददगार होता है ।

चना दाल
मधुर और रुक्ष
बलवर्धक, मांसपेशियों को पुष्ट करती है
मूत्ररोग व शुक्रदोष में हितकारी
मधुमेह में भी सुरक्षित और उपयोगी।

अरहर (तुअर) दाल
पौष्टिक, बलवर्धक लेकिन वात को बढ़ाने वाली,
वातवर्धक लेकिन पाचन में मध्यम
खांसी, श्वास रोगों में लाभकारी।

उड़द दाल
भारी, बलवर्धक, शुक्रवर्धक
कमजोरी, बांझपन और शुक्र दोष में हितकारी
हड्डियों और स्नायुओं के लिए पौष्टिक

कुलथी दाल
किडनी स्टोन और मूत्रकृच्छ में विशेष लाभकारी
गठिया, जोड़ों के दर्द, मोटापे के विकारों में उपयोगी
पाचनशक्ति को सुधारती है

मटर दाल
कफ-पित्त को कम करती है लेकिन वातवर्धक है,
मध्यम पाच्य है,हृदय रोग, कब्ज और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में सहायक l

इसलिए दाल ना छोड़े किसी भी अफ़वाह में फँसकर और अपनी ज़रूरत के अनुसार दाल चुनें ।
और हाँ! दाल को बघारे मतलब की छौंक ज़रूर लगाएं,तेल,हींग,जीरा से ।
तेल वात को कम करता है ।

खुजली, घाव जैसी 9 बीमारियों से निजात दिलाए करंज, आयुर्वेदाचार्य से जानें इसके फायदे और नुकसानकरंज एक ऐसा औषधीय पेड़ है ज...
04/08/2025

खुजली, घाव जैसी 9 बीमारियों से निजात दिलाए करंज, आयुर्वेदाचार्य से जानें इसके फायदे और नुकसान

करंज एक ऐसा औषधीय पेड़ है जिसका हर भाग उपयोगी है। इसके पत्ते, जड़, लकड़ी, बीज सभी का औषधीय उपयोग है। करंज की तीन जातियां पाई जाती हैं। जिनमें से दो पेड़ हैं और तीसरी लता है। करंज के पेड़ की टहनी दातून के रूप में, खुजली होने पर पत्तों का प्रयोग, मच्छर काटने पर करंज की लकड़ी का जलावन काम आता है। करंज घाव, खुजली, आंख, दांत आदि परेशानियों में काम आता है। इसका पेड़ अक्सर नदी नालों के आसपास उग जाता है। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के 2-5 इंच लंबे होते हैं। इसके फूल मोती के समान सफेद होते हैं। करंज के बीजों का स्वाद कड़वा होता है। यह पेड़ देखने में जितना सुंदर है उतना ही उपयोगी है। आज के इस लेख में राष्ट्रीय समाज धर्मार्थ सेवा संस्थान के आयुर्वेदाचार्य डॉ. राहुल चतुर्वेदी से जानेंगे कि यह पेड़ किन बीमारियों में लाभकारी है। इसका उपयोग कैसे करना है। साथ ही जानेंगे कि इसके अधिक प्रयोग से क्या नुकसान होते हैं।

करंज के विभिन्न नाम
नक्तमाल, चिरबिल्ब, कटकरंज आदि तीन जातियां हैं जो करंज की हैं। करंज को हर भाषा में अलग नाम से जाना जाता है। हिंदी में इसे करंज, किरमाल, दिठोरी, पापर, करंजवा, अंग्रेजी में इण्डियन बीच (Indian Beech), स्मूथ लीव्ड पोंगेमिया (Smooth leaved pongamia), Pongam oil tree (पोंग्म ऑयल ट्री) और संस्कृत में नक्तमाल, उदकीर्य आदि कहा जाता है। विभिन्न नामों से ही किसी पेड़ की पहचान होती है। इसलिए किसी पेड़ के औषधीय फायदे लेने के लिए जरूरी है कि उसकी पहचान और नाम मालूम हो।

1. खुजली में फायदेमंद
प्राचीन समय में जब मेडिकल साइंस इतनी विकसित नहीं हुई थी तब आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से ही इलाज किया जाता था। आज भी कई गांवों में इनका प्रयोग किया जाता है। हालांकि भारत में कोरोना आने के बाद आयुर्वेद की अहमियत ज्यादा बढ़ गई। खुजली होने या त्वचा संबंधी कोई भी रोग होने पर करंज का प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए आपको करंज के पत्तों का स्नान करना होगा। करंज के पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से नहाने से खुजली की परेशानी खत्म हो जाती है। बहुत जगहों पर करंज का साबुन भी प्रयोग में लाया जाता है। करंज त्वचा के लिए रामबाण इलाज है।

2. मूत्रों रोगों में करंज
महिला या पुरुष मूत्र रोग किसी को भी हो सकते हैं। बार-बार पेशाब जाना, रुक-रुक कर पेशाब आना, जलन आदि परेशानियों का इलाज करंज है। अगर आपको भी यह समस्या है तो करंज के फूलों का काढ़ा बनाकर पीने से फायदा मिलेगा। बेहतर फायदे के लिए जरूरी है कि नजदीकी चिकित्सक से सलाह ली जाए।

3. गंजापन भगाए
बढते तनाव और बिगड़ते लाइफस्टाइल के कारण गंजापन की समस्या आम हो गई है। अब गंजा होने के लिए बढ़ती उम्र नहीं चाहिए। कम उम्र के लोगों को भी गंजेपन की समस्या हो रही है। इस गंजेपन की वजह से लोगों को हंसी का पात्र बनना पड़ता है। गंजेपन को भगाने में करंज बहुत लाभकारी है। करंज के तेल से सिर की मालिश करने से फायदा मिलता है। इसका प्रयोग कब और कितनी मात्रा में करना है, इसके बारे में नजदीकी चिकित्सक से पूछें।

4. शुगर में करंज
करंज का बीज स्वाद में कड़वा होता है। इसमें शुगर को ठीक करने वाले गुण होते हैं। आयुर्वेदाचार्य डॉ. राहुल चतुर्वेदी का कहना है कि करंज का बीज शुगर की बीमारी में बहुत लाभकारी है। इसके लिए आपको करंज के बीजों फोड़कर रात भर एक गिलास पानी में भिगोकर रख दें। सुबह उस पानी का सेवन खाली पेट करें। इसी तरह अगले दिन के लिए भी उन बीजों को भिगो दें। दो दिन इन बीजों का प्रयोग किया जा सकता है। फिर फ्रेश बीज लें।

5. आंखों के रोगों को करे दूर
करंज का पेड़ कई बीमारियों की एक दवा है। इसके बीज और पत्ते बहुत उपयोगी हैं। आजकल बढ़ते स्क्रीन एक्सपोजर की वजह से आंखों के रोग कम उम्र में भी बढ़ने लगे हैं। ब्लर आइज, ड्राइनेस, लालपन, खुजली आदि परेशानियां आंखों से संबंधित हैं। अगर आपको भी आंखों की परेशानी है तो आप भी करंज के बीजों का पेस्ट दूध में उबालकर ठंडा करके काजल की तरह प्रयोग कर सकते हैं। इसके सही उपयोग के बारे में और ज्यादा जानकारी के लिए अपने नजदीकी चिकित्सक से मिलें।

6. पेट के रोग
खराब खानपान व नियमित एक्सरसाइज की कमी के चलते पेट के रोग पनपते हैं। तो वहीं, सही पाचन न होने पर भी यह पेरेशानियां बढ़ती हैं। पेट के रोगों को ठीक करने में भी करंज का बहुत फायदा है। इसके लिए आपको करंज का पानी पीना है। करंज के बीजों को फोड़कर रात को एक गिलास पानी में भिगो दें फिर सुबह खाली पेट पी लें। ऐसा नियमित करने से रोग में फायदा मिलता है।

7. खांसी में फायदेमंद
कोरोना के समय में लोगों को खांसी हो रही है। हालांकि यह पता लगाना मुश्किल है कि यह खांसी कोरोना वाली है सामान्य मौसमी। अगर आपको भी खांसी हो गई है तो आप भी करंज का प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए करंज के बीजों का चुर्ण शहद में मिलाकर खाएं। इससे खांसी ठीक हो जाएगी।

इसे भी पढ़ें : नागबला के पौधे में होते हैं कई औषधीय गुण, आयुर्वेदाचार्य से जानें इसके फायदे-नुकसान और प्रयोग का तरीका

8. घाव को करे ठीक
घाव को ठीक करने में करंज का बहुत फायदा है। इसके लिए करंज के पत्तों का रस घाव वाली जगह पर लगाना होता है। इसमें और क्या मिलाया जा सकता है, इसके बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए आप नजदीकी आयुर्वेदिक चिकित्सक से मिल सकते हैं।

9. चमकती त्वचा के लिए करंज
अगर आपको चमकती दमकती त्वचा चाहिए तो करंज के बीजों का प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए आपको करंज के बीजों को पीसकर दूध में मिलाना है। इस लेप को चेहर पर लगाने से चेहरा चमक जाता है। चेहरे पर ग्लो आता है।

करंज के नुकसान
करंज का अगर सही मात्रा में उपयोग किया जाए तो यह नुकसानदायक नहीं है। पर अधिक मात्रा में सेवन करने से इसके निम्न नुकसान हो सकते हैं-

लता करंज के अधिक सेवन से उल्टी, पेट में दर्द की समस्या हो सकती है।
गर्भवती महिलाएं चिकित्सक की सलाह से करंज का प्रयोग करें। इसके अधिक सेवन से गर्भपात हो सकता है।
इसके अधिक सेवन से एलर्जी की परेशानी बढ़ सकती है।
आयुर्वेद में कई बीमारियों के इलाज के लिए औषधीयों का प्रयोग किया गया है। उसी में से एक है करंज। करंज भारत में कहीं भी पाया जाता है। इसके सही उपयगो से शरीर के कई रोगों से निजाप पाई जा सकती है।

04/08/2025

*Vitamin B12 की कमी: कारण, लक्षण और घरेलू समाधान*

अभी काफी समय से अजीब स्थिति में थी मैं..... जितना मैं active रहती थी हर काम में सारे दिन उतना ही अभी कुछ समय से बस ऐसे लगता हैं कि बिस्तर पकड़ लूँ....... भूख नहीं लगती, खाया हुआ ऐसे लगता कि पेट में ही रखा हुआ हैं.... शरीर में जान ही नहीं हैं चलते चलते संतुलन बिगड़ जाता हैं और जो हड्डियां ठीक हुई वो फिर हिल जाती हैं...... बहुत समस्या में थी अन्दर ही अन्दर रोना कि एकदम ऐसे हो गया आगे क्या होगा..... सब बोलने लगे कि नजर खा गई...... सब बोलते थे कि कितना काम करती हैं.......

लगा कि थायरायड, या शुगर परेशान कर रही होगी...... थायरायड पंद्रह साल पुराना है पर दो साल से दवा बंद क्योंकि कन्ट्रोल में हैं....... हाँ शुगर गड़बड़ चल रही थी........ पर वो भी सही निकली...... फिर अपुन पहुच गए डॉ के पास......

लक्षण के आधार पर कुछ जांचे लिखी......
उसके आधर पर 🙏

🧠 Vitamin B12 की कमी: कारण, लक्षण और घरेलू समाधान

आज के समय में Vitamin B12 की कमी बहुत आम हो गई है, खासकर शुद्ध शाकाहारी लोगों में।
शरीर को स्वस्थ रखने, ऊर्जा बनाए रखने और दिमाग़ी संतुलन के लिए यह विटामिन बहुत जरूरी है।

❓ Vitamin B12 की कमी क्यों होती है?

शुद्ध शाकाहारी भोजन में B12 बहुत कम होता है।

कुछ पाचन संबंधी समस्याएं जैसे गैस्ट्रिक या एसिडिटी B12 के अवशोषण को कम कर देती हैं।

बार-बार एंटीबायोटिक या ऐसिड कम करने वाली दवाइयां लेना।

उम्र बढ़ने पर शरीर का अवशोषण तंत्र कमजोर हो जाता है।

⚠️ कमी के मुख्य लक्षण:

हर समय थकान या कमजोरी

चक्कर आना या चित्त अस्थिर रहना

हाथ-पैर में झनझनाहट या सुन्नपन

याददाश्त में कमजोरी

चिड़चिड़ापन या मूड का बार-बार बदलना

जीभ में जलन या मुंह में छाले....

घरेलू और शाकाहारी उपाय:

रोज़ 1–2 गिलास दूध और दही लें

पनीर और छाछ को भोजन में शामिल करें

फोर्टिफाइड अनाज (Cornflakes, Soy milk)

त्रिफला चूर्ण रात को (1 चम्मच) गर्म पानी के साथ

रोज़ आंवला जूस या मुरब्बा....

📌 ध्यान रखें:

Vitamin B12 की कमी समय पर दूर न की जाए तो यह नर्व सिस्टम और दिमाग़ पर असर डाल सकती है।
रिपोर्ट में यदि B12 का स्तर 200 pg/mL से कम हो तो तुरंत इलाज शुरू करें।

आवश्यकता हो तो डॉक्टर की सलाह से B12 सप्लीमेंट (जैसे Nurokind Plus) लें

नोट..... अगर आपके शरीर में विटामिन B12 की कमी हो तो ये शुगर और थायरायड की दवाओं का असर भी कम करने लगती हैं 🙏

04/08/2025

*किसे कौन सा मिलेट खाना चाहिए, किसे नहीं।*

अथ मिलेट-कथा!!
सॉरी श्री अन्न कथा!
सरकार ने मिलेट का नाम बदलकर श्री धान्य कर दिया है ।

आधुनिक जीवनशैली ने मेटाबोलिक डिज़ीज़ की बाढ़ ला दी है।
अब लोग भोजन के पुराने तरीकों की ओर लौटने लगे हैं।
इसी का एक परिणाम है -मिलेट (मोटा अनाज) के प्रयोग में बढ़ोत्तरी।

आयुर्वेद में मिलेट को तृण धान्य या क्षुद्र धान्य की श्रेणी में रखा गया है।
आइए विस्तार से समझते हैं -किसे कौन सा मिलेट खाना चाहिए, किसे नहीं।
क्योंकि अधिकतर मिलेट कफ और पित्त के रोगों को कम करते हैं, लेकिन वातवृद्धि कर सकते हैं।

यहाँ कफ का मतलब केवल सर्दी-खाँसी से नहीं है -इसमें हाइपोथायरायडिज़्म, डायबिटीज़, मोटापा जैसे तमाम रोग शामिल हैं।
पित्त के अंतर्गत वे सभी रोग आते हैं जो डायरेक्ट या इनडायरेक्ट इन्फ्लेमेशन से जुड़े हैं ,जैसे हाई BP, चर्म रोग ,बढ़े हुए इन्फ़्लेमेटरी मार्कर्स जैसे ESR,CRP आदि।

1. कंगु (इटैलियन मिलेट)
पचने में कठिन।शरीर से अतिरिक्त जल निकालता है।
पोषण देता है, पौरुष शक्ति बढ़ाता है, हड्डियाँ जोड़ने में सहायक।
गठिया रोग में इसका लेप लाभकारी है, लेकिन गठिया रोग में खाने में हानिकारक।

2. सामा (Barnyard मिलेट)
पित्त व कफ दोष को कम करने वाला।आसानी से पचने वाला।
दुर्बल, वजन बढ़ाने के इच्छुक और वात-रोगियों को इससे बचना चाहिए।

3. कोदो मिलेट
डायबिटीज़ (कफज प्रमेह) में सर्वोत्तम।
यदि कोई घाव भर नहीं रहा हो, तो इसके सेवन से लाभ होता है।

4. चीनाक (प्रोसो मिलेट)
कंगु के समान गुण।
वही लाभ और वही सावधानी।

5. रागी / मडुआ (फिंगर मिलेट)
शीतलता देने वाला।
पित्त दोष नाशक, बलवर्धक।
ESR या CRP बढ़े होने पर लाभदायक।
इन्फ्लेमेटरी कंडीशन्स में उपयुक्त।

6. गवेधूका (एडले मिलेट)
यह रागी की तरह नहीं, बल्कि अधिक कफहर होता है।
बाकी गुण सामा से मिलते-जुलते हैं।

7. ज्वार (Sorghum)
भोजन में रुचि बढ़ाए।
अत्यधिक प्यास और शरीर की चिपचिपाहट कम करे।
जिन्हें पसीने में दुर्गंध आती हो, उनके लिए विशेष उपयोगी।

एक विशेष बात
आयुर्वेद ने श्री अन्न को कु-धान्य माना है।
यह नित्य सेवनीय आहार की श्रेणी में नहीं आता।
कारण है -इनका रूक्ष स्वभाव, जो वात दोष को बढ़ाता है।

इसलिए निम्न अवस्थाओं में इनका सेवन सावधानीपूर्वक करें या न करें -
• गठिया (विशेषकर ओस्टियोआर्थराइटिस)
• कमजोर पाचन
• दुर्बलता
• वज़न की अत्यधिक कमी
• अनिद्रा
• पक्षाघात (पैरालिसिस) आदि।

यदि प्रयोग करना ही है, तो इन्हें गर्म पानी में भिगोकर तथा घी के साथ सेवन करें।

आज हम इसे इसलिए समझ पा रहे हैं, क्योंकि अति भोजन और संतर्पण के कारण कफजन्य रोग बढ़े हैं।
लेकिन ऐसा न हो कि 20–30 साल बाद फिर से लौटना पड़े।

इसलिए यहाँ भी मध्यम मार्ग ही अपनाइए — वही श्रेष्ठ है, वही स्वस्थ।
इति!!

04/08/2025

*पचास की उम्र के बाद शरीर में बुढ़ापा अचानक तेज़ रफ्तार पकड़ता है।*

अभी जुलाई में Cell नाम की एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिका में एक अध्ययन छपा है। उम्र बढ़ने को लेकर। रिसर्च कहती है कि पचास की उम्र के बाद शरीर में बुढ़ापा अचानक तेज़ रफ्तार पकड़ता है। लेकिन ये टूटन सब जगह एक साथ नहीं होती। शरीर के कुछ अंग धीरे-धीरे कमजोर होते हैं, पर कुछ अंगों में जैसे बुढ़ापा दौड़कर आता है। उनमें सबसे ऊपर नाम है धमनियों का।

धमनियाँ यानी वो नलिकाएँ जो दिल से खून को पूरे शरीर में लेकर जाती हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि हमारे शरीर की मुख्य धमनी, जिसे एओरटा कहते हैं, उसमें एक खास प्रोटीन बनता है। इस प्रोटीन को जब चूहों को दिया गया, तो उनके शरीर के बाकी अंगों में भी उम्र के लक्षण तेजी से दिखने लगे। यानी धमनियाँ न सिर्फ खुद बूढ़ी होती हैं, बल्कि बाकी अंगों को भी बुढ़ापे का संदेश भेजती हैं। खून के साथ ये संदेश पूरे शरीर में पहुँचता है।

अब ज़रा इसको आयुर्वेद के नजरिए से देखें।

चरक और सुश्रुत संहिताओं में शरीर के भीतर ‘स्रोतस’ नाम की संरचनाओं का उल्लेख है ,ये शरीर के अंदर बहने वाले रास्ते हैं, जिनसे रस, रक्त, प्राण, और ओज बहते हैं।
इनमें रसवह स्रोत और रक्तवह स्रोत खास महत्व रखते हैं।
धमनियाँ इन्हीं दोनों स्रोतों से जुड़ी मानी गई हैं।
रसवह स्रोत का मुख्य केंद्र हृदय और दश धमनियाँ मानी गई हैं।
और रक्तवह स्रोत का मूल यकृत और प्लीहा बताया गया है, पर बहाव का माध्यम वही धमनियाँ होती हैं।

इसका अर्थ सीधा है -जीवन देने वाले दो मुख्य तरल, रस और रक्त, इन्हीं नाड़ियों से गुजरते हैं।
और जब यही नाड़ियाँ संकुचित होने लगती हैं, कड़ी होने लगती हैं, तो भीतर की पूरी व्यवस्था धीमी पड़ जाती है।

आयुर्वेद कहता है कि पचास के बाद वात दोष प्रबल होता है।
वात के गुण हैं -सूक्ष्मता, रूक्षता, संकुचन, हलकापन, और गति।
यही सब लक्षण हमें बढ़ती उम्र में दिखने लगते हैं।
खास तौर पर धमनियों में -वे पहले सख्त होती हैं, और लचीलापन खत्म होता है, और फिर अंदर के रस-रक्त का प्रवाह भी धीमा हो जाता है।

आज की भाषा में कहें तो
रक्तवाहिनियाँ शरीर में बुढ़ापे के संदेश ले जा रही हैं।
और आयुर्वेद की भाषा में कहें तो
जब वात बढ़ता है, तो सबसे पहले असर रस और रक्त के प्रवाह पर पड़ता है।

यह कोई बीमारी नहीं, शरीर की स्वाभाविक यात्रा है।
लेकिन इस यात्रा को तेज़ करना या धीरे चलने देना, यह जीवनचर्या से जुड़ा होता है।

कुछ बातें जो ध्यान रखने लायक हैं:
पचास के बाद बार-बार उपवास, देर रात खाना, ज्यादा तले-भुने भोजन, और बैठे रहने की आदत से शरीर की अंदरूनी नलियाँ धीरे-धीरे सूखने लगती हैं।
सुबह थोड़ी धूप लेना, थोड़ा घी भोजन में रखना, और कुछ गर्म जल पीते रहना, ये धमनियों की सूक्ष्म ग्रीसिंग जैसे काम करते हैं।
रात को सिर और पैर धोकर सोना, दोपहर में भारी नींद से बचना, और भोजन के बाद थोड़ा टहलना (थोड़ा मतलब थोड़ा दो-चार किलोमीटर नहीं),रात में जल्दी सोना,रील ना देखना,लेट गो करने की आदत डालान,हऊहाना नहीं,ये सब छोटी बातें हैं, पर इनके असर अंदर गहरे जाते हैं।

धमनियाँ शरीर की सड़कें हैं।
अगर ये सूखने लगें या बंद होने लगें तो शरीर का पूरा यातायात रुकने लगता है।
रक्त और रस दोनों ही स्रोत इन्हीं पर चलते हैं।
चाहे शोध की माने या आयुर्वेद की जहां गति में असंतुलन हो, वहां वात की छाया पड़ चुकी होती है।और ये बात पहले नाड़ियों को पता चलती है,ये ठीक वैसे ही जैसे गाड़ी को उचाई या नीचे ले जाने पर सबसे पहले पता इंजन को ही चलता है । फिर धमनियाँ उम्र की खबरें बाकी अंगों को देती हैं।

अगर भीतर की इन नाड़ियों को समझदारी से सहेजा जाए
तो उम्र की रफ्तार को कुछ देर रोका जा सकता है।
और बुढ़ापा, जो अचानक आता है, वह थोड़ा ठहरकर, धीरे-धीरे चल सकता है।
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01/08/2025

*नीम खाने के क्या लाभ और नुकसान है?*

नीम का वृक्ष देश के सभी भागों में पाया जाता है। नीम के अंदर इतनी कीटाणुनाशक शक्ति मौजूद होती है कि इसके वृक्ष के नीचे सोने मात्र से ही मनुष्य रोगमुक्त हो जाता है। नीम के फूल, पत्ते, छाल, फल और तेल सभी दवा का काम करते हैं। हम यहां पर

बात करेंगे नीम खाने के लाभ और नुकसान के बारे मे। आओ जानते हैं:-

1- नीम के 3–4 कोमल पत्ते सुबह के समय रोजाना कुछ महीने खाने से रक्त में उत्पन्न हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं और रक्त भी साफ होता है।

2- नीम के फूल सुखाकर पीसकर रख लें। यह चूर्ण चुटकी भर रात को गर्म पानी के साथ कुछ दिन लेने से कब्ज में लाभ होता है।

3- 30 ग्राम नीम की कोपलें ( नये निकलने वाले पत्ते) पीसकर पानी में मिलाकर कुछ दिन पीने से फोड़े, फुंसी, दाद, खुजली में लाभ होता है।

4- 60 ग्राम नीम के हरे पत्ते, चार काली मिर्च, दोनों को पीसकर 125 ग्राम पानी में छानकर पी लें। 2–3 दिनों में ही मलेरिया ठीक हो जाता है।

5- 25 ग्राम नीम के पत्ते पीसकर 125 म्राम पानी में छानकर पीने से सभी प्रकार की उल्टियां ठीक हो जाती है।

6- नीम की 20 पत्तियां पीसकर एक कप पानी में मिलाकर कुछ दिन पीने से हैजा ठीक हो जाता है।

7- नीम का तेल 5 बूंद तक बालकों की आयु के अनुसार देने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

8- नीम के पत्तों का रस पिलाने से अफीम का नशा उतर जाता है।

9- नीम के पत्तों को पीसकर, छानकर और उसमें शक्कर मिलाकर पीने से दस्त बंद हो जाते हैं।

10- बीस ग्राम नीम के पत्तों के रस में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर कुछ दिन पीने से प्रमेह रोग दूर होता है।

11-नीम की छाल का काढ़ा पिलाने से मधुमेह में लाभ होता है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि नीम का रस पीने से अनेक बीमारियों से छुटकारा मिलता है लेकिन लंबे समय तक और ज्यादा मात्रा में इसका उपयोग नुकसानदेह हो सकता है। आओ जानते हैं:-

1- नीम के पत्तों का रस रोजाना पीने से पुरुष प्रजनन क्षमता पर प्रभाव डाल सकता है।

2-नीम का प्रयोग रक्त शर्करा को कम करता है। उपवास के दौरान इसका उपयोग न करें।

3- नीम के तेल का ज्यादा सेवन से उल्टियां भी लग सकती हैं।

4- नीम का ज्यादा उपयोग शुक्राणु को नष्ट करता है।

5- गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान इसका उपयोग न करें।

इसलिए दोस्तों डाक्टर की सलाह के मुताबिक ही नीम का सेवन करे!

01/08/2025

*माँ काली का प्रिय फूल - गुड़हल*

गुड़हल का फूल जितना देखने में सुंदर लगता है, उतना ही हमारे स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. गुड़हल का पौधा आयुर्वेद में विशेष स्थान रखता है. यह पौधा लगभग हर जगह आसानी से मिल जाता है. इसकी पत्तियां और फूल हमारे शरीर में लगने वाली कई गंभीर बीमारियों में लाभकारी हैं. आयुर्वेद में गुड़हल का यूज कई रोगों के उपचार में किया जाता है. इसके नियमित सेवन से कई स्वास्थ्य समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है. गुड़हल के हर हिस्से में औषधीय गुणों का खजाना मौजूद है. इसके पत्ते, फूल और जड़ सभी औषधीय लिहाज में उपयोगी हैं.

इन तरीकों से करें यूज,,,,,

गुड़हल हमें डायबिटीज, त्वचा की एलर्जी, बालों की समस्या और मासिक धर्म संबंधित कई परेशानियों में राहत दिलाता है. गुड़हल के पौधे में कई औषधीय गुण होते हैं. जिस किसी को बाल में रूसी का समस्या है, वो गुड़हल के पत्तियों का रस निकालकर लगा ले. रूसी की समस्या खत्म हो जाएगी. जिनके बाल झड़ रहे हैं या गंजापन होने लगा है, वे गुड़हल के फूलों को तिल के तेल में पकाकर रात में प्रतिदिन बालों की जड़ों में लगाएं।

शुगर वाले करें ये काम,,,,

जिस किसी को त्वचा संबंधित समस्या है, त्वचा पर रेशेज पड़ जाते हैं, ऐसे लोग इसके दो से तीन फूलों को सुबह शाम सेवन करें. इससे त्वचा संबंधित बीमारी ठीक हो जाती है. जिन महिलाओं को मासिक धर्म में समस्या रहती है, वे इसकी पत्तियों का दो चम्मच रस निकालकर आधे गिलास पानी के साथ सुबह शाम लें. जिनको डायबिटीज की शिकायत है, उन्हें इसकी पत्तियों के रस का इस्तेमाल करना चाहिए. इससे काफी फायदा होता है।

गुड़हल के 100 फूल लें। हरे डंठल को तोड़कर पंखुड़ियों को नींबू के रस में भिगो लें। इसे कांच के बर्तन में रात किसी खुले स्थान पर रख दें। सुबह इसे मसलकर छान लें। इसमें 650 ग्राम मिश्री या चीनी, तथा 1 बोतल उत्तम गुलाब जल मिला लें। इसे दो बोतलों में बंद कर धूप में दो दिन तक रखें। इस दौरान बोतल को हिलाते रहें। मिश्री अच्छी तरह घुल जाने पर शरबत बन जाता है। इसे 15 से 40 मिली की मात्रा में पीते रहने से नींद न आने की परेशानी में लाभ होता है।

गुड़हल के पत्तों को पीसकर लुग्दी बना लें। इसे बालों में लगाएं। दो घंटे बाद बालों को धोकर साफ कर लें। इस प्रयोग को नियमित रूप से करने से बालों को पोषण मिलता है, और सिर भी ठंडा रहता है।

गुड़हल के फूलों और पत्तों को बराबर मात्रा में लेकर सुखाएं। इसे पीसकर पाउडर बना लें और शीशी में भर लें। एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पिएं। इसे आपको एक कप मीठे दूध के साथ पीना है। इससे याददाश्त (स्मरण-शक्ति) बढ़ती है।

पैकिंग आटा में कीड़े क्यों नही पड़ते ? ?आंखें खोल देने वाला सच --एक प्रयोग करके देखें गेहूं का आटा पिसवा कर उसे 2 महीने ...
25/07/2025

पैकिंग आटा में कीड़े क्यों नही पड़ते ? ?

आंखें खोल देने वाला सच --

एक प्रयोग करके देखें गेहूं का आटा पिसवा कर उसे 2 महीने स्टोर करने का प्रयास करें।

आटे में कीड़े पड़ जाना स्वाभाविक हैं,
आप आटा स्टोर नहीं कर पाएंगे।

फिर ये बड़े बड़े ब्रांड आटा

कैसे स्टोर कर पा रहे हैं?

यह सोचने,,,, वाली बात है।

एक केमिकल है- बेंजोयलपर ऑक्साइड, जिसे ' फ्लौर इम्प्रूवर ' भी कहा जाता है।
इसकी पेरमिसीबल लिमिट 4 मिलीग्राम है,लेकिन आटा बनाने वाली फर्में 400 मिलीग्राम तक ठोक देती हैं।
कारण क्या है?
आटा खराब होने से लम्बे समय तक बचा रहे। बेशक़ उपभोक्ता की किडनी का बैंड बज जाए।

कोशिश कीजिये खुद सीधे गेहूं खरीदकर अपना आटा पिसवाकर खाएं।

नियमानुसार आटे का समय,,,,

ठंडके दिनों में 30 दिन

गरमी के दिनों में 20 दिन

बारिस के दिनों में 15 दिन का

बताया गया है।

ताजा आटा खाइये,

स्वस्थ रहिये...समझदार बनें,

अपने लिए पुरुषार्थी बन सभी

गेंहू पिसवा कर काम ले।

न कि रेडीमेड थैली का,,,,,,,

केवल 3 बदलाव कर के देखे

1.) नमक सेंधा प्रयोग करे,

2.) आटा चक्की से पिसवा कर लाये,

3.) पानी मटके का पिये,

सुबह गर्म पानी पिये,,

आधी बीमारियों से छुटकारा पाएंगे,,

Address

Delhi Road
Saharanpur
247001

Opening Hours

Monday 5am - 5pm
Tuesday 5am - 5pm
Wednesday 5am - 5pm
Thursday 5am - 5pm
Friday 5am - 5pm

Telephone

+919808369916

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