वैदिक संस्कार संचार

वैदिक संस्कार संचार Vedic Sanskar Sanchar

 #कार्तिक में दीपदान〰️〰️🌼🌼〰️〰️इन पाँच दिन जरूर जरूर करें दीपदान〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक कार्तिक ...
28/10/2025

#कार्तिक में दीपदान
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इन पाँच दिन जरूर जरूर करें दीपदान
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महापुण्यदायक तथा मोक्षदायक कार्तिक के मुख्य नियमों में सबसे प्रमुख नियम है दीपदान। दीपदान का अर्थ होता है आस्था के साथ दीपक प्रज्वलित करना। कार्तिक में प्रत्येक दिन दीपदान जरूर करना चाहिए।

#दीपदान कैसे करें
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मिट्टी, ताँबा, चाँदी, पीतल अथवा सोने के दीपक लें। उनको अच्छे से साफ़ कर लें। मिटटी के दीपक को कुछ घंटों के लिए पानी में भिगो कर सुखा लें। उसके पश्च्यात प्रदोषकाल में अथवा सूर्यास्त के बाद उचित समय मिलने पर दीपक, तेल, गाय घी, बत्ती, चावल अथवा गेहूँ लेकर मंदिर जाएँ। घी में रुई की बत्ती तथा तेल के दीपक में लाल धागे या कलावा की बत्ती इस्तेमाल कर सकते हैं। दीपक रखने से पहले उसको चावल अथवा गेहूं अथवा सप्तधान्य का आसन दें। दीपक को भूल कर भी सीधा पृथ्वी पर न रखें क्योंकि कालिका पुराण का कथन है।

"दातव्यो न तु भूमौ कदाचन।
सर्वसहा वसुमती सहते न त्विदं द्वयम्।।
अकार्यपादघातं च दीपतापं तथैव च।
तस्माद् यथा तु पृथ्वी तापं नाप्नोति वै तथा।।"

अर्थात👉 सब कुछ सहने वाली पृथ्वी को अकारण किया गया पदाघात और दीपक का ताप सहन नही होता।

उसके बाद एक तेल का दीपक शिवलिंग के समक्ष रखें और दूसरा गाय के घी का दीपक श्रीहरि नारायण के समक्ष रखें। उसके बाद दीपक मंत्र पढ़ते हुए दोनों दीप प्रज्वलित करें। दीपक को प्रणाम करें। दारिद्रदहन शिवस्तोत्र तथा गजेन्द्रमोक्ष का पाठ करें।

#पुराणों में वर्णन मिलता है।
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"हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम्।
उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके।।“
पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय –११५

“ स्नानं च दीपदानं च तुलसीवनपालनम्।
भूमिशय्या ब्रह्मचर्य्यं तथा द्विदलवर्जनम्।।
विष्णुसंकीर्तनं सत्यं पुराणश्रवणं तथा।
कार्तिके मासि कुर्वंति जीवन्मुक्तास्त एव हि।।”

स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, कार्तिकमासमाहात्म्यम, अध्याय 03

पद्मपुराण उत्तरखंड, अध्याय 121 में कार्तिक में दीपदान की तुलना अश्वमेघ यज्ञ से की है।

"घृतेन दीपको यस्य तिलतैलेन वा पुनः।
ज्वलते यस्य सेनानीरश्वमेधेन तस्य किम्।।"

अर्थात 👉 कार्तिक में घी अथवा तिल के तेल से जिसका दीपक जलता रहता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ से क्या लेना है।

#अग्निपुराण के 200वें अध्याय के अनुसार
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"दीपदानात्परं नास्ति न भूतं न भविष्यति"

अर्थात 👉 दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही।

#स्कंदपुराण, वैष्णवखण्ड के अनुसार
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"सूर्यग्रहे कुरुक्षेत्रे नर्मदायां शशिग्रहे।।
तुलादानस्य यत्पुण्यं तदत्र दीपदानतः।।"

अर्थात 👉 कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय और नर्मदा में चन्द्रग्रहण के समय अपने वजन के बराबर स्वर्ण के तुलादान करने का जो पुण्य है वह केवल दीपदान से मिल जाता है।

कार्तिक में दीपदान का एक मुख्य उद्देश्य पितरों का मार्ग प्रशस्त करना भी है।

"तुला संस्थे सहस्त्राशौ प्रदोषे भूतदर्शयोः
उल्का हस्ता नराः कुर्युः पितृणाम् मार्ग दर्शनम्।।"

पितरों के निमित्त दीपदान जरूर करें।

पद्मपुराण, उत्तरखंड, अध्याय 123 में महादेव कार्तिक में दीपदान का माहात्म्य सुनाते हुए अपने पुत्र कार्तिकेय से कहते हैं।

"शृणु दीपस्य माहात्म्यं कार्तिके शिखिवाहन।
पितरश्चैव वांच्छंति सदा पितृगणैर्वृताः।।
भविष्यति कुलेऽस्माकं पितृभक्तः सुपुत्रकः।
कार्तिके दीपदानेन यस्तोषयति केशवम्।।"

अर्थात 👉 “मनुष्य के पितर अन्य पितृगणों के साथ सदा इस बात की अभिलाषा करते हैं कि क्या हमारे कुल में भी कोई ऐसा उत्तम पितृभक्त पुत्र उत्पन्न होगा, जो कार्तिक में दीपदान करके श्रीकेशव को संतुष्ट कर सके।"

#दीपदान कहाँ करें
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देवालय (मंदिर) में, गौशाला में, वृक्ष के नीचे, तुलसी के समक्ष, नदी के तट पर, सड़क पर, चौराहे पर, ब्राह्मण के घर में, अपने घर में।

#अग्निपुराण के 200वे अध्याय के अनुसार
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"देवद्विजातिकगृहे दीपदोऽब्दं स सर्वभाक्"

जो मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है। पद्मपुराण के अनुसार मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। दुर्गम स्थान अथवा भूमि पर दीपदान करने से व्यक्ति नरक जाने से बच जाता है।

जो देवालय में, नदी के किनारे, सड़क पर दीप देता है, उसे सर्वतोमुखी लक्ष्मी प्राप्त होती है। कार्तिक में प्रतिदिन दो दीपक जरूर जलाएं। एक श्रीहरि नारायण के समक्ष तथा दूसरा शिवलिंग के समक्ष।

#पद्मपुराण के अनुसार
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"तेनेष्टं क्रतुभिः सर्वैः कृतं तीर्थावगाहनम्।
दीपदानं कृतं येन कार्तिके केशवाग्रतः।।"

अर्थात👉 जिसने कार्तिक में भगवान् केशव के समक्ष दीपदान किया है, उसने सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया और समस्त तीर्थों में गोता लगा लिया।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है जो कार्तिक में श्रीहरि को घी का दीप देता है, वह जितने पल दीपक जलता है, उतने वर्षों तक हरिधाम में आनन्द भोगता है। फिर अपनी योनि में आकर विष्णुभक्ति पाता है; महाधनवान नेत्र की ज्योति से युक्त तथा दीप्तिमान होता है।

#स्कन्दपुराण माहेश्वरखण्ड-केदारखण्ड के अनुसार
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"ये दीपमालां कुर्वंति कार्तिक्यां श्रद्धयान्विताः॥
यावत्कालं प्रज्वलंति दीपास्ते लिंगमग्रतः॥
तावद्युगसहस्राणि दाता स्वर्गे महीयते॥"

अर्थात 👉 जो कार्तिक मास की रात्रि में श्रद्धापूर्वक शिवजी के समीप दीपमाला समर्पित करता है, उसके चढ़ाये गए वे दीप शिवलिंग के सामने जितने समय तक जलते हैं, उतने हजार युगों तक दाता स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है।

#लिंगपुराण के अनुसार
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"कार्तिके मासि यो दद्याद्धृतदीपं शिवाग्रतः।
संपूज्यमानं वा पश्येद्विधिना परमेश्वरम्।।"

अर्थात 👉 जो कार्तिक महिने में शिवजी के सामने घृत का दीपक समर्पित करता है अथवा विधान के साथ पूजित होते हुए परमेश्वर का दर्शन श्रद्धापूर्वक करता है, वह ब्रह्मलोक को जाता है।

"यो दद्याद्धृतदीपं च सकृल्लिंगस्य चाग्रतः।
स तां गतिमवाप्नोति स्वाश्रमैर्दुर्लभां रिथराम्।।"

अर्थात 👉 जो शिव के समक्ष एक बार भी घृत का दीपक अर्पित करता है, वह वर्णाश्रमी लोगों के लिये दुर्लभ स्थिर गति प्राप्त करता है।

"आयसं ताम्रजं वापि रौप्यं सौवर्णिकं तथा।
शिवाय दीपं यो दद्याद्विधिना वापि भक्तितः।।
सूर्यायुतसमैः श्लक्ष्णैर्यानैः शिवपुरं व्रजेत्।।"

अर्थात 👉 जो विधान के अनुसार भक्तिपूर्वक लोहे, ताँबे, चाँदी अथवा सोने का बना हुआ दीपक शिव को समर्पित है, वह दस हजार सूर्यों के सामान देदीप्यमान विमानों से शिवलोक को जाता है।

#अग्निपुराण के 200वे अध्याय के अनुसार
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👉जो मनुष्य देवमन्दिर अथवा ब्राह्मण के गृह में एक वर्ष दीपदान करता है, वह सबकुछ प्राप्त कर लेता है।

👉 कार्तिक में दीपदान करने वाला स्वर्गलोक को प्राप्त होता है।

👉 दीपदान से बढ़कर न कोई व्रत है, न था और न होगा ही।

👉 दीपदान से आयु और नेत्रज्योति की प्राप्ति होती है।

👉 दीपदान से धन और पुत्रादि की प्राप्ति होती है।

👉 दीपदान करने वाला सौभाग्ययुक्त होकर स्वर्गलोक में देवताओं द्वारा पूजित होता है।

👉 एकादशी को दीपदान करने वाला स्वर्गलोक में विमान पर आरूढ़ होकर प्रमुदित होता है।

#पाँच दिन जरूर जरूर करें दीपदान
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अगर किसी विशेष कारण से कार्तिक में प्रत्येक दिन आप दीपदान करने में असमर्थ हैं तो पांच विशेष दिन जरूर करें।

पद्मपुराण, उत्तरखंड में स्वयं महादेव कार्तिकेय को दीपावली, कार्तिक कृष्णपक्ष के पाँच दिन में दीपदान का विशेष महत्व बताते हैं:

"कृष्णपक्षे विशेषेण पुत्र पंचदिनानि च
पुण्यानि तेषु यो दत्ते दीपं सोऽक्षयमाप्नुयात्"

अर्थात 👉 बेटा! विशेषतः कृष्णपक्ष में 5 दिन ( रमा एकादशी से दीपावली तक ) बड़े पवित्र हैं। उनमें जो भी दान किया जाता है, वह सब अक्षय और सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है।

"तस्माद्दीपाः प्रदातव्या रात्रावस्तमते रवौ
गृहेषु सर्वगोष्ठेषु सर्वेष्वायतनेषु च
देवालयेषु देवानां श्मशानेषु सरस्सु च
घृतादिना शुभार्थाय यावत्पंचदिनानि च
पापिनः पितरो ये च लुप्तपिंडोदकक्रियाः
तेपि यांति परां मुक्तिं दीपदानस्य पुण्यतः"

रात्रि में सूर्यास्त हो जाने पर घर में, गौशाला में, देववृक्ष के नीचे तथा मन्दिरों में दीपक जलाकर रखना चाहिए। देवताओं के मंदिरों में, शमशान में और नदियों के तट पर भी अपने कल्याण के लिए घृत आदि से पाँच दिनों तक दीप जलाने चाहिए। ऐसा करने से जिनके श्राद्ध और तर्पण नहीं हुए हैं, वे पापी पितर भी दीपदान के पुण्य से परम मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
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*वैदिक संस्कार संचार सीहोर*
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 #दीपावली तिथि मुहूर्त एवं महत्व_इस वर्ष दीपावली की तिथि को लेकर लोगों के मन में भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि आखिरकार दी...
18/10/2025

#दीपावली तिथि मुहूर्त एवं महत्व

_इस वर्ष दीपावली की तिथि को लेकर लोगों के मन में भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि आखिरकार दीवाली कब मनाई जाए। लगातार लोगों के मन में संशय बना हुआ है कि इस बार दीपावली 20 अक्टूबर को मनाई जाए या फिर 21 अक्टूबर को। दीपावली की तारीख को लेकर भ्रम की स्थिति इसलिए बनी हुई है क्योंकि इस वर्ष कार्तिक अमावस्या की तिथि एक दिन के बजाय दो दिन पड़ रही है। दीपावली की डेट को लेकर आपके मन में चल रही दुविधा को दूर करने के लिए अनुभवी, विद्वान ज्योतिषाचार्यों और देशभर के प्रमुख ज्योतिष और संस्कृत संस्थानों से बात करके आपको जानकारी दे रहे हैं।_

_सनातन धर्म में वैदिक पंचांग के आधार पर तिथियों और व्रत-त्योहारों की गणनाएं की जाती हैं। पंचांग के अनुसार प्रति वर्ष कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर प्रकाश पर्व दीपावली मनाई जाती है, किन्तु इस बार अमावस्या तिथि दो दिन है जिसकी वजह से दीपावली की तारीख को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई। यानी कार्तिक अमावस्या तिथि 20 अक्तूबर को भी है और 21 अक्टूबर को भी है।_

_सनातन धर्म में तिथियों का विशेष महत्व होता है और इनमें उदया तिथि का तो और भी अधिक महत्व होता है। सनातन धर्म में व्रत-त्योहार उदया तिथि के आधार पर ही मनाया जाता है। उदया तिथि से तात्पर्य दिन में सूर्योदय के समय जो तिथि होती है उसको ही महत्व दिया जाता है। इस तरह से कुछ लोग उदया तिथि को महत्व देते हुए दीपावली 21 अक्टूबर को मनाना ज्यादा अच्छा समझ रहे हैं। वहीं कुछ लोगों का तर्क है कि दीपावली पर लक्ष्मी पूजन सदैव प्रदोष काल से लेकर मध्य रात्रि के बीच में पड़ने वाली कार्तिक अमावस्या के दौरान मनाया जाता है, इसलिए दीपावली 20 अक्टूबर को ही मनाया जाना चाहिए। आइए इन दोनों तर्कों को ज्योतिष और मुहूर्त शास्त्र के नियमों की कसौटी में रखकर देखते हैं।_

_*क्या हैं वैदिक शास्त्र के नियम*_

_शास्त्रों में दीपावली पर लक्ष्मी पूजन सदैव अमावस्या तिथि के रहने पर और प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के बाद से लेकर देर रात तक करने का विधान होता है अर्थात अमावस्या तिथि, प्रदोष काल और निशिताकाल के मुहूर्त में दीपावली मनाना शुभ माना गया है। इस कारण से ज्योतिष शास्त्र के ज्यादातर पंडितों और विद्वानों का मनाना है कि जिस दिन कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि रहें तो प्रदोष काल से लेकर आधी रात को लक्ष्मी पूजन करना और दीपावली मनाना ज्यादा शुभ व शास्त्र सम्मत रहता है।_

_ऐसी धार्मिक मान्यता है कि मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव प्रदोष काल में ही हुआ था, जिसके चलते निशीथ काल में मां लक्ष्मी की पूजा और उनसे जुड़ी सभी प्रकार की साधनाएं आदि करना विशेष महत्व का होता है।_

#वैदिक पंचांग के अनुसार इस वर्ष अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 44 मिनट पर प्रारम्भ हो जाएगी, जो 21अक्टूबर की शाम तक रहेगी। इस तरह से दीपावली पर सभी प्रकार की वैदिक स्थितियां 20 अक्तूबर के दिन लागू रहेगी जबकि 21 अक्टूबर 2025 को अमावस्या तिथि सूर्योदय के दौरान रहेगी लेकिन समाप्ति शाम को 05 बजकर 54 मिनट पर हो जाएगी।_

_व्रत-त्योहारों की तारीखों को लेकर ज्यादातर मामलों में उदया तिथि का विशेष महत्व दिया जाता है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में अन्य चीजों और मुहूर्तों को ध्यान में रखते हुए मिलने वाली तिथि का अधिक महत्व दिया जाता है।_

_इस वजह से जिस रात्रि को प्रदोष काल से लेकर मध्य रात्रि के बीच व्याप्त रहने वाली अमावस्या तिथि को ध्यान में रखते हुए दीपावली का पर्व 20 अक्टूबर को अधिकतर विद्वान और पंडित मनाने की सलाह दे रहे हैं। इस प्रकार लक्ष्मी पूजन के साथ दीपावली 20 अक्टूबर को मनाएं।_

#लक्ष्मी पूजन मुहूर्त

_पंचांग के अनुसार प्रति वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की प्रदोषव्यापिनी अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। 20 अक्टूबर को लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए पहला शुभ मुहूर्त प्रदोष काल में ही प्राप्त हो रहा है।_

_20 अक्टूबर को प्रदोष काल शाम 05 बजकर 40 मिनट लेकर 08 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। वहीं वृषभ लग्न (दिल्ली के समयानुसार) शाम 08 बजकर 11 मिनट से लेकर रात को 10 बजकर 07 मिनट तक रहेगा। ऐसे में गृहस्थ लोग इस समय के दौरान लक्ष्मी पूजन करें।_

_*स्थिर लग्न और प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन का महत्व*_

_मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव प्रदोष काल में हुआ था और स्थिर लग्न में मां लक्ष्मी की पूजन करने से महालक्ष्मी स्थिर रहती हैं। ऐसे में दीपावली पर प्रदोष काल में पड़ने वाले वृषभ लग्न में ही महालक्ष्मी और भगवान गणेश का पूजन करना अति उत्तम रहेगा। पंचांग के अनुसार 20 अक्टूबर को वृषभ लग्न शाम को 8:11 से लेकर रात्रि 10:07 तक रहेगा। साथ ही इस समय प्रदोष काल भी मिल जाएगा। प्रदोषकाल, वृषभ लग्न और चौघड़ियां का ध्यान रखते हुए लक्ष्मी पूजन के लिए 20 अक्टूबर की शाम को 7:12 से लेकर 9:08 के बीच का समय सर्वोत्तम रहेगा। कुल मिलाकर 1 घण्टा 56 मिनट का यह मुहूर्त लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ रहेगा।_

_*🪷 "जय जय श्री राधे कृष्ण" 🪷*_

15/10/2025
12/10/2025

अहोई अष्टमी तिथि पर राधाकुंड स्नान का महत्व

_*निसंतान दंपति के लिए संतान प्राप्ति हेतु स्नान विधि एवं मुहूर्त:-*_

_अहोई अष्टमी के दिन मथुरा के गोवर्धन में स्थित राधा कुंड में स्नान करने का विशेष महत्व माना गया है। राधा कुंड गोवर्धन परिक्रमा का एक महत्वपूर्ण भाग है। अहोई अष्टमी के दिन शादीशुदा जोड़े इस कुंड में डुबकी लगाते हैं और राधा रानी से संतान की कामना करते हैं। ऐसे में जानते हैं कि इस वर्ष राधा कुंड में स्नान का शुभ मुहूर्त क्या रहने वाला है।_

_*राधा कुंड स्नान शुभ मुहूर्त:-*_

_कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 13 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 24 मिनट पर शुरू हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन 14 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 9 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के राधा अनुसार कुंड स्नान मुहूर्त - रात 11 बजकर 41 मिनट से रात 12 बजकर 30 मिनट तक राधा कुंड स्नान सोमवार‌ 13 अक्टूबर को किया जाएगा।_

_*इस तरह करें स्नान:-*_

_संतान प्राप्ति की मनोकामना के लिए स्नान करने वाले जोड़े पूरे दिन व्रत करते हैं और मध्य रात्रि यानी निशिता काल में कुंड में स्नान करते हैं। इस दौरान कच्चा सफेद कद्दू जिसे पेठा कहा जाता है, को एक लाल कपड़े में बांधकर अपने हाथों में रखते हैं। राधा रानी का ध्यान करते हैं और मनोकामना पूर्ति की कामना करते हैं। इसके बाद यह पेठा राधा रानी को अर्पित किया जाता है।_

_*जय श्री राधे कृष्ण...🙏*_

🙏🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🙏

12/10/2025

🪷 अहोई अष्टमी महत्व एवं कथा 🪷

नारदपुराण के अनुसार सभी मासों में श्रेष्ठ कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कर्काष्टमी नामक व्रत का विधान बताया गया है।

इसे लोकभाषा में अहोई आठें या अहोई अष्टमी भी कहा जाता है। अहोई का शाब्दिक अर्थ है-अनहोनी को होनी में बदलने वाली माता।

इस संपूर्ण सृष्टि में अनहोनी या दुर्भाग्य को टालने वाली आदिशक्ति देवी पार्वती हैं, इसलिए इस दिन माता पार्वती की पूजा-अर्चना अहोई माता के रूप में की जाती है। *अहोई अष्टमी का व्रत कल 13 अक्टूबर, सोमवार के दिन रखा जाएगा।* इस बार अहोई अष्टमी की पूजा पर्व आद्रा व पुनर्वसु नक्षत्र के शुभ संयोग में मनाया जाएगा
इस व्रत को कार्तिक माह में करवा चौथ के चौथे दिन और दीपावली से आठ दिन पहले किया जाता है।

अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त: शाम 05:53 बजे से 07:08 बजे तक, (अवधि - 01 घण्टा 15 मिनट्स)
तारों को देखने के लिए संध्या का समय: शाम 06:17 बजे
अहोई अष्टमी पर चन्द्रोदय समय: रात्रि 11:20 बजे
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 13 अक्टूबर को दोपहर 12:24 बजे से
अष्टमी तिथि समाप्त - 14 अक्टूबर को सुबह 11:09 बजे तक

*अहोई अष्टमी व्रत का महत्व*

अहोई अष्टमी व्रत का महत्व बहुत ही विशेष माना गया है। इस व्रत को करने से आपकी संतान खुशहाल होने के साथ ही दीर्घायु भी होती हैं। हर प्रकार के रोगों से उनकी रक्षा होता है और स्‍याऊं माता बच्‍चों का भाग्‍य बनाती हैं और उनको हर बुरी नजर से बचाती हैं। इस व्रत को करने से आपके घर में सुख समृद्धि बढ़ती हैं और आपके घर में बच्‍चे करियर में खूब तरक्‍की करते हैं। यह व्रत सूर्योदय से लेकर सूर्यास्‍त तक रखा जाता है और बिना अन्‍न जल ग्रहण तारों को जल अर्पित करने के बाद ही यह व्रत खोला जाता है।

*अहोई अष्टमी पूजाविधि*

अहोई अष्टमी की पूजा का विधान सांयकाल प्रदोष वेला में करना श्रेष्ठ रहता है। दिन भर उपवास रखने के बाद संध्याकाल में सूर्यास्त होने के उपरांत जब आसमान में तारों का उदय हो जाए तभी पूजा आरंभ करें और रात्रि में चंद्रोदय होने पर चन्द्रमा को अर्घ्यदान करना चाहिए। इस दिन व्रत रखने वालों को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद घर की एक दीवार को अच्छे से साफ करें और इस पर अहोई माता की तस्वीर बनाएं। इस तस्वीर को बनाने के लिए गेरू या कुमकुम का उपयोग करें। इसके बाद घी का दीपक अहोई माता की तस्वीर के सामने जलाएं। फिर पकवान जैसे हलवा, पूरी, मिठाई, आदि को भोग अहोई माता को लगाएं। इसके बाद अहोई माता की कथा पढ़ें और उनके मंत्रों का जप करते हुए उनसे प्रार्थना करें कि अहोई माता आपके बच्चों की हमेशा रक्षा करें।

*अहोई अष्टमी के मंत्र*
अहोई अष्टमी से 45 दिनों तक 'ॐ पार्वतीप्रियनंदनाय नमः' का 11 माला जाप करने से संतान से संबंधित सारे कष्ट मिट जाते हैं।

*अहोई अष्टमी व्रत की कथा*

अहोई अष्टमी पर्व से सम्बंधित विभिन्न पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं। पूजा करते समय स्त्रियाँ एक दूसरे को कथाएँ सुनाती हैं। अहोई अष्टमी से सम्बंधित प्रचलित दो कथाएँ निम्नलिखित हैं:

*कथा 1:-* प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएँ थीं। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली के अवसर पर ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएँ मिट्टी लाने जंगल में गईं तो ननद भी उनके साथ जंगल की ओर चल पड़ी। साहूकार की बेटी जहाँ से मिट्टी ले रही थी उसी स्थान पर स्याहु (साही) अपने सात बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी खोदते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर गया। स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बाँधूँगी।

स्याहू की यह बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक एक करके विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे थे वह सभी सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।

सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती है। वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और इसलिए वह साँप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहाँ आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है। इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है। छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुँचा देती है।

स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहुएँ होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र की वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई अष्टमी का अर्थ एक प्रकार से यह भी होता है “अनहोनी को होनी बनाना” जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया।

*कथा 2:-* दंतकथा के अनुसार एक बार एक औरत अपने 7 पुत्रों के साथ एक गाँव में रहती थी। एक दिन कार्तिक महीने में वह औरत मिट्टी खोदने के लिए जंगल में गई। वहाँ पर उसने गलती से एक पशु के शावक की अपनी कुल्हाड़ी से हत्या कर दी।

उस घटना के बाद उस औरत के सातों पुत्र एक के बाद एक मृत्यु को प्राप्त हो गए। इस घटना से दुखी हो कर उस औरत ने अपनी कहानी गाँव की हर एक औरत को सुनाई। एक बड़ी औरत ने उस औरत को यह सुझाव दिया की वह माता अहोई अष्टमी की आराधना करे। पशु के शावक की सोते हुए हत्या के पश्चाताप के लिए उस औरत ने शावक का चित्र बनाया और माता अहोई अष्टमी के चित्र के साथ रख कर उनकी पूजा करने लगी। उस औरत ने 7 वर्षों तक अहोई अष्टमी का व्रत रखा और आखिर में उसके सातों पुत्र फिर से जीवित हो गए।

*अहोई अष्टमी की आरती*

जय अहोई माता जय अहोई माता ।

तुमको निसदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता ।।

ब्रम्हाणी रुद्राणी कमला तू ही है जग दाता ।

जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता ।।

तू ही है पाताल बसंती तू ही है सुख दाता ।

कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता ।।

जिस घर थारो वास वही में गुण आता ।

कर न सके सोई कर ले मन नहीं घबराता ।।

तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पता ।

खान पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ।।

शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता ।

रतन चतुर्दश तोंकू कोई नहीं पाता ।।

श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता ।

उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता ।।

 #शरद  #पूर्णिमा पर खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा बहुत महत्वपूर्ण है आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा और म...
06/10/2025

#शरद #पूर्णिमा पर खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा बहुत महत्वपूर्ण है आइए जानते हैं इसके पीछे की कथा और महत्व ।

शरद पूर्णिमा और #खीर का महत्व
1. #अमृत वर्षा: मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है और उसकी किरणों से अमृत की वर्षा होती है। इसी अमृत का अंश पाने के लिए खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है ।
2. #चंद्रमा की सोलह कलाएं: शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है, जिसमें अमृत प्रकट हुआ था। चंद्रमा की किरणें इस दिन विशेष ऊर्जा और पोषक तत्व लेकर आती हैं ।
3. #मां लक्ष्मी जी की पूजा: शरद पूर्णिमा पर देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है, और उन्हें खीर का भोग लगाया जाता है। इसे घर में सुख-समृद्धि लाने वाला माना जाता है ।
4. #भगवान श्रीकृष्ण और रासलीला: शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रासलीला रची थी, जो आध्यात्मिक प्रेम और भक्ति का प्रतीक है ।

#खीर बनाने और रखने की विधि
- #चांदी के बर्तन में: अक्सर खीर को चांदी के बर्तन में चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है ।
- #चंद्रमा की रोशनी में: खीर को रात में चंद्रमा की सीधी किरणों में रखना चाहिए, ताकि उसमें अमृत की बूंदें समा जाएं ।
- #प्रसाद: अगले दिन इस खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है, जिसे स्वास्थ्यवर्धक और आध्यात्मिक रूप से लाभकारी माना जाता है ।

वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण
- #वैज्ञानिक दृष्टि: दूध में लैक्टिक एसिड होता है, और चंद्रमा की रोशनी इसमें मौजूद बैक्टीरिया को प्रभावित कर सकती है ।
- #धार्मिक मान्यता: चंद्रमा की किरणें इस खीर को औषधीय गुणों से भर देती हैं, जो स्वास्थ्य और आध्यात्मिक लाभ देती है ।

शरद पूर्णिमा की यह परंपरा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि इसमें स्वास्थ्य और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम भी है ।

 #चन्द्र  #ग्रहण  #विशेषमिति भाद्रपद शुक्ल १५ रविवार पूर्णिमा शतभिषा एवं पूर्वा भाद्रपदा नक्षत्र कुम्भराशि पर दिनांक ७ स...
06/09/2025

#चन्द्र #ग्रहण #विशेष

मिति भाद्रपद शुक्ल १५ रविवार पूर्णिमा शतभिषा एवं पूर्वा भाद्रपदा नक्षत्र कुम्भराशि पर दिनांक ७ सितम्बर २०२५ ई. में खग्रास चन्द्रग्रहण है। 🌖ग्रहण का स्पर्श रात ९/५२ बजे होगा एवं 🌔मोक्ष रात १/२१ बजे होगा। कुल 🌑ग्रहण ३ घण्टा २९ मिनिट का है।

🌚ग्रहण का सूतक (वेध)
दिनांक ७सितम्बर २०२५ई. में दिवा १२/५२ बजे से लगेगा।
बालक, वृद्ध एवं रोगियों के लिए शाम ६/५२ बजे लगेगा।

🌚ग्रहण का राशिफल :-
यह ग्रहण शतभिषा, पूर्वा भाद्रपदा नक्षत्र एवं कुम्भ
राशि वालों के विशेष अनिष्ट कारक है। मेष, कर्क, वृश्चिक एवं धनु राशि वालों को शुभ रहेगा। मिथुन, कन्या एवं तुला राशि वालों को मध्यम रहेगा। वृष, सिंह, मकर एवं मीन राशि वालों को अधम फल रहेगा।

🌚ग्रहण काले शयने कृते रोगो मूत्रे दारिद्यं पुरीषै। कृमि मैथुने ग्राम सूकरोभ्यंगे कुष्ठी भोजने नरकइति ।।
(ग्रहण काल में शयन करने से रोग, मूत्र करै तो दरिद्री, मलत्याग करै तो कीट, मैथुन करै तो ग्राम सूअर, उबटना करै तो कुष्ठी, भोजन करै तो नरक गामी होता है।)

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सभी देशवासियों को     श्रीराधा प्राकट्योत्सव की            मङ्गलमय शुभकामनाएं.!          भगवान श्रीकृष्ण की प्रिया राधा ...
31/08/2025

सभी देशवासियों को
श्रीराधा प्राकट्योत्सव की
मङ्गलमय शुभकामनाएं.!

भगवान श्रीकृष्ण की प्रिया राधा रानी का जन्म भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था, इसलिए इस दिन को राधा अष्टमी के नाम से जानते हैं।

कृष्ण भक्तों के लिए जन्माष्टमी के बाद राधा अष्टमी दूसरा सबसे बड़ा उत्सव होता है। इस दिन राधा रानी का विधि विधान से प्रकाट्य दिवस मनाते हैं। श्रीकृष्ण मंदिरों में राधा संग भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। राधाजी जन्म भाद्रपद शुक्ल अष्टमी को मथुरा के रावल गांव में जन्मीं थीं। उनकी माता कीर्ति और पिता वृषभानु जी थे।

राधाष्टमी का महत्व-
राधाष्टमी के दिन राधाजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। राधाष्टमी का व्रत करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। महिलाओं को अखंड सौभाग्य मिलता है। घर में सुख और समृद्धि आती है। और परिवार में लक्ष्मी का वास होता है।

भगवान श्रीकृष्ण राधाजी के इष्टदेव हैं, तो वहीं राधाजी श्रीकृष्ण को अपने प्राणों से प्रिय हैं। राधारमण कहे जाने वाले श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि राधा जैसा कोई नहीं है, करोड़ों महालक्ष्मी भी नहीं।

राधा और श्रीकृष्ण के बीच निश्छल प्रेम ही तो है, जिससे मंत्रमुग्ध होकर भक्त युगों से राधाकृष्ण राधाकृष्ण का जप करते आ रहे हैं। कहा जाता है कि राधा तो भगवान कृष्ण की आत्मा हैं। राधाष्टमी का व्रत करने से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। संतान के सुखी जीवन के लिए भी यह व्रत किया जाता है।

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