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हल्दी बुढ़ापे का सहारा है! Curcumin: A Golden Approach to Healthy Aging: A Systematic Review of the Evidence
06/12/2025

हल्दी बुढ़ापे का सहारा है!
Curcumin: A Golden Approach to Healthy Aging: A Systematic Review of the Evidence

11/10/2025

रक्तसूतशेखर रस है जादुई औषध - जीर्ण ज्वर में दिखाता चमत्कार

रक्तसूतशेखर रस का प्रयोग आयुष ग्राम चित्रकूट में जीर्णज्वर (Mild fever) या बिगड़े बुखार में बहुश: किया जाता है। शास्त्र लिखता है- ‘जीर्णज्वरमथारुचिम्।’ अनुपान विशेषेण ... ... ...।

रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा., गिलोयसत्व २५० मि.ग्रा. और भुना जीरा चूर्ण २५० मि.ग्रा. अच्छी तरह घोंटकर १ मात्रा। ऐसी १-१ मात्रा सुबह-शाम शहद के साथ देना है। ७ दिन तक लगातार सेवन कराने से हमने अनेकों जीर्णज्वर रोगियों को मुक्त किया है।

वाराणसी से सेवानिवृत्त हुये एक उपजिलाधिकारी की पत्नी को ६ माह से जीर्णज्वर था। बीएचयू से लेकर अन्यत्र भी एलोपैथिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा करायी। फिर आयुष ग्राम चित्रकूट लेकर आये। पित्तवृद्धि के स्पष्ट लक्षण दिखाई पड़े। रक्तसूतशेखर रस का उक्त सहपान के प्रयोग से १० दिन में ही वह रुग्णा का ज्वर मिट गया।

अरुचि में- रक्तसूतशेखर रस का अरुचि (Anorexia) में बहुत भूमिका है। इसमें शंख भस्म, ताम्र भस्म के साथ-साथ लौह भस्म का योग है। जो अरुचि को मिटाता है। वस्तुत: अरुचि ‘रस प्रदोषज’ विकार है। इस रोग की निवृत्ति हेतु कफ दोष का संतुलन करना और रस प्रदुष्टि को हटाना आवश्यक है।

रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा., भुना जीरा चूर्ण २५० मि.ग्रा. तथा बड़ी इलायची चूर्ण २५० मि.ग्रा. मिलाकर शहद से चटाते हैं। निम्बादि कषाय भी देते हैं। शीघ्र ही अरुचि मिटने लगती है। औषधि प्रयोग की अवधि रोग और रोगी के अनुसार किया जाना चाहिए।

सोम रोग में रक्तसूतशेखर रस -

सोम रोग में मूत्र गंधरहित, श्वेत और शीतल होता है। मूत्र मार्ग से शरीर के पोषक तत्व निकलने लगते हैं जिससे रोगी दिनों दिन कमजोर होता जाता है। यह रोग ‘अग्निव्यापार क्रम’ की विकृति से होता है। आयुष ग्राम में चन्द्रप्रभा वटी २५० मि.ग्रा., रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा. मिलाकर शहद के साथ दिन में २ बार सेवन कराया गया। भोजन के पूर्व फलत्रिकादि कषाय घन की ५००-५०० मि.ग्रा. दी गयी। यदि रोगी कृश हो गया है तो जीरा चूर्ण (भुना) ५०० मि.ग्रा., कपिकच्छु बीज चूर्ण १ ग्राम और त्रिफला चूर्ण १ ग्राम मिलाकर देते हैं। इन प्रयोगों से ४० दिन में सोमरोग जड़ से मिट जाता है।

खून की कमी में- ज्वर या जीर्ण बीमारियों से ग्रस्त होने के पश्चात् खून की कमी पायी जाती है जिससे सांस फूलना, कमजोरी, भूख न लगना आदि समस्यायें होती हैं। ऐसे में रक्तसूतशेखर रस चमत्कार दिखाता है। रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा., द्राक्षावलेह के साथ सुबह-शाम सेवन करने से ७ दिन में हेमोग्लोबिन बढ़ने के परिणाम मिलते हैं तथा कमजोरी तो २४ घण्टे में दूर होने लगती है।

वात-पित्तज शिरो रोग में- ऐसा शिर दर्द जिसमें आँखों में जलन, शिर में गर्मी, पेट में जलन होती है। इस समस्या में रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा. और अविपत्तिकर चूर्ण ४ ग्राम मिलाकर एक मात्रा बनाकर ऐसी मात्रा दिन में २ बार १-१ कप गोदुग्ध के अनुपान से दें।

भोजन में- मूँग की दाल, चावल की खिचड़ी बनाकर गोघृत डालकर दें। इस औषध योग से ऐसे शिर दर्द में बहुत लाभ होता है।

अनिद्रा में- रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा., स्वर्णवंग १२५ मि.ग्रा., ब्राह्मीघृत १ चम्मच में मिलाकर दिन में २ बार चाटें। भोजन सुपाच्य ही लेना चाहिए। कुछ दिन सेवन से रोगी की अनिद्रा तो दूर ही होती है तथा कमजोरी भी दूर होती है।

एपेण्डिक्स में जादुई असर- रक्तसूतशेखर रस, मुक्ता पिष्टी, प्रवाल भस्म, स्वर्णवंग और त्रिफला गुग्गुलु मिलाकर एपेण्डिक्स (आंत्रपुच्छशोथ) में सुबह-शाम सेवन कराते हैं।

सोते समय- नारायण चूर्ण या एरण्ड तैल आंत्रशोधन हेतु देते हैं।

भोजन में- खिचड़ी, दलिया, लौकी, परवल, तुरई, टिण्डा दें। पानी पका हुआ सेवन करना चाहिए, आराम करें। ७ दिन में एपेण्डिक्स ठीक करने के आयुष ग्राम चित्रकूट में प्रमाण हैं।

25/09/2025
23/09/2025

आज के मरीज़ को देखकर अक्सर लगता है कि बीमारी उसके शरीर में नहीं, बल्कि उसकी भूमिकाओं में है।
सुबह से लेकर रात तक वह कई किरदारों में बंटा रहता है।
एक ही इंसान पिता भी है, बेटा भी, पति भी, नौकरीपेशा भी और समाज का जिम्मेदार सदस्य भी।
भूमिकाएँ नई नहीं हैं, इंसान हमेशा से इन्हें निभाता आया है।
लेकिन फर्क यह है कि पहले इन भूमिकाओं की गति धीमी थी, सीमाएँ स्पष्ट थीं और अपेक्षाएँ सीमित।
आज वही भूमिकाएँ विज्ञान और तकनीक की रफ्तार में इतनी तेज़ हो चुकी हैं कि मन और शरीर उस बोझ को झेल ही नहीं पा रहे।
पुराने समय के समाज की एक खासियत थी - लोगों को सीमाओं का ज्ञान था,ये भी कह सकते हैं,कम एक्सप्लोर किया था ।
दिन का काम दिन में ही सिमट जाता था, रात विश्राम के लिए होती थी।
गाँव का दायरा छोटा था, रिश्तों की अपेक्षाएँ तय थीं।
तुलना बहुत कम थी और जीवन का तालमेल एक निश्चित लय में चलता था।
भूमिकाओं के बीच खाली जगह थी, जिससे मन और शरीर को संतुलन मिल जाता था।
आज का समय उस खालीपन को निगल चुका है।
ऑफिस घर तक पीछा करता है, ईमेल और व्हाट्सएप हर वक्त टोकते हैं।
बच्चे माता–पिता से पहले से कहीं ज़्यादा उम्मीद करते हैं, कॉम्पेरिजन कल्चर उन्हें और माँग करने के लिए उकसाता है।
पत्नी चाहती है कि पति इतना शक्तिशाली हो कि PMO हिला दे और साथ ही पल्लू में बैठा रहे।
पति चाहता है बीबी पैसा भी कमा ले पर मम्मी की तरह सारा काम और परिवार भी मैनेज कर ले ।
पर यह संभव नहीं है।
हर चीज़ अपनी क़ीमत लेती है।
शक्ति और सामर्थ्य की कीमत है दूरी और व्यस्तता, और निकटता की कीमत है सीमित सामर्थ्य।
इंसान दोनों को एक साथ जी ही नहीं सकता।
हम अक्सर नेताओं, बड़े व्यापारियों या अधिकारियों के बच्चों को देखकर कहते हैं कि उन्हें सब मिल गया।
पर भूल जाते हैं कि ऐसे बच्चों को अपने पिता से मिलने के लिए इंतज़ार करना पड़ता था, कभी-कभी तो अपॉइंटमेंट या परमिशन तक लेनी पड़ती थी।
जो चमक हमें बाहर से दिखती है, उसकी एक छुपी हुई कीमत होती है।
जीवन में हर चीज़ अपनी कीमत लेती है।
यहीं से शुरू होता है Role Conflict और Role Strain।
एक भूमिका दूसरी से टकराती है, और एक ही भूमिका में उलझी अपेक्षाएँ इंसान को खींचती हैं।
दिमाग़ लगातार कई दिशाओं में भागता रहता है।
तनाव हार्मोन (cortisol) हर समय ऊपर रहते हैं।
नींद टूटती है, मन चिड़चिड़ा हो जाता है और शरीर साइकोसोमैटिक बीमारियों में फँसने लगता है।
धीरे-धीरे यही दबाव एंजाइटी और डिप्रेशन में बदलता है।
डॉक्टर के सामने बैठा मरीज़ कहता है, “दवा दे दीजिए, सब ठीक हो जाए”, लेकिन दवा उसकी असली बीमारी को छू भी नहीं पाती।
पुराने समाज की ताक़त यही थी कि लोग मानते थे इंसान सब कुछ पूरा नहीं कर सकता।
आज हमने वही सीमा भुला दी है।
अब हर जगह परफेक्शन चाहिए।
लेकिन यही परफेक्शन सबसे बड़ी बीमारी बन गई है।
मानसिक शांति उसी को मिलेगी जो यह स्वीकार कर सके कि हर भूमिका पूरी तरह निभाना संभव नहीं।
कभी-कभी अधूरा छोड़ देना भी सेहत का हिस्सा है।
दवा से पहले यह समझ ही सबसे बड़ी चिकित्सा है।
क्योंकि शरीर की असली चिकित्सा वहीं से शुरू होती है जहाँ मन यह मान लेता है -
“मैं सब कुछ नहीं कर सकता, और यह ठीक है।”

Source : pradeep chaudhary

16/09/2025
08/07/2025
Ultra-processed food exposure and adverse health outcomesअत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (UPF) का अधिक सेवन मोटापे के ...
26/02/2025

Ultra-processed food exposure and adverse health outcomes
अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (UPF) का अधिक सेवन मोटापे के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है, क्योंकि ये पोषण में कमतर, उच्च कैलोरी युक्त होते हैं और चयापचय व भूख नियंत्रण पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
--Source, BMJ, 2024

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