11/10/2025
रक्तसूतशेखर रस है जादुई औषध - जीर्ण ज्वर में दिखाता चमत्कार
रक्तसूतशेखर रस का प्रयोग आयुष ग्राम चित्रकूट में जीर्णज्वर (Mild fever) या बिगड़े बुखार में बहुश: किया जाता है। शास्त्र लिखता है- ‘जीर्णज्वरमथारुचिम्।’ अनुपान विशेषेण ... ... ...।
रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा., गिलोयसत्व २५० मि.ग्रा. और भुना जीरा चूर्ण २५० मि.ग्रा. अच्छी तरह घोंटकर १ मात्रा। ऐसी १-१ मात्रा सुबह-शाम शहद के साथ देना है। ७ दिन तक लगातार सेवन कराने से हमने अनेकों जीर्णज्वर रोगियों को मुक्त किया है।
वाराणसी से सेवानिवृत्त हुये एक उपजिलाधिकारी की पत्नी को ६ माह से जीर्णज्वर था। बीएचयू से लेकर अन्यत्र भी एलोपैथिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा करायी। फिर आयुष ग्राम चित्रकूट लेकर आये। पित्तवृद्धि के स्पष्ट लक्षण दिखाई पड़े। रक्तसूतशेखर रस का उक्त सहपान के प्रयोग से १० दिन में ही वह रुग्णा का ज्वर मिट गया।
अरुचि में- रक्तसूतशेखर रस का अरुचि (Anorexia) में बहुत भूमिका है। इसमें शंख भस्म, ताम्र भस्म के साथ-साथ लौह भस्म का योग है। जो अरुचि को मिटाता है। वस्तुत: अरुचि ‘रस प्रदोषज’ विकार है। इस रोग की निवृत्ति हेतु कफ दोष का संतुलन करना और रस प्रदुष्टि को हटाना आवश्यक है।
रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा., भुना जीरा चूर्ण २५० मि.ग्रा. तथा बड़ी इलायची चूर्ण २५० मि.ग्रा. मिलाकर शहद से चटाते हैं। निम्बादि कषाय भी देते हैं। शीघ्र ही अरुचि मिटने लगती है। औषधि प्रयोग की अवधि रोग और रोगी के अनुसार किया जाना चाहिए।
सोम रोग में रक्तसूतशेखर रस -
सोम रोग में मूत्र गंधरहित, श्वेत और शीतल होता है। मूत्र मार्ग से शरीर के पोषक तत्व निकलने लगते हैं जिससे रोगी दिनों दिन कमजोर होता जाता है। यह रोग ‘अग्निव्यापार क्रम’ की विकृति से होता है। आयुष ग्राम में चन्द्रप्रभा वटी २५० मि.ग्रा., रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा. मिलाकर शहद के साथ दिन में २ बार सेवन कराया गया। भोजन के पूर्व फलत्रिकादि कषाय घन की ५००-५०० मि.ग्रा. दी गयी। यदि रोगी कृश हो गया है तो जीरा चूर्ण (भुना) ५०० मि.ग्रा., कपिकच्छु बीज चूर्ण १ ग्राम और त्रिफला चूर्ण १ ग्राम मिलाकर देते हैं। इन प्रयोगों से ४० दिन में सोमरोग जड़ से मिट जाता है।
खून की कमी में- ज्वर या जीर्ण बीमारियों से ग्रस्त होने के पश्चात् खून की कमी पायी जाती है जिससे सांस फूलना, कमजोरी, भूख न लगना आदि समस्यायें होती हैं। ऐसे में रक्तसूतशेखर रस चमत्कार दिखाता है। रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा., द्राक्षावलेह के साथ सुबह-शाम सेवन करने से ७ दिन में हेमोग्लोबिन बढ़ने के परिणाम मिलते हैं तथा कमजोरी तो २४ घण्टे में दूर होने लगती है।
वात-पित्तज शिरो रोग में- ऐसा शिर दर्द जिसमें आँखों में जलन, शिर में गर्मी, पेट में जलन होती है। इस समस्या में रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा. और अविपत्तिकर चूर्ण ४ ग्राम मिलाकर एक मात्रा बनाकर ऐसी मात्रा दिन में २ बार १-१ कप गोदुग्ध के अनुपान से दें।
भोजन में- मूँग की दाल, चावल की खिचड़ी बनाकर गोघृत डालकर दें। इस औषध योग से ऐसे शिर दर्द में बहुत लाभ होता है।
अनिद्रा में- रक्तसूतशेखर रस १२५ मि.ग्रा., स्वर्णवंग १२५ मि.ग्रा., ब्राह्मीघृत १ चम्मच में मिलाकर दिन में २ बार चाटें। भोजन सुपाच्य ही लेना चाहिए। कुछ दिन सेवन से रोगी की अनिद्रा तो दूर ही होती है तथा कमजोरी भी दूर होती है।
एपेण्डिक्स में जादुई असर- रक्तसूतशेखर रस, मुक्ता पिष्टी, प्रवाल भस्म, स्वर्णवंग और त्रिफला गुग्गुलु मिलाकर एपेण्डिक्स (आंत्रपुच्छशोथ) में सुबह-शाम सेवन कराते हैं।
सोते समय- नारायण चूर्ण या एरण्ड तैल आंत्रशोधन हेतु देते हैं।
भोजन में- खिचड़ी, दलिया, लौकी, परवल, तुरई, टिण्डा दें। पानी पका हुआ सेवन करना चाहिए, आराम करें। ७ दिन में एपेण्डिक्स ठीक करने के आयुष ग्राम चित्रकूट में प्रमाण हैं।