Dr Bhavya Shikha

Dr Bhavya Shikha Dr. Bhavya Shikha (BHMS, MD) Ladies & Child specialist.

27/07/2022
21/04/2022
Weight Loss: कैसे पानी पीकर घटा सकते हैं वजन और क्या हैं इसके फायदे-नुकसान, जानें👉फास्टिंग यानी उपवास रखने का संबंध सिर्...
06/04/2021

Weight Loss: कैसे पानी पीकर घटा सकते हैं वजन और क्या हैं इसके फायदे-नुकसान, जानें

👉फास्टिंग यानी उपवास रखने का संबंध सिर्फ व्रत त्योहार से नहीं है, बल्कि इन दिनों बड़ी संख्या में लोग तेजी से वजन घटाने (Rapid Weight Loss) के लिए खाना नहीं खाते और वॉटर फास्टिंग (Water Fasting) करते हैं. इसमें पानी के अलावा और किसी चीज का सेवन नहीं किया जाता. वैसे तो वेट लॉस के लिए कुछ समय तक सिर्फ पानी पीने का प्लान काफी पॉपुलर है लेकिन फायदों के साथ-साथ इसके कुछ नुकसान भी हैं. साथ ही कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें इस ट्रेंड को बिल्कुल फॉलो नहीं करना चाहिए.

वॉटर फास्टिंग क्या है?
निर्जल उपवास में पानी तक नहीं पीया जाता, फलाहार वाले उपवास में सिर्फ फलों का सेवन किया जाता है. उसी तरह से ये वॉटर फास्टिंग यानी पानी पीकर किया जाने वाला उपवास है जिसमें व्यक्ति भोजन के नाम पर कुछ भी खा पी नहीं सकता (No food), सिर्फ पानी पीता है. हेल्थ वेबसाइट मेडिकल न्यूज टुडे की मानें तो आमतौर पर वॉटर फास्टिंग 1 दिन से लेकर 3 दिन तक किया जा सकता है क्योंकि इससे ज्यादा समय तक बिना भोजन के रहना शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है.

अगर आपकी उम्र 18 साल से कम या 60 साल से अधिक है तो आपको वॉटर फास्टिंग नहीं करनी चाहिए. इसके अलावा अगर आप गर्भवती हैं, बच्चे को अपना दूध पिला रही हैं, अगर आप अंडरवेट हैं, हृदय रोग, टाइप 1 डायबिटीज के मरीज हैं या फिर किसी बीमारी के लिए दवा खा रहे हैं तो आपको वॉटर फास्टिंग बिल्कुल नहीं करना चाहिए.

बाल गिरने की समस्या का होमियोपैथी मे सबसे कारगर और सस्ती इलाज.... 100% कारगर
19/03/2020

बाल गिरने की समस्या का होमियोपैथी मे सबसे कारगर और सस्ती इलाज.... 100% कारगर

होमियोपैथी से पुर्ण इलाज, नजदीकी अच्छे होमियोपैथ डाक्टर से मिले
10/03/2020

होमियोपैथी से पुर्ण इलाज, नजदीकी अच्छे होमियोपैथ डाक्टर से मिले

शरीर से यूट्रस निकाल दिया जाए तो क्या बदलाव आता हैसाल 2014 में अमेरिका में हुई एक स्टडी बताती है कि हिस्टरेक्टॉमी के बाद...
05/01/2020

शरीर से यूट्रस निकाल दिया जाए तो क्या बदलाव आता है

साल 2014 में अमेरिका में हुई एक स्टडी बताती है कि हिस्टरेक्टॉमी के बाद लगभग 12 प्रतिशत महिलाओं को पेल्विक ऑर्गन सर्जरी की भी जरूरत पड़ी. भारत में इस तरह का कोई शोध सामने नहीं आया है लेकिन नतीजे इससे मिलते-जुलते ही होंगे. सर्जरी के बाद शरीर में एस्ट्रोजन हॉर्मोन का प्रतिशत एकदम से गिर जाता है, इसकी वजह से मूड में बदलाव भी आम है. कई बार हालात इतने खराब हो जाते हैं कि हॉर्मोन रिप्लेसमेंट थैरेपी की जरूरत पड़ जाती है. हॉर्मोन्स का स्तर कम होने के कारण दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. पीरियड्स और प्रेगनेंसी की वजह से ज्यादातर महिलाओं के शरीर में कैल्शियम औसत से भी कम होता है, ऐसे में यूट्रस हटाए जाने पर एस्ट्रोजन की कमी से हड्डियां और कमजोर हो जाती हैं.

महाराष्ट्र (Maharashtra) का गुमनामी में खोया एक जिला बीड इन दिनों सुर्खियों में है. यहां 4 हजार से भी ज्यादा महिलाएं बच्चेदानी निकलवा (uterus removal) चुकी हैं, वो भी 25 से 30 साल की उम्र में. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार जहां पूरे देश में यूट्रस निकालने की दर 3 प्रतिशत है, वहीं अकेले बीड में ये 36 प्रतिशत है. इसके बाद से पूरे देश में हंगामा मचा हुआ है.
मेजर सर्जरी के तहत आने वाली ये सर्जरी ये कुछ खास हालातों में निकाली जाती है. विशेषज्ञ के पास जाने पर कई जांचों के बाद ये पक्का होता है कि यूट्रस निकाला जाना है या फिर दवाओं के जरिए ही हालात पर काबू पाया जा सकता है. कई बार गांठें तेजी से फैलती हैं और कैंसर की वजह भी बन सकती हैं, ऐसे में यूट्रस निकलना एकमात्र विकल्प रहता है.

यूट्रस वो संरचना है, जिसमें प्रेगनेंसी के दौरान बच्चा पलता-बढ़ता है. यह ब्लेडर और पेल्विक एरिया की हड्डियों को भी सपोर्ट करता है. हालांकि कुछ वजहों से इसे हटाना यानी वजाइनल हिस्टरेक्टॉमी जरूरी हो जाती है.
फाइब्रॉइड- इसमें गर्भाशय के आसपास गांठें हो जाती है. इनके कारण पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा रक्तस्त्राव और दर्द होता है. इससे ब्लेडर पर भी दबाव रहता है और बार-बार टॉयलेट जाना होता है. फाइब्रॉइड आकार में बड़े हों तो सर्जरी जरूरी हो जाती है.
एंडोमेट्रिओसिस- यूट्रस के आसपास की लाइनिंग ज्यादा फैल जाने पर ये ओवरीज, फेलोपियन ट्यूब और दूसरे अंगों पर असर डालने लगती है. इस कंडीशन को एंडोमेट्रिओसिस कहते हैं. इस तकलीफ से जूझ रहे मरीज की रोबोटिक हिस्टरेक्टॉमी की जाती है और यूट्रस निकाला जाता है.
कई वजहों से डॉक्टर औरतों को यूट्रस हटाने की सलाह दे सकते हैं
कैंसर- यूट्रस, सर्विक्स, ओवरीज का कैंसर होने या ऐसी गांठें होने पर जो आगे चलकर कैंसर में बदल सकती हैं, हिस्टरेक्टॉमी जरूरी हो जाती है.
यूटेराइन ब्लीडिंग- पीरियड्स के दौरान कई महिलाओं को बहुत ज्यादा ब्लीडिंग होती है जो दवाओं से किसी भी तरह कंट्रोल नहीं होती. ऐसे में एनीमिया और दूसरी तकलीफों का खतरा बढ़ जाता है. इस स्थिति में भी हिस्टरेक्टॉमी एक ऑप्शन है. हालांकि ये सबसे आखिरी ऑप्शन है.
हिस्टरेक्टॉमी के बाद प्रेगनेंसी मुमकिन नहीं
हालांकि इसका मतलब ये कतई नहीं कि मां बन चुकी महिलाएं अगर किसी तकलीफ में हैं तो उन्हें यूट्रस निकलवा लेना चाहिए. लगभग सभी डॉक्टर इसे आखिरी विकल्प मानते हैं और सर्जरी की सलाह तभी देते हैं, जब दवाओं से हालात न संभले. बीते साल अमेरिकन एक्ट्रेस लीना डनहम ने यूट्रस रिमूवल सर्जरी करवाई और सोशल मीडिया पर इसपर लंबी पोस्ट भी लिखी. वे एंडोमेट्रिओसिस से पीड़ित थीं. हिस्टरेक्टॉमी से पहले उनकी कई-कई बार काउंसलिंग हुई और उनकी हां के बाद ही प्रक्रिया की गई. हालांकि हमारे देश में खासकर ग्रामीण हिस्सों में हिस्टरेक्टॉमी जैसी मेजर सर्जरी के लिए जांचें और काउंसलिंग जैसी कोई व्यवस्था नहीं.
इसके ढेरों गंभीर साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं

इमर्जेंसी में होम्योपैथी का महत्वआमतौर: पर लोगो की धारणा है कि होम्योपैथी इमरजेन्सी में काम नहीं करती है क्योकि इसका असर...
26/12/2019

इमर्जेंसी में होम्योपैथी का महत्व
आमतौर: पर लोगो की धारणा है कि होम्योपैथी इमरजेन्सी में काम नहीं करती है क्योकि इसका असर बहुत धीरेध्रीरे होता है ,और जब तक दवा असर करेगी तब तक रोगी का बहुत नुकसान हो जायेगा लेकिन ऐसा नहीं है ,यदि किसी भी इमरजेन्सी केस में सही समय में सही दवा तुंरत दी जाए तो न केवल रोगी की जान बच जायेगी बल्कि उसे कोई गंभीर नुकसान भी नहीं होगा .एक प्रचलित धारणा यह भी है कि होम्योपैथी दवा सिर्फ बच्चो कि मामूली चोट के लिए ही उपयोगी है किन्तु यहाँ तथ्य पूरी तरह से सही नहीं है .
होम्योपैथिक दवा न केवल साधारण चोट में उपयोगी है बल्कि यह हार्ट अटेक ,कोमा आदि गंभीर इमरजेन्सी में भी अति उपयोगी है .
सामान्यतः सभी प्रकार कि इमरजेन्सी को दो भागो में बांटा जा सकता है –
1) सामान्य इमरजेन्सी
2) गंभीर इमरजेन्सी
• सामान्य इमरजेन्सी –
A) सामान्य चोट
B) रक्तस्त्राव
C) सामान्य या अचानक उत्पन्न होने वाले दर्द
D) संक्रमण
E) मोच
• गंभीर इमरजेन्सी –
F) जलना
G) हड्डी टूटना
H) लू लगना
I) टिटनेस
J) सदमा
K) हार्ट अटेक
L) बच्चे का पेट में उल्टा होना / प्रसव में समस्या
• सामान्य इमरजेन्सी –
A) सामान्य चोट– बच्चो को खेलते वक्त चोट लगना ,और काम करते समय मामूली चोट या कट लगना अथवा वाहन से मामूली दुर्घटना होना .ये सभी सामान्य चोट के अर्न्तगत आते है .ऐसे समय में कुछ उपयोगी होम्योपैथिक दवाए न केवल कटे हुए घाव भरने , रक्तस्त्राव रोकने में उपयोगी है बल्कि ये दर्द को भी कम कर देती है जैसे – Calendula, Arnica, Hypericum आदि.
B) रक्तस्राव– यद्यपि रक्तस्राव किसी भी प्रकार की बाह्य या आन्तरिक चोट का परिणाम होता है लकिन रक्तस्राव को कई प्रकारून मैं विभक्त किया जा सकता है – सामान्य चोट लगने पर होनेवाला रक्तस्राव, नाक से रक्तस्राव (नकसीर), महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान होनेवाला अतिस्राव आदि. कभी-२ किडनी मे पथरी की समस्या होनेपर भी मूत्र के साथ रक्तस्राव संभव है. होम्योपैथी मैं रक्तस्राव फ़ौरन रोकने के लिए भी पर्याप्त दावा उपलब्ध हैं जैसे – Calendula, Millofolium , Hammamalis , Crot-Hor आदि. .
C) सामान्य या अचानक उत्पन्न होने वाले दर्द – शरीर के किसी भी भाग मे होनेवाला दर्द स्वयं मे कोई बीमारी नहीं है बल्कि यह अन्य बीमारियों का अलार्म है. दर्द अनेक तरह के हो सकते हैं – शरीर के किसी भी भाग मे बिना किसी कारण के achanak होनेवाला दर्द, चोट लगने का दर्द, बीमारी का दर्द, मासिक धर्म मे दर्द आदि. कुछ ख़ास होम्योपैथिक दवाए न kewal दर्द को स्थायी रूप से ख़त्म करती हैं बल्कि कोई साइड इफेक्ट भी नहीं होता किन्तु दवाए लेने से पहले डॉक्टर से सलाह लेलेना उचित है. उपलब्ध दवाई हैं – Rhus Tox, Mag. Phos, Arnica आदि.
D) संक्रमण– किसी भी प्रकार के संक्रमण को नियंत्रित करने मैं होम्योपैथिक दवाए सक्षम हैं.मौसमी संक्रमण, फोडे, मुहांसे, खुजली, एक्सिमा,एलर्जी आदि के लिए Gunpowder, Silicea आदि होम्योपैथिक दवाए कारगर हैं.
E) मोच– सामान्य कार्य के दौरान,भारी वजन उठाने से, गलत तरीके से कसरत करने से आदि अनेक कारन हैं जो मोच के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं.प्रायः मोच शरीर के लचीले भागों जैसे कलाई, कमर, पैर,आदि को प्रभावित करती है. लोगों का सोचना है के मालिश ही इसका सर्वोत्तम उपचार है लेकिन मोच के लिए भी होम्योपैथिक दवाए उपलब्ध हैं जो ना केवल मोच के दर्द से राहत देती हैं बल्कि सुजन को दूर करने मे भी सहायक हैं यथा –Ruta, Rhus Tox आदि.
• गंभीर इमरजेन्सी –
आमजन के मस्तिष्क मैं यह बात बहुत गहराई तक बैठी हुई है कि गंभीर इमरजेन्सी से होम्योपैथिक दवा का कोई नाता नहीं है क्योंकि गंभीर इमरजेन्सी मैं यह नाकाम है लेकिन यह तथ्य पूर्णतः सही नहीं है. कुछ विशिष्ट होम्योपैथिक दवाए गंभीर इमरजेन्सी को फ़ौरन नियंत्रित करने मैं सक्षम हैं. यहाँ मैंने ऐसे हे कुछ गंभीर इमरजेन्सी और उनकी दवाओं का विवरण दिया है –
F) जलना– जलना एक दर्दनाक प्रक्रिया है जो कई कारणों से हो सकती है – महिलाओं का किचेन मैं कार्य करते वक़्त जल जाना, आग या भाप से जलना, सनबर्न आदि. जलने पर उपरोक्त होम्योपैथिकदवाएं प्रयोग मैं लाये जा सकती हैं – Cantharis, Urtica- Uren, Kali mur आदि.
G) हड्डी टूटना – हड्डी टूटना एक आम इमर्जेंसी है जो प्रायः वृद्ध लोगो मे, बच्चों मैं अथवा दुर्घटना आदि के कारण हो सकती है. लोगो के एक आम सोच है के भला होम्योपैथिक दवाए कैसे इसे ठीक कर सकती हैं?
लेकिन होम्योपथी के खजाने मैं कुछ ऐसे दवाएं भी हैं जो दर्द को दूर करके टूटी हड्डी को पुनः जोड़ने मैं सक्रिय भूमिका निभाती हैं – Sympht, Ruta, Cal. Phos आदि इसी के उदहारण हैं.
H) लू लगना– गर्मी के मौसम मैं बरती गयी लापरवाही या कुछ मामूली गलतियाँ लू लगने के लिए जिम्मेदार होती हैं जैसे – धूप मैं घूमना, धूप से आते ही ठंडा पानी पीना, तेज़ गर्मी से आते ही कूलर या एसी मैं बैठना इन सब कारणों से शरीर तथा बाहरी वातावरण के बीच संयोजन गडबडा जाता है और व्यक्ति लू का शिकार हो जाता है. प्रायः लोग नहीं समझ पाते कि उनको लू का आघात लगा है. इसके मुख्य लक्षण- तेज़ बुखार, वामन, तेज़ सिरदर्द आदि हैं. लक्षण गंभीर होनेपर रोगी की मृत्यु भी संभव है. लू से बचाव के लिए होम्योपैथिक दवाए उपयोगी हैं. लू लगने पैर इनके फ़ौरन दी गई १ या २ खुराक रोगी की जान बचाने के लिए पर्याप्त हैं. जैसे – Nat-Mur, Glonine आदि.
I) टिटनेस – लोहे की ज़ंग लगी वास्तु से चोट लगाने पर या वाहन से दुर्घटना होने पर टिटनेस का खतरा पैदा हो जाता है जो जानलेवा भी साबित हो सकता है. होम्योपैथी मैं टिटनेस के लिए दोनों हे विकल्प मौजूद हैं –
1) चोट लगने पर फ़ौरन ली जानेवाली दवाई ताकि भविष्य मैं टिटनेस की सम्भावना न रहे.
2) टिटनेस हो जानेपर उसे आगे बढ़ने से रोकने तथा उसके उपचार हेतु ली जानेवाली दवाई.
जैसे – Hypericum, Led Pal आदि.
J) सदमा– यह एक अत्यधिक गंभीर इमर्जेंसी है जो व्यक्ति पर अस्थायी अथवा दूरगामी दोनों प्रकार के प्रभाव छोड़ सकती है. अचानक कोई ख़ुशी या गम का समाचार, प्रियजनों के मृत्यु, किसी भयानक दुर्घटना या खून आदि के घटना को साक्षात देखना आदि सदमे के मुख्य कारण हो सकते हैं. इसमें व्यक्ति अचानक बेहोश हो जाता है, उसकी आँखें चढ़ जाती हैं, दांत बांध जाते हैं तथा कभी कभी आवाज़ या याददाश्त भी चली जाती है. ऐसी अवस्था मैं प्रति ५-५ मिनट के अन्तराल पर कुछ विशिष्ट होम्योपैथिक दवाओं के खुराक दे कर व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है जैसे – Ars Alb, Carbo Veg, Nat. Mur आदि.
K) हार्टअटेक– यह बड़ा प्रचलित तथ्य है कि हार्ट अटेक जैसी अति गंभीर इमर्जेंसी और होम्योपैथिक दवाओं के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है क्यूंकि ऐसी हालत मैं हॉस्पिटल हे अंतिम विकल्प है जबकि अनेक बार ऐसा भी होता है कि रोगी हॉस्पिटल पहुँचने से पहले रास्ते मैं हे दम तोड़ देता है क्योंकि हार्ट अटेक के रोगी को फ़ौरन देखभाल तथा उपचार की ज़रूरत होती है.
होम्योपैथिक दवाओं मैं केवल हार्ट अटैक से बचाव करने के ही शक्ति नहीं है बल्कि यह रक्त संचार को नियमित बनाकर भविष्य मे हार्ट अटैक से बचाव प्रदान करती है, हार्ट के नालियों मे खून का थक्का बननेपर उसको घोल के समाप्त कर देती है तथा हार्ट की पेशियों को ताकत प्रदान करती है. सर्वोत्तम बात यह है कि इन दवाओं को जीवनभर प्रयोग करने की आवश्यकता नहीं होती किन्तु इनका प्रभाव स्थाई होता है. जैसे – Glonine, Ammonium Carb आदि.
L) बच्चेकापेटमेंउल्टाहोना / प्रसवमेंसमस्या– यह एक बहुत ही गंभीर स्थिती है जिससे अधिकांश महिलाएं प्रसव के दौरान गुजरती हैं. अपने विकास काल के दौरान कभी-२ शिशु गर्भाशय मैं आड़ा या उल्टा हो जाता है. यह स्थिति माता और शिशु दोनों के ही जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है यहाँ तक कि कई बार ऑपरेशन हे अंतिम विकल्प रह जाता है. इसी प्रकार से कई बार प्रसव के दौरान महिला को प्रसव पीडा अचानक बंद हो जाती है जो शिशु जन्म मैं तकलीफ का कारण बन जाती है.
होम्योपैथी मैं कुछ ऐसे विशिष्ट दवाएं हैं जो इस प्रकार के आपात अवस्था मे देने पर फ़ौरन अपना प्रभाव उत्पन्न करती हैं, ये रुकी हुई प्रसव पीडा को पुनः प्रारंभ करती हैं, शिशु जन्म को सरल बनती हैं तथा गर्भ मे शिशु की स्थिति को भी पुनः सही कर देती हैं लेकिन ये दवाएं किसी कुशल होम्योपैथिक सलाहकार की देख रेख मैं हे लेना उपयोगी होता है. कहा जा सकता है कि यह दवाएं ऑपरेशन से बचाव प्रदान करती हैं. जैसे – Sepia, Pulsatila, Caulophyllum.

@नोट – कृपया किसी भी दवाई का सेवन होम्योपैथिक डॉक्टर की सलाह के बिना ना करें क्योंकि सभी दवाओं की potency अलग– अलग होती है, इसके अतिरिक्त रोगी / व्यक्ति के अन्य शारीरिक व् मानसिक लक्षण भी अत्यधिक महत्व रखतेहैं.
-dr bhavya
Tantiya university, sri ganganagar (raj)

हम सब को अलर्ट करने वाली है AIIMS की रिसर्च रिपोर्ट, हमारी बॉडी में बढ़ रही हैं हैवी मेटल्सआपने अक्सर ऐसा सुना और देखा ह...
20/09/2019

हम सब को अलर्ट करने वाली है AIIMS की रिसर्च रिपोर्ट, हमारी बॉडी में बढ़ रही हैं हैवी मेटल्स

आपने अक्सर ऐसा सुना और देखा होगा कि कुछ लोग बिना किसी शराब या सिगरेट (Cigarette) की आदत के लंग कैंसर (lung cancer), अस्थमा (Asthma), लीवर (Liver) की समस्या और किडनी खराब (Kidney failure) जैसी ख़तरनाक और जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. डॉक्टर के पास जाकर उन्हें ये तो पता लग जाता है की उन्हें बीमारी कौन सी है, मगर ये पता लगा पाना मुश्किल होता है कि उस बीमारी की असली जड़ क्या है, यानी उन्हें वो बीमारी किस वजह से हुई. क्या उनके खान पान में कुछ ऐसी हानिकारक चीज़ें थी, जिनकी वजह से वह बीमार हुए या फिर जिस पानी को वह पीते हैं और जिस हवा में वो सांस लेते हैं वह दूषित हैं.

अब इस बात का पता लगा लिया गया है. वह भी दिल्ली के AIIMS अस्पताल में. दरअसल, AIIMS में हाल ही में खुली इकोटॉक्सिकोल़ॉजी लैब में की गई एक रिसर्च में बीमारियों की जड़ खोजी जा रही है. इस लैब में पहली बार क़रीब 200 लोगों पर हुए एक शोध में पता लगा कि 200 में से 32 लोगों के शरीर में हानिकारक केमिकल्स मौजूद हैं. इन केमिकल्स में फ्लोराइड, आरसेनिक और मरकरी जैसे खतरनाक हैवी मेटल्स मौजूद हैं.

AIIMS के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बताया कि वातावरण में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जिसके चलते न केवल हवा और पानी, बल्कि फल और सब्ज़ियां भी दूषित हो रही हैं. इस वजह से आपके शरीर में इस तरह के ख़तरनाक और जानलेवा केमिकल्स और भारी धातु के पाए जाने की आशंका बढ़ जाती है.

बढ़ रहे प्रदूषण के स्तर की वजह से कुछ नवजात शिशुओं के cord blood यानी गर्भनाल के ख़ून में कीटनाशकों की मौजूदगी पायी गयी है. इसका मतलब, हमारी आने वाली पीढ़ी पैदा होने से पहले ही प्रदूषण और pesticides जैसे ख़तरनाक chemicals से होने वाली बीमारियों की चपेट में होगी.

ये दुनिया की पहली ऐसी लैब है. जो बीमारी और वातावरण में मौजूद हानिकारक तत्वों और प्रदूषण के असर के बीच वैज्ञानिक लिंक तलाश रही है. लक्षणों के आधार पर अगर डॉक्टर को चेकअप के दौरान ये लगता है कि मरीज़ के शरीर में कोई हानिकारक पदार्थ हो सकता है तो उसे लैब में टेस्ट करवाने के लिए रेफ़र कर दिया जाएगा, जिसके बाद महज़ दो दिन में टेस्ट की रिपोर्ट मिल जाएगी. इस लैब में फ्लोराइड जैसे हानिकारक तत्वों के लिए टेस्ट और मरकरी, आर्सेनिक और लेडजैसे भारी और हानिकारक धातुओं के लिए भी टेस्ट करवाना मुमकिन होगा.

इस लैब की ख़ास बात ये है कि इसमें न सिर्फ़ आपके शरीर का टेस्ट हो सकेगा, बल्कि आपके घर का पीने का पानी और यहां तक की खाने की भी जांच हो सकेगी. इससे ये पता लगाने में आसानी होगी कि शरीर में पाए गए हानिकारक chemicals और धातुओ का स्रोत क्या है. क्या आपके पीने के पानी में कुछ हानिकारक तत्व मौजूद हैं या फिर बाज़ार से हर हफ़्ते आपके घर आने वाली सब्ज़ियां और फलों में ही खोट है. इतना ही नहीं, अगर ये पाया गया कि आपके घर के पानी और सब्ज़ियों में हानिकारक पदार्थ मौजूद हैं तो डॉक्टर आपको ये सलाह देंगे कि आप अपना पानी अच्छे से फिल्टर करके पिएं और सब्ज़ियों और फलों को अच्छे से धोकर ही खाएं. इससे आप अपने घर के बाक़ी सदस्यों की सेहत का ख़याल रख पाएंगे.

AIIMS के इकोटॉक्सिकोल़ॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. ए शरीफ का मानना है कि वातावरण में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है, जिसके चलते न केवल हवा और पानी, बल्कि फल और सब्ज़ियां भी दूषित हो रही हैं. फैक्टरियों से निकलने वाले ज़हरीले पानी में उगने वाली सब्ज़ियां आपकी सेहत के लिए बेहद हानिकारक साबित हो सकती है. यहां तक कि खेतों में उगने वाली ऐसी सब्ज़ियां जिन पर pesticides छिड़का जाता हो, भी आपको बीमार कर सकती हैं. ऐसे में इस तरह की सब्ज़ियों और फलों का खाने से आपको कैंसर और किडनी खराब जैसी घातक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है.

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H. No 65, Arawali Homes, Near Medanta Hospital & Riddhi Siddi I, II, Medanta Road, Hanumangarh Road Shri Ganganagar
Sri Ganganagar
335001

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