11/09/2025
1. वसु पितर: ये वे पितर होते हैं जो हाल ही में शरीर का त्याग कर चुके होते हैं, जैसे व्यक्ति के माता-पिता.
2. रुद्र पितर: ये पूर्वजों की आत्माएं हैं, जैसे दादा-दादी जो मर चुके हैं.
3. आदित्य पितर: ये सबसे पहले मर चुके पूर्वज होते हैं, जैसे परदादा-परदादी.
कुल मिलाकर, पुराण बताते हैं कि मृत्यु के बाद आत्मा प्रेत योनी से पितृ योनी में जाती है, और इन प्रकारों के आधार पर उनका तर्पण किया जाता है. वहीं इसी तरह श्राद्ध के प्रकारों का विस्तार से उल्लेख पुराणों में मिलता है. मुख्य रूप से 12 प्रकार के श्राद्ध बताए गए हैं, जो विभिन्न अवसरों और विधियों पर आधारित हैं. हालांकि, मत्स्य पुराण में 3 प्रकार, स्मृतिग्रंथ में 5 प्रकार और भविष्य पुराण में तो लगभग 96 ऐसे अवसर हैं, जब श्राद्ध किया जा सकता है, इनमें अमावस्या और पूर्णिमा भी शामिल हैं
हालांकि पौराणिक वर्णन और व्याख्या के आधार पर 12 प्रकार के श्राद्ध का वर्णन किया गया है.
नित्य श्राद्ध: प्रतिदिन किया जाने वाला श्राद्ध, जिसमें तिल, जल, दूध आदि से पितरों को तृप्त किया जाता है. विष्णु पुराण में इसका महत्व बताया गया है.
नैमित्तिक श्राद्ध: विशेष अवसरों जैसे पुत्र जन्म या मृत्यु तिथि पर किया जाता है. ब्रह्म पुराण और शिव पुराण में इसे देवताओं को समर्पित बताया गया है.
काम्य श्राद्ध: इच्छा पूर्ति के लिए किया जाता है, जैसे संतान प्राप्ति या स्वास्थ्य लाभ. भागवत पुराण में इसका उल्लेख है.
वृद्धि श्राद्ध: परिवार में वृद्धि (जैसे विवाह) के समय किया जाता है. इसका वर्णन मत्स्य पुराण में किया गया है.
सपिण्डन श्राद्ध: मृत्यु के बाद सपिण्डन संस्कार के समय यह श्राद्ध किया जाता है. नारद पुराण में इसके विधान का विस्तार से वर्णन किया गया है.
पार्वण श्राद्ध: पितृ पक्ष में किया जाने वाला मुख्य श्राद्ध. इसे लगभग सभी पुराणों में बताया गया है लेकिन वामन पुराण इसकी व्याख्या भी विस्तार से करता है.
गोष्ठी श्राद्ध: समूह में किया जाने वाला विशेष श्राद्ध विधान है. यह कम ही होता है.
प्रेत श्राद्ध: प्रेत योनी में फंसे पितरों के लिए, यह ज्योतिष और पुरोहित के दिए गए सुझाव के आधार पर किया जाता है.
कर्मांग श्राद्ध: कर्मों के अंग के रूप में भी यह श्राद्ध किया जाता है.
दैविक श्राद्ध: देवताओं से जुड़ा हुआ श्राद्ध
यात्रार्थ श्राद्ध: यात्रा के समय किया गया श्राद्ध
पुष्टयर्थ श्राद्ध: पोषण और शक्ति के लिए किया जाने वाला श्राद्ध
वायु पुराण में श्राद्ध से जुड़े 30 नियमों का उल्लेख है, जो विधि-विधान पर जोर देते हैं. पुराणों के अनुसार, श्राद्ध पांच महायज्ञों में से एक है (ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ आदि), जैसा कि वेदों और पुराणों में वर्णित है. पुराणों में पितरों और श्राद्ध का वर्णन हमें पूर्वजों के प्रति कर्तव्य की याद दिलाता है. इसीलिए सनातन परंपरा सिर्फ वर्तमान की बात नहीं करती है, इसमें एक ही समय में तीनों कालों की मौजूदगी रहती है.