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09/08/2016

डेंगू बुखार



डेंगु एक विषाणु जनित रोग है। इस रोग में तेज बुखार जड़ों में दर्द तथा माथा में दर्द होता है। कभी-कभी रोगी के शरीर में आन्तरिक रक्तस्त्राव भी होता है। यह चार प्रकार के विषाणुओं के कारण होता है तथा इस रोग का वाहक एडिस मच्छर की दो प्रजातियां हैं। साधारणतः गर्मी के मौसम में यह रोग महामारी का रुप ले लेता है जब मच्छरों की जनसंख्या अपने चरम सीमा पर होती है। यह संक्रमण सीधे व्यक्तियों से व्यक्तियों में प्रसरित नहीं होता है तथा यह भी आवश्यक नहीं कि मच्छरों द्वारा काटे गये सभी व्यक्तियों को यह रोग हो। डेंगु एशिया, अफ्रिका, दक्षिण तथा मध्य अमेरिका के कई उष्ण तथा उपोष्ण क्षेत्रों में होता है। डेंगु के चारो विषाणुओं में से किसी भी एक से संक्रमित व्यक्ति में बाकी तीनों विषाणुओं के प्रति प्रतिरोध क्षमता विकसित हो जाती है। पुरे जीवन में यह रोग दुबारा किसी को भी नहीं होता है।

डेंगू बुखार एक आम संक्रामक रोग है जिसके मुख्य लक्षण हैं, तीव्र बुखार, अत्यधिक शरीर दर्द तथा सिर दर्द। यह एक ऐसी बीमारी है जिसे महामारी के रूप में देखा जाता है। वयस्कों के मुकाबले, बच्चों में इस बीमारी की तीव्रता अधिक होती है। यह बीमारी योरप महाद्वीप को छोड़कर पूरे विश्व में होती है तथा काफी लोगों को प्रभावित करती है। एक अनुमान है कि प्रतिवर्ष पूरे विश्व में लगभग 2 करोड़ लोगों को डेंगू बुखार होता है।

डेंगू किस कारण होता है? यह "डेंगू" वायरस द्वारा होता है जिसके चार विभिन्न प्रकार हैं। (टाइप 1,2,3,4)। आम भाषा में इस बीमारी को हड्डी तोड़ "बुखार" कहा जाता है क्योंकि इसके कारण शरीर व जोड़ों में बहुत दर्द होता है।

डेंगू फैलता कैसे है? मलेरिया की तरह डेंगू बुखार भी मच्छरों के काटने से फैलता है। इन मच्छरों को 'एडीज मच्छर' कहते हैं जो काफी ढीठ व और दुस्साहसी मच्छर हैं और दिन में भी काटते हैं। डेंगू बुखार से पीड़ित रोगी के रक्त में डेंगू वायरस काफी मात्रा में होता है। जब कोई एडीज मच्छर डेंगू के किसी रोगी को काटने के बाद किसी अन्य स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो वह डेंगू वायरस को उस व्यक्ति के शरीर में पहुँचा देता है।

संक्रामक काल जिस दिन डेंगू वायरस से संक्रमित कोई मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो उसके लगभग 3-5 दिनों बाद ऐसे व्यक्ति में डेंगू बुखार के लक्षण प्रकट हो सकते हैं। यह संक्रामक काल 3-10 दिनों तक भी हो सकता है।

डेंगू बुखार के लक्षण इस बात पर निर्भर करेंगे कि डेंगू बुखार किस प्रकार है। डेंगू बुखार तीन प्रकार के होते हैं

क्लासिकल (साधारण) डेंगू बुखार

डेंगू हॅमरेजिक बुखार (डीएचएफ)

डेंगू शॉक सिंड्रोम (डीएसएस)

क्लासिकल (साधारण) यह एक स्वयं ठीक होने वाली बीमारी है तथा इससे मृत्यु नहीं होती है लेकिन यदि (डीएचएफ) तथा (डीएसएस) का तुरंत उपचार शुरू नहीं किया जाता है तो वे जानलेवा सिद्ध हो सकते हैं। इसलिए यह पहचानना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि बीमारी का स्तर का क्या है।

लक्षण

ठंड के साथ अचानक तेज बुखार चढ़ना।सिर, मांसपेशियों तथा जोड़ों में दर्द होना।अत्यधिक कमजोरी लगना, भूख में बेहद कमी तथा जी मितलाना।मुँह का स्वाद खराब होना।गले में हल्का सा दर्द होना।रोगी बेहद दुःखी व बीमार महसूस करता है।शरीर पर लाल ददोरे (रैश) का होना शरीर पर लाल-गुलाबी ददोरे निकल सकते हैं। चेहरे, गर्दन तथा छाती पर विसरित दानों की तरह के ददोरे हो सकते हैं। बाद में ये ददोरे और भी स्पष्ट हो जाते हैं।

उपचार : यदि रोगी को साधारण डेंगू बुखार है तो उसका उपचार व देखभाल घर पर भी की जा सकती है। चूँकि यह स्वयं ठीक होने वाला रोग है इसलिए केवल लाक्षणिक उपचार ही चाहिए।

पेरासिटामॉल की गोली या शरबत लेकर बुखार को कम रखिए।

रोगी को डिस्प्रीन, एस्प्रीन कभी ना दें।यदि बुखार 102डिग्री फा. से अधिक है तो बुखार को कम करने के लिए हाइड्रोथेरेपी (जल चिकित्सा) करें।

अपने नज़दीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जरूर संपर्क करें।
धन्यवाद

02/08/2016

मलेरिया

मलेरिया मादा ऐनोफ्लीज मच्छर (Female Anopheles Mosquito) के काटने से फैलता है, जोकि गंदे पानी में पनपते हैं। ये मच्छर आमतौर पर दिन ढलने के बाद काटते हैं। जब संक्रमित मादा एनाफिलीज मच्छर किसी व्यक्ति को काटता है तो संक्रमण फैलने से उसमें मलेरिया के लक्षण दिखाई देने लगते हैं। मलेरिया के दौरान रोगी को तेज बुखार के साथ उलटी और सर दर्द की समस्या भी होती है। मलेरिया के तीन स्टेज होते हैं।



मलेरिया के स्टेज (Stages of Malaria)

मलेरिया के बुखार को तीन स्टेज में देखा जाता है:

कोल्ड स्टेज (Cold Stage): इस दौरान रोगी को तेज ठंड के साथ कपकपी होती है।

हॉट स्टेज (Hot Stage): इस दौरान रोगी को तेज बुखार, पसीने और उलटी आदि की शिकायत हो सकती है।

स्वेट स्टेज (Sweat Stage): मलेरिया बुखार के दौरान स्वेट स्टेज में मरीज को काफी पसीना आता है।

01/08/2016

प्रिय मित्रों,
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लक्षण

वयस्कों में, हाइपोथायरायडिज्म निम्नलिखित लक्षणों से सम्बंधित होता है:

प्रारम्भिक लक्षण

मांसपेशियों की धीमी गतिविधि (पेशी हाइपोटोनिया)थकानसर्दी को सहन करने की क्षमता में कमी, सर्दी के लिए बहुत अधिक संवेदनशीलताडिप्रेशन या अवसादमांसपेशियों में अकड़न और जोड़ों में दर्दकार्पल टनल सिंड्रोम (Carpal Tunnel Syndrome)गलगंड (Goiter)अंगुलियों के नाखुन पतले और भंगुरपतले, भंगुर बालपीलापनपसीना कम आनाशुष्क, खुजली वाली त्वचावजन का बढ़ जाना और पानी का अधिग्रहण ब्रेडीकार्डिया (Bradycardia) (ह्रदय दर कम होना-प्रति मिनट साठ धड़कन से कम)कब्ज

बाद में दिखाई देने वाले लक्षण

धीमी आवाज और एक कर्कश, टूटती हुई आवाज-आवाज में गहराई भी देखी जा सकती है।शुष्क फूली हुई त्वचा, विशेष रूप से चेहरे पर.भौहों के बाहरी तीसरे हिस्से का पतला होना, (हेर्टोघ (Hertoghe) का चिन्ह)असामान्य मासिक चक्रशरीर के आधारभूत तापमान में कमी

कम सामान्य लक्षण

याददाश्त कमजोर होना ज्ञानात्माक गतिविधि (सोचने-समझने की क्षमता) का कमजोर होना (दिमाग में धुंधलापन) और असावधानी

ECG (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम) में परिवर्तनों के साथ ह्रदय दर का धीमा होना, जिसमें कम वोल्टेज के संकेत शामिल हैं। कार्डियक आउटपुट का कम होना और संकुचन में कमी.प्रतिक्रियाशील (या खाने के बाद) हाइपो ग्लाईसिमिया रिफ्लेक्स (प्रतिवर्ती क्रिया) का धीमा और सुस्त होना.बालों का झड़ना.अनुपयुक्त हीमोग्लोबिन संश्लेषण के कारण एनीमिया (रक्ताल्पता) (EPO के स्तर में कमी), आंतों में लौह तत्व याफोलेट का अनुपयुक्त अवशोषण या B 12 की कमी पर्निशियस एनीमिया (प्राणाशी रक्ताल्पता) के कारण.निगलने में कठिनाई सांस का छोटा होना और एक उथला और धीमा श्वसन प्रतिरूप.सोने की जरुरत का बढ़नाचिड़चिड़ापन और मूड अस्थिर रहनाबीटा-कैरोटिन के विटामिन A में ठीक प्रकार से रूपांतरित न होने के कारण त्वचा का पीला पड़ना.वृक्क के असामान्य कार्य और GFR में कमीसीरम कोलेस्ट्रॉल के स्तर का बढ़नातीव्र मानसिकता (मिक्सेडेमा मेडनेस (myxedema madness)) हाइपोथायरायडिज्म का एक दुर्लभ रूप है।वृषण से कम मात्रा में टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन के कारणकामेच्छा में कमी. स्वाद और गंध की संवेदना में कमी (एनोस्मिया)फूला हुआ चेहरा, हाथ और पैर

(देर से प्रकट होने वाले, कम सामान्य लक्षण)गाइनेकोमेस्टिया

29/07/2016

Typhoid :--
टाइफायड बुखार एक खतरनाक रोग है,इसे मियादी बुखार भी कहा जाता है। यह बैक्टीरिया साल्मोडनेला टायफी से होता है। टाइफायड को एंटीबायोटिक दवाइयों से रोका तथा इसका उपचार किया जा सकता है। टायफायड की संभावना किसी संक्रमित व्यक्ति के जूठे खाद्य-पदार्थ के खाने-पीने से भी हो सकती है या फिर गंदे पानी या अस्वच्छ खाद्यान्न के सेवन से। आइए जानें टायफायड से संबंधित अन्य जानकारियों के बारे में।

टाइफायड बुखार

बैक्टीरिया साल्मोनेला टायफी इंसानों में ही पाया जाता है। टायफायड से ग्रसित व्यक्ति के रक्त और धमनियों में टायफायड बैक्टीरिया रहता है। साल्मोनेला टायफी बैक्‍टीरिया दूषित पानी से नहाने या पानी से खाद्य सामग्री धोकर खाने से फैल सकता है।



टाइफायड बुखार अधिकतर दूषित खाने व दूषित पानी से होता है टायफायड बुखार के लक्षणों में शरीर में ज्वर होना व लगातार शरीर के तापमान का बढ़ना या घटना महत्‍वपूर्ण लक्षण है। ऐसे ही कई अन्य लक्षण भी हैं।



टाइफायड बुखार के लक्षण
आमतौर पर टायफायड ग्रसित व्यक्ति को 102 डिग्री सेल्‍िसयस से ऊपर बुखार रहता है और उनके शरीर में बहुत कमजोरी भी महसूस हो सकती है।



पेट में दर्द, सिर दर्द के अलावा भूख कम लगना भी इसके आम लक्षण है। इसके अलावा टायफायड में सुस्ती व कमजो़री आती है, उल्टी महसूस होती है।



बड़ों में कब्ज़ तथा बच्चों में दस्त भी हो सकता हैं।आँतों के संक्रमण के कारण शरीर के हर अंग में संक्रमण हो सकता है, जिससे कई अन्य संक्रमित बीमारियां होने का खतरा भी बढ़ जाता है।



आँतों के जख्म या अल्सर के फटने से आपरेशन की स्थिति बन सकती है। टायफायड को जांचने के लिए मल का नमूना या खून के नमूने में साल्मोनेला टायफी की जांच की जाती है।



टायफायड बुखार आमतौर पर 1 महीने तक होता है, लेकिन अधिक कमजोरी होने पर अधिक समय तक भी रह सकता है। इतना ही नहीं इससे शरीर में बहुत कमजोरी आ जाती है , जिससे व्यक्ति को सामान्य स्वास्‍थ्‍य की स्थिति में आने में बहुत समय लग जाता है।

हालांकि टायफायड बुखार पर आसानी से काबू पाया जा सकता है लेकिन ये जानलेवा बुखार है। खान-पान,सफाई इत्यादि का ध्यान रख टायफायड की संभावना से बचा जा सकता है।

27/07/2016

It is world encephalitis day today

Consensus guidelines on evaluation and management of suspected acute viral encephalitis in children in India.

Viral encephalitis is an important cause of mortality and morbidity in children. The etiological agents are varied, and physicians treating such children often feel limited by the lack of uniform guidelines on evaluation and management of these critically ill children in resource-constrained settings.

PROCESS:

An Expert Group Meeting on Viral Encephalitis in Children was held on 19th January, 2012 in Gurgaon, Haryana (under the aegis of PEDICON 2012, the National Conference of Indian Academy of Pediatrics). The invited experts included pediatricians and microbiologists with expertise in the relevant field. Various issues related to the subject were discussed and it was decided to bring out recommendations on the topic. The final recommendations were produced after circulating the draft document, and incorporating/discussing all changes, by email.

OBJECTIVES:

To aid the pediatrician in the evaluation and management of children with suspected viral encephalitis and to assist the public health authorities in acute encephalitis surveillance. These guidelines do not cover viral encephalitis in the neonatal period and in immunocompromised children, Rabies encephalitis, and chronic viral encephalitis such as Subacute sclerosing panencephalitis (SSPE).

RECOMMENDATIONS:

Recommendation for evaluation and management of suspected viral encephalitis in children are presented. In any acute encephalitis outbreak, pediatricians should be aware of the common viral causes of encephalitis in their area, what information and samples they should collect, and the contact details of the District Surveillance Unit. Pending specific diagnosis and therapy (which may or may not be possible), prompt empirical therapy and meticulous supportive care are important to prevent ongoing brain damage, and improve outcome.

26/07/2016

This is my first day of create a fantastic page for you.
Please join us for a good health.

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Opec Hospital Kaily
Basti
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