17/04/2022
गौमाता अर्थात् साक्षात् 33 कोटि देवी-देवता की प्रतिनिधि।गोवंश की सेवा यानि गौमाता की सेवा से सभी 33 कोटि देवी-देवता के लिए किए जाने वाले यज्ञ जितना पुण्य फल मिलता है।गौमाता के सींगो मे विष्णु और महेश विराजित हैं,तो गले मे राहू और केतु।आँखो में सूर्य व चंद्र विराजित हैं तो मूत्र मे गंगाजी व गोबर मे महालक्ष्मी समेत 33 प्रकार के देवी-देवताओ का वास गौमाता मे होता है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – “गवां मध्ये वसाम्हम्।।” अर्थात् मैं गौ के मध्य ही बसता हूँ। गौ माता के मुख मे वेदो का वास होता है।गोवंश के पीठ मे सूर्यकेतु नाड़ी पाई जाती है जो सूर्य की दैवीय ऊर्जा को सीधे ग्रहण करती है।गौमाता की सेवा से सभी तरह के ग्रह जनित दोष का निवारण हो जाता है।अतः गोवंश की सेवा सीधे ही त्रिदेव समेत सभी देव-देवियों की सेवा है।ऐसे मे यदि गोवंश की सेवा सीधे न प्राप्त हो अर्थात् गौपालन न कर पाएं तो गौ सेवा किस प्रकार की जाए इसी विषय को इस लेख के माध्यम से जानें।
यदि गोवंश की सेवा घर मे रखकर नही कर सकते हैं तो नीचे वर्णित प्रकारों के द्वारा द्वारा गौमाता की सेवा की जा सकती है –
✴क्रियात्मक गौ सेवा✴
गौमाता की क्रियात्मक सेवा तन से होती है।जैसे आस-पास की गौशाला मे जाकर सफाई करना।गौ माता को स्नान कराना,उनके शरीर को ब्रश आदि से साफ करना।गौ माता की मालिश करना।गोवंश को ताजा हरा गोग्रास,पानी,रोटी,गुड़ आदि परोसना उनकी क्रियात्मक गौ सेवा अंतर्गत सेवा होगी।
✴रचनात्मक गौ सेवा✴
पूजा,उपासना,हवन-यज्ञ आदि मे, भोजन व आहार में गौमाता के पञ्चगव्य उत्पादों का उपयोग करना।अपनी आय का एक अंश गौसेवा मे लगाना।परिचित लोगों को भी पञ्चगव्य उत्पादो के लिए प्रेरित करना।गौ सेवा हेतु अन्यो को भी प्रेरित करना आदि गोवंश की रचनात्मक गौ सेवा होती है।
✴सृजनात्मक गौ सेवा✴
गोचर गोभूमि को गौमाता के लिए आरक्षित करवाना तथा उसका विकास करना।भारतीय गोवंश के संवर्धन के लिए कार्य करना।पञ्चगव्य विनियोग के लिए कार्य करना(संकलन,वितरण)आदि।
✴भावनात्मक गौ सेवा✴
अपने इष्ट आराध्य देव देवी से प्रार्थना करना गौरक्षा,गौसेवा,गौपालन के लिए।यह विचार करना की गौमाता का गोवंश सुखी हो,दुखी न हो आदि, भावनात्मक गौ सेवा के अंतर्गत आते हैं।
गौमाता की इन प्रकारो मे से किसी भी तरह की नित निरंतर सेवा करने से बड़े से बड़े यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है।इसका कारण है गोवंश मे समाहित 33 कोटि देवी देवता।यज्ञ आदि के माध्यम से हम देवताओ को हविष्य प्रदान कर भोग लगाते हैं जबकि गौमाता को गोग्रास देने मात्र से यज्ञ मे अर्पित हविष्य जैसा पुण्य मिलता है।
जीवन की हर बाधा,हर तनाव,हर समस्या का समाधान है गौमाता क्योंकि ये साक्षात् प्रतीक हैं ईश्वर की।आज संसार मे जो भी दुःख,संकट और पीड़ा छाई है तो उसका कारण भी गोवंश की उपेक्षा ही है।
✴सतयुग मे सबसे अमूल्य धन थी हमारी गौमाता ✴
वेदो और सृष्टि की रचना के बाद पृथ्वी पर सबसे अमूल्य धन थी गौ माता।ऋग्वेद मे इसे ‘अघन्या’ अर्थात् जिसे मारा न जा सके बताया गया है।गोवंश की संख्या के आधार पर धनिक और निर्धन की गणना होती थी।बड़े-बड़े युद्ध भी गौमाता के लिए लड़े जाते थे।गोवंश का वध महा पाप और कठोरतम दण्ड का कृत्य था।भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं मुझे पाना है तो गौ सेवा करो मै उनके ही बीच बसता हूँ!
!! जय श्रीराधे जय श्रीकृष्ण !!